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राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए की पूर्व की भांति सक्रिय भूमिका निभाए कायस्थ – वेद आशीष श्रीवास्तव
कायस्थ समाज ने सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी का अहसास दिलाते हुए कोई ऐसा सार्थक कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ा जिससे कायस्थ समाज पृथक रहा हो। समाज के महापुरुषों ने केवल व्यक्तिगत उन्नति से संतुष्ट न रहकर, सदैव राष्ट्र की सेवा करने को प्रेरित किया है। तभी अनेकों कायस्थ-जन एक ओर स्वतंत्रता संग्राम तो दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों और पाखंडों के विरोध में जान हथेली पर रखकर लड़े।
आज कायस्थ समाज की उस जिम्मेदारी को पुनः जागृत करना होगा। राष्ट्र पर आज भी भयंकर खतरों के बादल मंडरा रहे हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार हो या फिर सांप्रदायिकता या पाखंड। अपने-अपने स्तर पर कुछ संस्थाएं व बुद्धिजीवी इन समस्याओं से जूझ रहे हैं परंतु उन प्रयासों में आज कायस्थ समाज का योगदान ना के बराबर है। मेरा मानना है कि आज कायस्थ समाज को राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए पूर्व की भांति सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और अगर मेरी बात से सहमत है तो हम सभी को इस भूमिका में अपना योगदान देना होगा और आज से ही इसके लिए सद्प्रयास का संकल्प लेना होगा l
- वेद आशीष श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अधिष्ठाता
सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था
गांधी गोडसे - एक युद्ध 2023 की भारतीय-हिंदी भाषा की ऐतिहासिक फिल्म है, जो राजकुमार संतोषी द्वारा लिखित और निर्देशित है, फिल्म महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे की विचारधारा आधारित है
गांधी गोडसे - एक युद्ध 2023 की भारतीय-हिंदी भाषा की ऐतिहासिक फिल्म है, जो राजकुमार संतोषी द्वारा लिखित और निर्देशित है, और मनीला संतोषी द्वारा निर्मित है। फिल्म में दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म एक काल्पनिक स्थिति से संबंधित है जिसमें महात्मा गांधी अपनी हत्या से बच जाते हैं और उसके बाद न केवल नाथूराम गोडसे को माफ करने का फैसला करते हैं, बल्कि उनके साथ घुलने-मिलने का भी फैसला करते हैं।
'गांधी गोडसेः एक युद्ध' फिल्म एक दम से चर्चा में आई थी. आए भी क्यों न फिल्म महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे की विचारधारा पर जो यह आधारित जो है...
हिंदी सिनेमा जगत के जाने-माने डायरेक्टर राजकुमार संतोषी पूरे नौ साल बाद बड़े पर्दे पर 'गांधी गोडसेः एक युद्ध' फिल्म से वापसी की
'गांधी गोडसेः एक युद्ध' फिल्म पिछले कुछ समय से चर्चा में आई. फिल्म महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे की विचारधारा पर जो यह आधारित है. किस तरह महात्मा गांधी पर गोडसे ने अटैक किया, लेकिन वह बच निकले. बाद में दोनों की मुलाकात जेल में हुई. और फिर बातचीत के बाद दोनों के बीच क्या चीजें हुई. वह इतिहास बन गया. फिल्म महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के बीच होने वाली घटनों पर भी आधारित है.
फिल्म के म्यूजिक की बात करें तो इसे एआर रहमान ने दिया है. मनीला संतोषी फिल्म की निर्माता इसे प्रोड्यूस किया है. निर्देशन राजकुमार संतोषी ने संभाला है. सहनिर्माता कात्यायनी इनोवेशन भोपाल के वेद आशीष श्रीवास्तव, नवदीप सिंह और सूर्यप्रकाश है.
