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कायस्थ समाज का संक्षिप्त इतिहास और भारत के निर्माण में योगदान

भारतवर्ष मे युगों-युगों से कर्मयोगियों की परम्परा चलती रही है। हमारे कायस्थ समाज के पूर्वज बड़े-बड़े कर्मयोगी बड़े-बड़े तत्वदर्शी, महापुरुष तथा विद्वान हुए हैं। वे कर्मशील रहकर सादा सामाजिक एवं संयमित जीवन व्यतीत करते हुए अपने ज्ञान और कर्म द्वारा परोपकार करते रहे हैं। इतना ही नहीं ज्ञान और कर्म की भावना व कर्मशीलता द्वारा अपने आपको श्रेष्ठ बनाकर अपने कार्यों को उत्तम बनाते रहे हैं और अपने ज्ञान और कर्म से भारत के निर्माण में विशेष सहायोगी रहें है।

कायस्थ समाज में इन महान गुणों वाले व्यक्तियों की परम्परा अब भी वैसी ही है। आज भी हमारे समाज में महान गुणों वाले व्यक्ति विद्यमान है।

यदि भारत के इतिहास पर दृष्टि डाले तो स्वामी विवेकानन्द जिन्होंने शिकागों में आयोजित विश्व धर्मसभा में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। जन मानस में सुप्त आध्यात्मिक शक्तियों को जगाया और ‘‘राम कृष्ण मिशन’’ की स्थापना की। आध्यात्मिक गुरू परमहंस योगानन्द जिन्होंने ‘‘क्रिया योग’’ का उपदेश दिया। श्रीमद् अभय चरणारविन्द भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जिन्होंने (कृष्ण चेतना हेतु अन्तर्राष्ट्रीय समाज) ‘‘इस्कान’’ की स्थापना की। योगी एवं दार्शनिक गुरु श्री अरविन्दों भारतीय स्वन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी रहे और बाद में योगी बन वेद व उपनिषद ग्रन्थो पर टीका लिखा। स्वामी श्रद्धानन्द राष्ट्रभक्त सन्यासी जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज, शिक्षा तथा वैदिक धर्म को समर्पित कर दिया। अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान ‘‘गुरूकुल’’ की स्थापना की। धार्मिक एवं समाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत आधुनिक भारत के जनक राजा राममोहन राय जिन्होंने ‘‘ब्रह्य समाज’’ की स्थापना कर बाल विवाह, सती प्रथा एवं समाज की कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया। राय बहादुर सलिगराम जिन्हें हुजूर महाराज के नाम से भी जाना जाता है जो ‘‘राधा-स्वामी आध्यात्मिक आन्दोलन’’ के प्रमुख अनुयायी थे। ‘‘अनुभावातीत ध्यान योग’’ के संस्थापक महर्षि महेश योगी जिन्होंने महर्षि मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना कर आधुनिक तकनीकों से महर्षि प्रसारण के उपग्रह द्वारा आनलाइन शिक्षा प्रारंभ की और अपनी संस्था द्वारा ‘‘राम मुद्रा’’ जारी की ‘राम’ नाम की मुद्रा में एक, पाँच व दस के नोट है जिसे नीदर लैण्ड में मान्यता है। भारत की आजादी के सूत्रधारों में सर्वप्रथम नेता जी सुभाषचन्द्र बोस जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रेजों से लड़ने के लिए 'तुम मुझे खून दो, में तुम आज़ादी दूंगा' का आह्वान कर ‘‘आजाद हिन्द फौज’’ का गठन किया और ‘जय हिन्द’ का नारा दिया जो आज भारत का राष्ट्रीय नारा है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारी लाला हरदयाल जिन्होंने ‘‘गदर पार्टी’’ की स्थापना की उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच प्रचण्ड देश