भोपाल में कायस्थ समाज की पहल:परिवार सहायता कार्ड से 100 परिवारों को मिलेगा हर माह राशन
भोपाल में कायस्थ समाज की पहल:परिवार सहायता कार्ड से 100 परिवारों को मिलेगा हर माह राशन
कायस्थ समाज ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर 100 परिवारों को प्रत्येक माह राशन सामग्री देने का निर्णय लिया है। इसके लिए समाज ने 'परिवार सहायता कार्ड' जारी किए हैं, जिन्हें दिखाने पर संबंधित परिवार को चावल, चीनी, आटा, तेल, चायपत्ती, मसाले, धनिया, दलिया, पोहा, साबुन, तेल सहित दैनिक उपयोगी की अन्य सामग्री दी जाएगी। यह पहल सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था ने दैनिक संकल्प दान कोष से की है।
संस्था के अधिष्ठाता वेद आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि नर सेवा ही नारायण सेवा को ध्यान में रखकर जरूरतमंदों की मदद के लिए यह पहल की गई है। संस्था समाज के जरूरतमंद लोगों को यह कार्ड बनाकर दे रही है। इससे यह पता करना आसान हो जाएगा कि किस परिवार को राशन मिला और किस को नहीं। क्योंकि राशन लेते समय कार्ड पर एंट्री की जाएगी। संस्था समाज के संपन्न लोगों से दान राशि इकट्ठा करेगी, इसके लिए दैनिक संकल्प दान कोष अभियान शुरू किया गया है।
पोर्टल पर करें संपर्क
श्रीवास्तव ने बताया कि समाज ने वेब पोर्टल www.kayasthasamaj.in भी शुरू किया है। जिसके माध्यम से जरूरतमंद समाज योजना का लाभ ले सकते हैं। योजना के पहले चरण में भोपाल के 100 परिवार चुने गए हैं। पोर्टल के व्यवस्थापक गौरव दलेला ने बताया कि प्रत्येक माह के पहले सप्ताह में राशन सामग्री दी जाएगी। भोपाल के बाहर के संपन्न कायस्थ परिवारों को दैनिक संकल्प दान योजना से जोड़कर स्थानीय स्तर पर जरूरतमंद परिवारों की मदद की जाएगी।
ज्ञात हो चित्रगुप्त प्रकट्योत्सव पर संस्था ने कायस्थ समाज के जरूरतमंद परिवारों के हितार्थ दैनिक संकल्प दान योजना शुरू की और संकल्प दाताओं को राशि इकठ्ठा करने के लिए एक गुल्लक दी। जिसमें रोज पैसे इकट्ठे कर उस राशि से जरूरतमंद परिवार की मदद की जा सकेगी। राशन के लिए मोबाइल से ऑनलाइन फॉर्म भरवाते हैं, जो नि:शुल्क है। उसके बाद संस्था संबंधित परिवार को जरूरत है या नहीं, इसका वैरिफिकेशन करती है।
कायस्थों का खान-पान 01 : कैसे सजती है लालाओं की रसोई, क्या पकता है उसमें
कायस्थों के खानपान की खास रवायतें और जायका रहा है. उनकी रसोई ने विभिन्न संस्कृतियों के खानपान को अपने तरीके से इनोवेट किया तो इसे नए रंग और स्वाद लेकर लजीज बनाया. कायस्थों की किचन में खास व्यंजनों की इस खानपान यात्रा की सीरीज की पहली कड़ी.
ये बात कई साल पहले की है. बनारस में कायस्थों के मोहल्ले से निकलते हुए हर घर के बाहर पकते मीट की गंध नथुनों में भर रही थी. साथ चल रहे कजन ने मेरी ओर देखते हुए तपाक से कहा, “ललवन के मुहल्लवां से जब संडे में निकलबा त पता लग जाई कि हर घर में मटन पकत बा.” ये वाकई सच है.
बनारस के अर्दली बाजार में काफी बड़ी संख्या में कायस्थ रहते हैं. रविवार को जब यहां के मोहल्लों से दोपहर में निकलें तो हर घर से आती गंघ बता देगी कि अंदर क्या पक रहा है. ये हालत पूर्वी उत्तर प्रदेश के तकरीबन उन सभी जगहों की है, जहां कायस्थ अच्छी खासी तादाद में रहते हैं.
हकीकत यही है. उत्तर भारत में अब भी अगर आप किसी कायस्थ के घर संडे में जाएं तो किचन में मीट जरूर पकता मिल सकता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में कायस्थों को लाला भी बोला जाता है. देशभर में फैले कायस्थों की खास पहचान का एक हिस्सा उनका खान-पान भी है. संडे में जब कायस्थों के घर जब मीट बनता है तो अमूमन इसे बनाने का जिम्मा पुरुष ज्यादा संभालते हैं. मैने अपने तमाम रिश्तेदारों को बखूबी ये काम करते देखा है.
मैं ऐसे घर का हूं, जहां मेरे पिता पक्ष में कोई मीट नहीं खाता. मां पक्ष में नाना पक्के सत्संगी लेकिन नानी को खूब शौक था. जौनपुर के ननिहाल में हर संडे नानी की रसोई हमेशा मुख्य रसोई से परे खिसक जाती थी, बर्तन भी अलग होते थे. क्योंकि उस दिन वो मीट बनाती थीं. वो इसे कैसे बनाती थीं. वो कितना लजीज होता था, ये किस्सा आगे. जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के कायस्थों की रसोई और खान-पान के बारे में चर्चा करूंगा.
से तो कायस्थों के खानपान पर कई किताबें भी आई हैं, उसमें एक खास किताब “मिसेज एलसीज टेबल” है. इसकी लेखिका हैं अनूठी विशाल.इसने बखूबी उन तमाम व्यंजनों की बात की है, जो कायस्थ रसोई से बनकर उनके खाने की टेबल पर सजती है. यहां ये भी साफ कर दूं कि आमतौर पर मैं जिन व्यंजनों का जिक्र करूंगा, वो आमतौर पर कायस्थों ने मुगलों, अंग्रेजों और आंचलिक खानों से लेकर खुद कुछ इनोवेट किया और कुछ अपने तरीके से विकसित किया, उसे खास जायकों में ढाल दिया.
कायस्थों की रसोई कैसे फली-फूली
माना जाता है कि भारत में लजीज खानों की खास परंपरा कायस्थों के किचन से निकली है. कायस्थों में तमाम तरह सरनेम हैं. खान-पान की असली परंपरा और रवायतों में माथुर कायस्थों की देन ज्यादा है. खाने को लेकर उन्होंने खूब इनोवेशन किया. कायस्थों की रसोई के खाने अगर मुगल दस्तरख्वान का फ्यूजन हैं तो बाद में ब्रिटिश राज में उनकी अंग्रेजों के साथ शोहबत भी. हालांकि पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस, गोरखपुर, आजमगढ़ और जौनपुर में रहने वाले श्रीवास्तव भी खुद को कुछ कम नहीं मानते.
मेरे एक बॉस अक्सर मीटिंग कायस्थों के लाजवाब खानपान पर चर्चा करते थे. उनका मानना था कि कायस्थों को अपने बेहतरीन खानपान के कारण होटल जरूर चलाना चाहिए. उनका कहना होता था कि कायस्थ अगर खानपान की पुरानी परंपरा को जीवित कर लें तो उनसे बेहतर ये काम कोई कर ही नहीं सकता.
मुगलों के साथ काम करते हुए खानों को और समृद्ध किया
वैसे कायस्थों का इतिहास पहली और दूसरी सदी से मिलता है, शुरुआती सदियों में उन्होंने कश्मीर से लेकर कई राज्यों या रियासतों पर राज भी किया लेकिन इतिहास की मुख्यधारा में उन्हें वो जगह मिल नहीं पाई. वैसे कायस्थों की जमात मुख्य तौर पर तब चर्चा में ज्यादा आई जब मुगल भारत आए. तब फारसी में लिखा-पढ़ी, चकबंदी और अदालती कामकाज के नए तौरतरीके शुरू हुए. कायस्थों ने फटाफट फारसी सीखी और मुगल बादशाहों के प्रशासन, वित्त महकमों और अदालतों में मुलाजिम और अधिकारी बन गए.
क्या खाते-पीते थे मुगल
लेखक अशोक कुमार वर्मा की एक किताब है, “कायस्थों की सामाजिक पृष्ठभूमि”. वो कहती है, “जब मुगल भारत आए तो कायस्थ मुस्लिमों की तरह रहने लगे. उनके खाने के तौरतरीके भी मुस्लिमों की तरह हो गए. वो बीफ छोड़कर सबकुछ खाते थे. मुगलों के भोजन का आनंद लेते थे. मदिरासेवी थे.” 14वीं सदी में भारत आए मोरक्कन यात्री इब्ने बबूता ने अपने यात्रा वृत्तांत यानि रिह्ला में लिखा, “मुगलों में वाइन को लेकर खास आकर्षण था. अकबर के बारे में कहा जाता है कि वो शाकाहारी और शराब से दूर रहने वाला शासक था. कभी-कभार ही मीट का सेवन करता था. औरंगजेब ने तो शराब सेवन के खिलाफ कानून ही पास कर दिया था. हालांकि उसकी कुंवारी बहन जहांआरा बेगम खूब वाइन पीती थी. जो विदेशों से भी उसके पास पहुंचती थी.
कायस्थ हमेशा खाने-पीने के शौकीन रहे हैं
जमाना बदल गया है. खानपान और पीने-पिलाने की रवायतें बदल रही हैं. हरिवंशराय बच्चन दशद्वार से सोपान तक में लिख गए, ” मेरे खून में तो मेरी सात पुश्तों के कारण हाला भरी पड़ी है, बेशक मैने कभी हाथ तक नहीं लगाया.”.कायस्थ हमेशा से खाने-पीने के शौकीन रहे हैं. लेकिन ये सब भी उन्होंने एक स्टाइल के साथ किया. आज भी अगर पुराने कायस्थ परिवारों से बात करिए या उन परिवारों से ताल्लुक रखने वालों से बात करिए तो वो बताएंगे कि किस तरह कायस्थों की कोठियों में बेहतरीन खानपान, गीत-संगीत और शास्त्रीय सुरों की महफिलें सजा करती थीं. जिस तरह बंगालियों के बारे में माना जाता है कि हर बंगाली घर में आपको अच्छा खाने-पीने, गाने और पढ़ने वाले लोग जरूर मिल जाएंगे, कुछ वैसा ही कायस्थों को लेकर कहा जाता रहा है.