भक्ति की अलख जगाई प्रखर क्रांतिकारी रास बिहारी बोस जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरूद्ध गदर षडयंत्र एवं आजाद हिन्द फोैज के संगठन का कार्य किया। खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिए फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रांतिकारी देश भक्त थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में विपिनचंद्र पाल, चितरंजन दास, बिधान चन्द्र राय, लीला राय, लाला हनुमंत राय, बारीन्द्र घोष, पुल्लिन बिहारी दास, निर्भीक पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद जो भारतीय संविधान की निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे। जिन्हें देशरत्न कहकर सम्बोधित किया गया है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण (जे.पी.) भारतीय स्वतन्त्रता के सेनानी जिन्होंने भारत शासन के विरूद्ध ‘‘समग्र क्रांति’’ की अलख जगाई। 'जय जवान, जय किसान' नारे के प्रणेता भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जिन्हें सादगी, देशभक्ति और इमानदारी के लिए पूरे विश्व में श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाॅ.जगदीषचन्द्र बसु जिन्होंने भौतिक जीव विज्ञान वनस्पति तथा पुरातत्व ज्ञान बढ़ाया और सूक्ष्म रेडियों तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। इन्हें रेडियों विज्ञान का पितामह कहा जाता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाॅ. शान्तिस्वरुप भटनागर जिन्होंने यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्राॅनिक बैटरियाँ तथा तार युक्त टेलीफोन बनाये। महानतम भारतीय लेखक बाबू देवकीनन्दन खत्री जिन्होंने तिलिस्मी उपन्यास चन्द्रकांता और भूतनाथ जैसी रचनाओं का लेखन किया। हिन्दी साहित्य में छायावादी युग की प्रमुख स्तंभो में एक मानी जाने वाली विश्व की सर्वाधिक प्रतिभावान कवियत्री महादेवी वर्मा जिन्हें आधुनिक मीरा और हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती भी कहा गया। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जिन्होंने यथार्थवादी पैरा की नीवं रखी। उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवि हरिवंश राय बच्चन जिनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘मधुशाला’ है और वह भारतीय फिल्म जगत के प्रख्यात अभिनेता अभिताभ बच्चन के पिता है। फिल्म पटकथा मि. नटवर लाल के लेखक कमलेश्वर, उर्दू के प्रसिद्ध रचनाकार रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’, प्रसिद्ध साहित्यकारों और लेखकों में भगवती चरण वर्मा, धर्मवीर भारती, विमल राय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, गोपाल दास ‘नीरज’, भारत की प्रथम महिला पायलट मिस प्रेम माथुर, क्रिकेटर रमेश सक्सेना, सुव्रत गुहा, शिव सुन्दर दास, गोपाल दास, बेडमिंटन खिलाडी रमन घोष, दीपू घोष, सुप्रसिद्ध संगीतकार एस. डी. वर्मन, अनिल विश्वास, चित्रगुप्त, पंचमदा आर. डी. वर्मन, आदेश श्रीवास्तव, पार्श्व गायक मुकेश, मन्ना डे, के एल सहगल, सलिल चौधरी, अभिनेता मोतीलाल, उत्पल दत्त, ए के हंगल, विमल रॉय, नूतन आदि सर्व विदित् हो की ये सभी चित्रगुप्त के वंशज ही है ।