ओहो, भरवां व्यंजनों का क्या लजीज अंदाज
भरवों और तमाम तरह के पराठों का जो अंदाज आप अब खानपान में देखते हैं, वो मुगलों की पाकशाला से जरूर निकले लेकिन उसका असली भारतीयकरण कायस्थों ने किया. मुगल जब भारत आए तो उन्हें यहां जो मूल सब्जियां मिलीं, उसमें करेला, लौकी, तोरई, परवल और बैंगन जैसी सब्जियां थीं. उनके मुख्य खानसामा ने करेला और परवल को दस्तरख्वान के लिए चुना, क्योंकि उन्हें लगा कि ये मुगल बादशाह और उनके परिवार को पसंद आएगी. लेकिन उन्होंने एक काम और किया. इन दोनों सब्जियों के ऊपर चीरा लगाकर उन्होंने इसे अंदर से खाली किया. भुना मीट कीमा डालकर इसे तंदूर में पकाया.
बेशक ये जायका लाजवाब था. कायस्थों ने इसे अपने तरीके से पकाया. उन्होंने करेला, बैंगन, परवल में सौंफ, लौंग, इलायची, आजवाइन, जीरे और धनिया जैसे मसालों और प्याज का मिश्रण भूनकर भरा. कुछ दशक पहले तक किसी और घर में पूरे खड़े मसालें मिलें या नहीं मिलें लेकिन कायस्थों के घरों में ये अलग-अलग बरनियों या छोटे डिब्बों में मौजूद रहते थे. उन्हें हर मसाले की खासियतों का अंदाज था.
सिलबट्टे पर पिसाई और फिर हल्के हल्के भुनाई
बात भरवों की हो रही है. खड़े मसालों को प्याज और लहसुन के साथ सिलबट्टे पर पीसा जाता था. बने हुए पेस्ट को कढ़ाई पर भुना जाता था. फिर इसे करेला, बैंगन, परवल, आलू, मिर्च आदि में अंदर भरकर कड़ाही में तेल के साथ देर तक फ्राई किया जाता था. कड़ाही इस तरह ढकी होती थी कि भुनी हुई सब्जियों से निकल रही फ्यूम्स उन्हीं में जज्ब होती रहे. आंच मध्यम होती थी कि वो जले नहीं. बीच-बीच में इतनी मुलायमित के साथ उस पर कलछुल चलाया जाता था कि हर ओर आंच प्रापर लगती रहे. आज भी अगर आप कायस्थ रसोई में तरीके से बने इन भरवां व्यंजनों को चखेंगे तो वाह-वाह कर उठेंगे. बैंगन के भरवां का अंदाज ये होता है कि जीभ पर आते ही ये नमकीन माधुर्य के साथ घुलने सा लगेगा. एक नजाकत देगा और फिर इसका भरवा मसाला मिश्रण एक डांस सा करता लगेगा. परवल का भरवां बाहर से थोड़ा पपड़ीनुमा होगा तो अंदर से लजीज मसालेदार. करेले का भरवां बाहर से थोड़ा नरम थोड़ा कड़वा और अंदर से मस्त-मस्त.
दरअसल देश में पहली बार भरवों की शुरुआत इसी अंदाज में कायस्थों के किचन में हुई. हर मसाले के अपने चिकित्सीय मायने भी होते थे. यहां तक मुगलों के बारे में भी कहा गया है कि मुगल पाकशाला का मुख्य खानसामा हमेशा अगर किसी नए व्यंजन की तैयारी करता था तो शाही वैद्य से मसालों के बारे में हमेशा राय-मश्विरा जरूर कर लेता था. (जारी रहेगा)
साभार – जीवन शैली / न्यूज़ 18 हिंदी /कायस्थों का खान-पान 01
क्या एक छोटी सी गुल्लक समाज के जरूरतमंदों के तमाम दुख दर्दों को भी मिटा सकती है? ‘दैनिक संकल्प दान’ वाली एक गुल्लक सिर्फ एक समाज का ही नहीं पूरे देश का दुख दर्द मिटा सकती है।
क्या एक छोटी सी गुल्लक समाज के जरूरतमंदों के तमाम दुख दर्दों को भी मिटा सकती है? सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था के पदाधिकारियों के एक संकल्प को जानकर आप आश्चर्य किये बिना नहीं रहेंगे। हर रोज महज दो, पांच रुपया और ‘दैनिक संकल्प दान’ वाली एक गुल्लक सिर्फ एक समाज का ही नहीं पूरे देश का दुख दर्द मिटा सकती है। जरा सोचकर देखिए यदि ऐसा ही हो तो साल भर में एक बहुत बड़ी राशि इकट्ठा की जा सकती है? सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था ने कायस्थ समाज के परिवारों और परिजनों की मदद से ‘दैनिक संकल्प दान’ वाली इस गुल्लक में हर साल लाखों रुपए की राशि इकट्ठा करने का संकल्प लिया है।
चित्रगुप्त प्राकट्योत्सव पर ‘दैनिक संकल्प दान कोष’ की स्थापना
चित्रगुप्त प्राकट्योत्सव कायस्थ समाज के लिए सबसे अहम् दिन है। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह समाज के आराध्यदेव भगवान् चित्रगुप्त जी प्रकट होने का दिवस है, बल्कि इसलिए कि इसी दिन समाज के वंचितों की मदद के लिए मदद की अनूठी योजना की नींव रखी। भगवान चित्रगुप्त जी के मार्ग पर चलते हुए कायस्थ समाज के परिवारों ने इस दिन ‘दैनिक संकल्प दान कोष’ की स्थापना की और ये संकल्प लिया कि रोज इस कोष के लिए कुछ न कुछ पैसा जमा करेंगे और संकल्प दान कोष में जितना पैसा जमा होगा उससे समाज के गरीब, असहाय और जरूरतमंदों की मदद की करेंगें।
दैनिक दान का संकल्प लेकर करेंगे अपनों की मदद
किसी एक व्यक्ति पर बोझ भी ना पड़े और जरूरतमंदों की बड़ी से बड़ी मदद की जा सके, इसके लिए सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था ने बेहद अनूठा रास्ता खोज निकाला है। भारत के कोने कोने में कायस्थ परिवार हैं। समाज के सभी परिवार घर में एक दैनिक संकल्प दान गुल्लक रखेंगें। और इस गुल्लक में परिवार का हर सदस्य प्रतिदिन स्वेक्छा से कुछ न कुछ राशि डालेगा। हर महीने इस गुल्लक में जो पैसा जमा होगा उसे इकट्ठा करने के लिए संस्था के प्रतिनिधि उन परिवारों के घर जाएंगे। परिवार के सामने गुल्लक से पैसा निकाला जाएगा और उसकी बकायदा डिजिटल रसीद भी दी जाएगी। जिस पर परिवार के मुखिया की यूनिक आईडी होगी।
देखते ही देखते इकट्ठा हो जाएंगे लाखों रुपए
हो सकता है लोग इसे मजाक समझें कि पांच, दस रुपए से भला किसी की क्या मदद हो सकती है, लेकिन जरा सोचकर देखिए कि महज दो, पांच, दस रुपया रोज गुल्लक में डालने से किसी को शायद ही कोई परेशानी हो, लेकिन जब यह पैसा एक जगह इकट्ठा होगा और साल भर बाद जब इसकी गितनी होगी तो कितने रुपए होंगे? सोचिये ये लाखों में हो जायेंगें संस्था के पदाधिकारियों का सीधा सा गणित है कि एक परिवार में दैनिक पांच, दस रुपये और जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ, पूवजों की जयंती, पुण्यतिथि पर एक गुल्लक में कम से कम 1000 रुपये भी डाले तो हज़ार गुल्लक में 10 लाख जमा होंगें । इस तरह से हर महीने एक लाख और हर साल करीब 12 लाख रुपए ‘दैनिक संकल्प दान कोष’ में जमा हो जाएंगे। कोष को बढ़ाने के साथ ही यह राशि कई गुना हो जाएगी। इस पैसे को जमा कराने के लिए बैंक में बकायदा खाता खुलवाया गया और सारा हिसाब कायस्थ समाज वेब पोर्टल कायस्थ समाज डॉट इन पर सार्वजनिक है।