हम सृष्टिकर्ता ब्रह्यजी के मानसपुत्र भगवान चित्रगुप्त की दो पत्नियों से उत्पन्न 12 पुत्रों की हम संताने है। पद्मपुराण के पाताल खण्ड अध्याय 31 में उल्लेख है कि सृष्टिकर्ता के आदेशानुसार भगवान चित्रगुप्त ने उज्जयिनी में क्षिप्रा नदी के तट पर पंचकोषी क्षेत्र में तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि ‘‘श्री चित्रगुप्त सर्वशक्तिमान देव होगें एवं उनके वंशजों का कभी भी पृथ्वी लोक से लोप नही होगा’’।

अतः आदिकाल में भी अधिकांश राजा और शासक कायस्थ ही रहे। त्रैतायुग के रघुकुल राज्य में ग्यारह पीढ़ियों तक कायस्थों की ही दीवानी रही। राजा दशरथ के मंत्री सुमंत एवं कमलदत्त, रावण के राजवैद्य व मंत्री सुषेण, राजा रामचंद्र जी व राजा लव के मंत्री चित्रांश चक्ष, राजा कुश के मंत्री सोमदत्त, और द्वापरयुग में योगीराज कृष्ण के मंत्री तनपुरा दास, राजा अज के मंत्री रंगजी, महाराज पांडू के मंत्री सुशर्मा और सूतजी कायस्थ कुल के ही थे। सर्व विदित् है कि भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान भगवान चित्रगुप्त ने ही दिया था। प्राचीन काल के इतिहास में भी चाणक्य और उनके शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य के महामात्य मुद्रा राक्षस, मगध सम्राट जयचंद के प्रधानमंत्री शकटार, सम्राट विक्रमादित्य के प्रधान सेनापति ब्रह्यकांत, राजा विक्रमादित्य के न्यायमंत्री बुद्धिकांत माथुर, पृथ्वीराज चैहान के मंत्री उदयकांत, राजा भोज के मंत्री बुद्धिसागर, समर्थ गुरू रामदास, जहाँगीर के मंत्री चतुर्भज व पुरुषोतम दास, षाहजहाँ के मंत्री लाला अजमेरी दास और रघुनाथ दास, बादशाह अकबर के नवरत्नों में मंत्री बीरबल, राजा टोंगर मल, राजा हर्षवर्धन के कार्यकाल में हर्षचरित और कादम्बरी नामक ग्रंथों के रचनाकार कवि बाण भटट्, गुप्तकाल में प्रसिद्ध खगोलशास्त्री आर्यभट्ट आदि आदि भी चित्रगुप्त के ही वंशज है। सन् 1803 की एक पुरातत्व रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘शुक्र वंश’ (कायस्थ राजवंश) के शासक पुष्यमित्र सन् 185 ईसवी पूर्व मगध के सम्राट थे।
भारत के पूर्व इतिहास और प्रकाशित पुस्तकों में भी चित्रगुप्त के वंशज की प्रतिभाओं के प्रमाण देखने को मिलते है। जो अब इन्टरनेट पर भी उपलब्ध है। लेकिन बंगाल, असम, बिहार, पंजाब, कश्मीर, गुजरात, महाराष्ट्र, मद्रास, उडिसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, राजस्थान व सिंध आदि प्रांतों के कायस्थों का विशालतम इतिहास लुप्त प्राय है। वह इसलिए कि इन प्रांतों के चित्रांश बंधु स्वयं अपने वंश के प्रति सजग नहीं रहे। और उपलब्धि उपरान्त भी अपनी पहचान कायस्थों के रुप में नहीं बना सके परिणाम स्वरुप वह बंगाली, असमिया, बिहारी, पंजाबी, कश्मीरी, गुजराती, मराठी, तमिल, मद्रासी, उड़िया, राजस्थानी व सिंधी आदि आदि के नाम से जाने गये। कायस्थ समाज का इतिहास और समाज के विभूतियों की सूची इतनी विशाल है कि उसका पूरा समावेश करना कठिन है। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी प्रणवनंद, स्वामी श्रद्धानन्द, श्री अरविन्दों घोष, राजा राममोहन राय, महर्षि महेश योगी, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, रासबिहारी बोस, गणेश शंकर विद्य़ार्थी, खुदीराम बोस, वैज्ञानिक डाॅ. जगदीषचन्द्र बसु, डाॅ. शान्तिस्वरुप भटनागर, राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, महान लेखक मुंशी प्रेमचन्द्र, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, देवकी नंदन खत्री, भगवती चरण वर्मा, धर्मवीर भारती, रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ व अनेकों पद्य श्री, पद्य भूषण, पद्य विभूषण, भारत रत्न आदि आदि शीर्ष पुरुस्कार प्राप्त चित्रांश में जो शक्तियाँ थी वे समस्त शक्तियाँ हमारे समाज के प्रत्येक चित्रांश बंधु के भीतर आज भी सन्निहित है।
और आज के अधुनिक परिवेष में भी सिने इतिहास के सर्वाधिक लोकप्रिय अमिताभ बच्चन, शत्रुधन सिन्हा, राकेश रोशन, राजेश रोशन, शरद सक्सेना, शेखर सुमन, नितिन मुकेश, आन्नद मिलिंद, गौतम घोष और युवा पीढ़ी के अभिषेक बच्चन, ऋितिक रोशन, नील नितिन मुकेश, सोनू निगम, राहुल बोस, तनूजा, बिपाशा बसु, नन्दिता दास, सुष्मिता सेन, मुनमुन सेन, दिप्ती भटनागर, सोनाक्षी सिन्हा आदि आदि चित्रांश में जो प्रतिभाएँ है वह हमारे अन्य चित्रांश बंधु में भी कही न कही सन्निहित है।
अब आवश्यकता है उन्हें पहचानने एवं जगाने की और यह कार्य हमको ही करना है। हम भगवान श्री चित्रगुप्त के वंशज है। कायस्थ समाज में हमारा जन्म एक महान उद्देश्य को लेकर ही हुआ है। इसी भावना से ओतप्रोत होकर हम कायस्थ समाज की सेवा का वृत लें।