इस तरह करेगा कायस्थ कायस्थ की मदद
संस्था के अधिष्ठाता वेद आशीष श्रीवास्तव का कहना हैं कि सरकार भी किस-किस की मदद करेगी इसलिए मानवता के उत्थान के लिए समाज को आगे आना ही होगा। ‘दैनिक संकल्प दान कोष’ में जमा राशि के 25 फीसदी राशि को शिक्षा में 25 फीसदी राशि चित्रगुप्त मंदिरों के निर्माण के लिए 50 फीसदी राशि को जरूरतमंदों के लिए। सब मिलकर एक कमजोर की थोड़ी-थोड़ी मदद करें तो समाज में समानता का भाव आ सकता है। इस उद्देश्य को लेकर दैनिक संकल्प दान की योजना शुरू की गयी है।
ऑनलाइन दैनिक संकल्प दान के लिए qr upi पेमेंट
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जब से दुनिया में इंटरनेट का विकास हुआ है, हर कार्य को करने का तरीका बदला है। जहाँ पुराने समय में दान के तरीकों में डोर-टू-डोर कलेक्शन, चैरिटी इवेंट्स, या रणनीतिक स्थानों में डोनेशन बॉक्स रखना प्रचलित था, आज वहीं ऑनलाइन दान का ज़माना आ गया है। आज लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वह दान के लिए पुराने तरीकों का उपयोग करें, कई बार ट्रेडिशनल तरीकों का ना उपयोग कर पाने के कारणों में भौगोलिक बाधाएँ और पारदर्शिता की चिंताएँ भी शामिल हो सकती हैं। वर्तमान में ऑनलाइन दान का महत्त्व कई कारणों से बढ़ रहा है, और इन में भारत सबसे पहले नंबर पर है, अब दानदाता केवल एक क्लिक के साथ, भौगोलिक सीमाओं की चिंता किए बिना किसी भी समय अपने घर बैठकर आराम से दैनिक संकल्प दान दे सकते हैं। ऑनलाइन दान विकल्प ने दैनिक संकल्प दान की प्रक्रिया को आसान बना दिया है। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन दैनिक संकल्प दान प्लेटफॉर्म पर, दानदाता दिए गए दान की वास्तविक स्थिति का पता लगा सकते हैं, वह यह भी देख सकते हैं कि दान की राशि का किस प्रकार उपयोग किया जा रहा है l
आज ही जुड़िये ….
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भीमसेनी निर्जला एकादशी के अवसर पर पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ महिला काव्य मंच पर वरिष्ठ लेखिका उषा सक्सेनाकी कलम से
भीमसेनी निर्जला एकादशी:
ज्येष्ठमाह शुक्ल पक्ष की यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण है । नौतपा के ताप के मध्य इस एकादशी का होना व्रतधारी मानव की सबसे कठिन परीक्षा है।इसमें आप जल भी नहीं पी सकते इसीलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं । एक बार जब पाडव द्यूत क्रीड़ा में सबकुछ हारने के पश्चात वन में थे तब श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये । तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना यश सम्मान और साम्राज्य वापिस पाने के लिये पूंछा कि :-हे माधव!हमें कोई ऐसा व्रत औल उपाय कहें जिसके करने से हम अपना खोया हुआ राज्य और सम्मान पा सकें । तब श्रीकृष्ण ने उन् से हर माह की दोनों एकादशियों का फल बतलाते हुये कहा कि आप अपने भाईयों और द्रौपदी के सहित एकादशी का व्रत करिये जिसके करने से आपको उसके फल स्वरू खोया राज्य और सम्मान प्राप्त होगा ।
यह सुनकर भीम ने कहा :-हे माधव! मुझसे भूख सहन नही होती तो फिर मैं वर्ष की इन चौबीस एकादशियों का व्रत कैसे कर पाऊंगा ।आपतो मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाईये जिसके एक दिन करने पर ही इन सभी का फल प्राप्त हो।भीम की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा -भीम भैया फिर आपके लिये केवल एक ही व्रत है ज्येष्ठमाह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी । जिसमें कुछ भी फलाहार तो क्या आप पानी भी नहींले सकते ।चौबीस की जगह केवल एक यही सबसे अधिक ताप देने वाली एकादशी ओ ही निराहार निर्जला रहकर एक दिन का कष्ट भोगते हुये कर लीजिये ।इसके करने से आपको सभी एकादशियों के व्रत को करने का फल प्राप्त होगा ।
भीम ने कुछ क्षण सोचते हुये कहा- फिर ठीक है , माधव ! खोया हुआ यश सम्मान और साम्राज्य पाने के लिये इतना कष्ट तो मुझे सहन करना ही पड़ेगा कहते हुये भीम ने इस एकादशी के कठिन व्रत को किया जिसके कारण इसका दूसरा नाम भीम के नाम पर भीम सेनी एकादशी पड़ा ।
इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु के* ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय*का जाप करते हुये उनके मंदिर में जाकर उनका विधि-से पूजाकर पंडित एवं ब्राह्मणों को मिट्टी के घड़े में जल भर उसे नयेवस्त्र से ढककर कुछ मुद्राओं सहित ब्राह्मण को दान देना चाहिये इस दिन दान में वस्त्र ,छतरी एवं उपाहन (चरण पादुका)दान देने का विशेष महत्व है।
एकादशी की उत्पत्ति की कथा :-प्राचीन काल में मुसासुर नामक असुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त करते हुये सभी देवताओं को कष्ट देने लगा जिससे भय त्रस्त होकर सभी भगवान विष्णु की शरण में गये ।उस असुर वध कोई नारी ही कर सकती थी अत: भगवान विष्णु के साथ सभी ने देवी योगमाया का स्मरण करते हुयेउनसे उस असुर के वध की प्रार्थना की । देवी ने सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर उनके कष्ट के निवारण के लिये उन्हें वचन देकर मुरासुर के साथ युद्ध करते हुये उसका वध किया ।जिस दिन योगमायाज्ञका प्राकट्य हुआ उसे एकादशी की उत्पत्ति के रूप में मान कर भगवान विष्णु ने देवी को समर्पित किया । इस तरह भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली देवी योगमाया ही एकादशी हैं जो विष्णु भगवान को एकादशी के रूप में सबसे प्रिय हैं ।जै एकादशी रूपिणी योगमाया एवं भगवान विष्णु की ।
ऊंँ नमो भागवते वासुदेवाय।
उषा सक्सेना, भोपाल मध्यप्रदेश
रचनाकार का परिचय: मृदुभाषी और सहज स्वभाव से धनी श्रीमती सुषमा श्रीवास्तव ‘सजल’ l लेखन विषय – कविता, मुक्तक, लोक गीत, दोहा, भजन, सामाजिक, धार्मिक
रचनाकार का परिचय
श्रीमती सुषमा श्रीवास्तव ‘सजल’
पति स्व. श्री ए.के. श्रीवास्तव
दो बेटे- अमित श्रीवास्तव
म.प्र.वि. मंडल भोपाल
अतुल श्रीवास्तव
idbi बैक मुम्बई
पिता- श्री पी.डी.श्रीवास्तव
माता- श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव
शिक्षा – बी.ए. दो वर्ष का आयुर्वेद डिप्लोमा
संपर्क सूत्र- 7566972769
भोपाल, मध्यप्रदेश
15 वर्ष तक प्राईवेट स्कूल मे शिक्षिका के रुप मे कार्यरत रही|
2015 से कवितायें, मुक्तक, लोक गीत, दोहा, भजन सामाजिक,धार्मिक विषय पर लेखन|
भूर्ण हत्या, आत्महत्या, शराब रोक, गाय माता, नेत्रदान, हरियाली, जैसे विषय पर रचना लिखकर लोगो को जागरूक करना|
कई साहित्यिक संस्थाओ द्वारा सम्मान प्राप्त है|
5 साझा संकलन मे रचनायें प्रकाशित हुई|
आकाशवाणी में कविता पाठ, पत्र-पत्रिकाओं मे रचनाऐं प्रकाशित होती रहती है|
शीघ्र ही कविताओं की पुस्तक प्रकाशित होने वाली है|
एक सफल मंचीय कवियेत्री|
अखिल भारतीय कायस्थ सभा की सांस्कृतिक सचिव है|
अखिल भारतीय कला मंदिर, प्रभात साहित्य परिषद्, तुलसी साहित्य अकादमी की सदस्य एवं पदाधिकारी के रूप में अपनी सेवा दे रही है|
अंतररष्ट्रीय कायस्थ महिला काव्य मंच से जुडी है l मंच आपकी रचना प्रकाशित होती है
2022 से विवाह योग्य बताकर निशुल्क और निस्वार्थ भाव से अपने ही परिचित रिश्ते बताने का नेक काम कर रही है, उनका मानना है कि रिश्ते तो ईश्वर बनाता है लेकिन हम समाज में रहकर थोड़ा सहयोग कर सकें तो यह हमारा सौभाग्य है|
समाज की महिलाओं का संगठन बनाया है जिसका नाम ( कायस्थ सेवा निधि परिवार है ) व्हाट्सप्प ग्रुप बना है, जिसमे समाज की कांलोनी की कम से कम पचास महिलायें शामिल है,
जिसका उदेंश्य समाज की महिलाओं का हर माह मिलना-जुलना और सामाजिक गतिविधियों पर विचार करना ताकि हमारे बच्चों के विवाह में परेशानी न हो और एक दूसरे की मदद कर सके|
सभी महिलायें न्यूनतम राशि प्रत्येक महिला से100 /रूपये एकत्रित करके हर माह अत्यंत जरूरतमंद
को सहयोग के रूप जरूरत का सामान देंते है|
तन-मन ,धन से निस्वार्थ सामाजिक सेवा कर गर्व का अनुभवी करती है|
हर क्षेत्र मे सक्रियता से जिम्मेदारी निभाती है, मृदुभाषी और सहज स्वभाव से धनी है|
कायस्थ अंधभक्त नहीं राष्ट्रभक्त हैं और इस समाज की राष्ट्रभक्ति पर किसी को संदेह नहीं होनी चाहिये - अजीत कुमार सिन्हा
कायस्थ अंधभक्त नहीं राष्ट्रभक्त हैं और इस समाज की राष्ट्रभक्ति पर किसी को संदेह नहीं होनी चाहिये
दिल्ली - नेताजी सुभाष सेना के कमांडर - इन - चीफ राष्ट्रीय अमन महासंघ के सर महासंघ दिग्दर्शक कायस्था फाउंडेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और कायस्था चेतना सप्ताहिक समाचार पत्र के कार्यकारी सम्पादक अजीत सिन्हा ने कहा कि कायस्थों की राष्ट्रभक्ति पर किसी को संदेह नहीं होनी चाहिए क्योंकि जिस समाज ने पूरे भारत वर्ष पर कभी अखंड राज की हो वे भला अपने देश के बारे में कैसे गलत सोंच सकते हैं और अपने देश को कमजोर कैसे कर सकते हैं और आज लोग कायस्थों पर भाजपा की अंध भक्ति जैसे आरोप लगाते हैं जो कि सही नहीं है और ये प्रामाणिक भी नहीं क्योंकि लोकनायक जय प्रकाश जैसे नेता जो कायस्थ समाज से ही आते हैं के बदौलत ही कॉंग्रेस मुक्त भारत की लक्षण देखी जा रही है क्योंकि जय प्रकाश नारायण जी ने कॉंग्रेस द्वारा डिक्लेयड इमर्जेंसी के बाद ही ये नारा दिया था कि कॉंग्रेस सत्ता छोड़ो जनता आती है और इसके परिणामस्वरुप पूरे भारत से कॉंग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था और जनता पार्टी की अभ्युदय हुई थी हालांकि जनता पार्टी की शासन अधिक दिनों तक नहीं चली लेकिन उससे ये हुआ कि कई छोटी पार्टियों का जन्म हुआ जो बाद में जाकर एक - दो बड़ी भी बन गई और उनमें एक सत्तासीन भाजपा भी है जो दो सांसदों से अपनी सफर की शुरुआत कर 2014 से लगातार अभी तक मोदी जी के नेतृत्व में शासन कर रही है और देश के सशक्तिकरण में अपनी महत्तवपूर्ण योगदान दे रही है लेकिन जैसे - जैसे कायस्थ भाजपा के नजदीक आते गये वैसे - वैसे भाजपा कायस्थों से अपनी दूरी बनाती गई और 2024 के चुनाव में उन्होंने कायस्थों को एक भी टिकट नहीं दिया जिसका परिणाम ये हुआ कि कायस्थों की नाराजगी जगजाहिर हो गई और अनेकों कायस्थों ने नोटा को दबाकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कई कायस्थ बाहुल्य सीट से भाजपा हार गई फिर कायस्थों पर भाजपा की अंधभक्त होने का आरोप लगाना उचित नहीं जान पड़ता है। और इसी तरह से कायस्थों की उपेक्षा राजनीतिक पार्टियों द्वारा होती रही तो एक दिन जय प्रकाश नारायण की तरह इसी समाज से एक नेता निकलेगा और भाजपा मुक्त शासन की बिगुल फूँक देगा इसलिये भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस पर विचार करनी चाहिए और सबका साथ सबका विकास के उनके अपने नारे को चरितार्थ करने की प्रयास करनी चाहिये।
विदित हो कि कायस्थ समाज न देश की मुफ्तखोरी योजना का हिस्सा है और कुछ होंगे भी तो अपनी गरीबी की वज़ह से क्योंकि कायस्थ समाज कर्मयोगी है और अपनी जरूरतों को पूरा करना जानता है और जिस समाज के शांति वर्ग ने मुफ्तखोरी का लाभ लिया उसने भाजपा की जगह आई. एन. डि. आई. ए. गठबंधन के दलों को वोट दिया लेकिन कायस्थ समाज जो कि राष्ट्रभक्त समाज है उनके लोंगो को टिकट नहीं देने से भाजपा अपने पैर में स्वयं कुल्हाड़ी मार रही है। उत्तरप्रदेश के कुछेक सीटों को छोड़ इस बार भी कायस्थों ने भाजपा को अन्य राज्यों में भरपूर वोट दिया है और बिहार के पटना साहिब सीट से कायस्थ उम्मीदवार रविशंकर प्रसाद जी का विजयी होना इस बात का प्रमाण है। और इस तरह से कई कायस्थ राजनेताओं भाजपा और अन्य दलों से जीतना भी एक प्रमाण है इसलिये राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव में कायस्थों की उम्मीदवारी भाजपा और अन्य दलों की तरफ से पक्की होनी चाहिये ऐसी कायस्थ समाज की अपेक्षा है।
जय हिंद!!
साभार - अजीत कुमार सिन्हा, सोत्र - kayastha news