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सदा जिनका आशीर्वाद रहता साथ । जिनसे सीखा सेवा करना निस्वार्थ ।। ब्रम्हलीन हो कर भी रहते सदा साथ । सादर नमन जयंती दिवस पर आज ।।
सदा जिनका आशीर्वाद रहता साथ । जिनसे सीखा सेवा करना निस्वार्थ ।। ब्रम्हलीन हो कर भी रहते सदा साथ ।
सादर नमन जयंती दिवस पर आज ।।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कैलाश सारंग के पार्थिव शरीर को कंधा दिया है।
मेरी संवेदनाएं विवेक और विश्वास जी के साथ हैं। श्रद्धेय बाबूजी का आशीर्वाद और स्नेह उन पर सदैव बना रहे, ईश्वर से ही यहीं प्रार्थना करता हूं।
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वैदिक ज्योतिष, हस्तरेखा , वास्तु-शास्त्र,जन्मकुंडली मिलान, हस्तरेखा से जन्मकुंडली, अंक ज्योतिष, फलित ज्योतिष सम्पर्क सूत्र:- +91 7078902500
गृह मंत्री ने कहा है कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुधीर सक्सेना मध्य प्रदेश के अगले पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) होंगे।
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुधीर सक्सेना मध्य प्रदेश के अगले पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) होंगे। केंद्र सरकार ने बुधवार को 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी सक्सेना को राज्य सरकार के अनुरोध पर उनके मूल कैडर में वापस भेज दिया।
भारत सरकार के सचिवालय, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के सचिवालय द्वारा 2 मार्च, 2022 को प्रभावी आदेश जारी किया गया था। आदेश के तुरंत बाद, यह स्पष्ट हो गया था कि सक्सेना को मध्य प्रदेश का अगला प्रमुख नियुक्त किया जाएगा। गौरतलब है कि मौजूदा डीजीपी विवेक जौहरी अगले कुछ दिनों में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं।
गृह मंत्री ने कहा है कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुधीर सक्सेना मध्य प्रदेश के अगले पुलिस महानिदेशक होंगे।
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुधीर सक्सेना मध्य प्रदेश के अगले पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) होंगे। केंद्र सरकार ने बुधवार को 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी सक्सेना को राज्य सरकार के अनुरोध पर उनके मूल कैडर में वापस भेज दिया। भारत सरकार के सचिवालय, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के सचिवालय द्वारा 2 मार्च, 2022 को प्रभावी आदेश जारी किया गया था। आदेश के तुरंत बाद, यह स्पष्ट हो गया था कि सक्सेना को मध्य प्रदेश का अगला प्रमुख नियुक्त किया जाएगा। गौरतलब है कि मौजूदा डीजीपी विवेक जौहरी अगले कुछ दिनों में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं।
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर डॉ. ऋतु खरे की रचना आपके कंधो पर
आपके कंधो पर
बार बार एक स्वप्न आकर
धर जाता मेरी आँखों पर,
मैं छोटी सी गोल मटोल सी
श्वेत फ्रॉक पर श्वेत रूमाल लटकाकर,
रसना गर्ल से केश सजाकर,
बड़े गर्व से अधिकार से
बैठी हूँ आपके कंधो पर।
घूमूँ एक रंगीन सा मेला
जिस पर दृष्टि रुके
वह खेलयंत्र मेरा,
त्रिकोणी पतंगे प्रतिसम गुब्बारे
बटोरे कितने चाँद सितारे
गुल्लक भर भर कर,
बड़े गर्व से अधिकार से
बैठकर आपके कंधो पर।
भोर हुयी तो थी मैं जैसे
एक नीरस श्वेतश्याम
चित्रपट के सेट पर,
ढीले खुदे पन्नो के धुआँरे
बिखरे उड़ते इधर उधर,
सूना बेरंग ही रहा था सदा
यह धुआँधारी नगर में
बसा दादी का घर,
मात्र स्वप्न ही था वह जहां
बड़े गर्व से अधिकार से
बैठी थी आपके कंधो पर।
संगमरमरी नगर
से फिसल निकल मैं,
सुमोहित रंगीली दुनिया से,
सुपोषित रसीले विषयों से,
पुकारते यंत्र अधिगम,
गले लगाती डेटा संरचना,
पुचकारता संगणक विज्ञान,
मीठी गोली खिलाते पाठ्य खनन,
सिर-चढ़ाते खगोल भूगोल,
पीठ थपथपाती त्रिकोणमिति ज्यामिति,
आधी रात धैर्य से गोदी में सुलाते तकनीकी शोधकार्य,
धुल गया धुंधला गया
वह स्वप्न जहां
बड़े गर्व से अधिकार से
बैठी थी आपके कंधो पर।
एकाएक आया
मध्यजीवन घोरसंकट,
मोहभंग हुआ
सुन सुन कर रंगो का शोर,
शिथिल पड़ी
पी पी कर रसों का घोल,
फिर सताने जगाने लगा
वही स्वप्न जहां
बड़े गर्व से अधिकार से
बैठी थी आपके कंधो पर।
बैठ कंधो पर अब
देख सकती थी सात समुन्दर पार,
वह धुआँरे ढेर बन चुके थे
क्रन्तिकारक काव्य संकलनों की कतार।
पुकारने लगे "भोर के गीत"
गले लगाने लगी "प्रभात फेरी"
पुचकारने लगे "रजनी के पल"
मीठी गोली खिलाने लगी "सुरबाला"
सिर-चढ़ाने लगे "सिर पर शोभित मुकुट हिमालय"
पीठ थपथपाने लगे "आज़ादी के पहले आज़ादी के बाद"
आधी रात धैर्य से गोदी में सुलाने लगे "विजन के फ़ूल"।
जड़ो में जकड़े काव्यरसों का
जबसे जलपान किया है,
शैशव के बारम्बार स्वप्न को
पूर्णतः भान लिया है,
उस श्वेतता में निहित इंद्रधनुष को
अंततः पहचान लिया है।
हे स्वप्नसम्राट! हे कविराज!
लो कवि बन ही गई मैं
गई मेरी भी अन्तःवाणी निखर,
गर्व से अधिकार से नहीं
विनम्रता से कर्त्तव्य से,
बैठी नहीं खड़ी हूँ आज
आपके स्वप्नमय महामय कंधो पर।
डॉ. ऋतु खरे
सन्दर्भ: https://en.wikipedia.org/wiki/indra_bahadur_khare
मेरे लोकल गार्जियन श्री कैलाश सारंग
मेरे लोकल गार्जियन श्री कैलाश सारंग - सर्वदमन पाठक
श्री कैलाश सारंग सियासत की उस संघर्षशील एवं जनता के सुख दुख में हिस्सेदारी करने वाली पीढी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अब भाजपा में ही अपनी पहचान खोती जा रही है । शिक्षक के रूप में अपना कैरियर शुरू करने वाले श्री सारंग को यदि आज न केवल राजनीतिक विरादरी बल्कि समाज के सभी वर्गों का स्नेह एवं आदर प्राप्त है तो इसका सबसे बडा कारण यही है कि वे लोगों से संबंधों के निर्वाह में दिमाग के साथ ही दिल का भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं । वे जब भाजपा ( तत्कालीन जनसंघ ) से पूर्णकालिक रूप से जुड़ने के लिये भोपाल आये तो उस समय पार्टी की जनता में उतनी पैठ नहीं थी । अलबत्ता कुशाभाऊ ठाकरे जैसे तपोनिष्ठ व्यक्तित्व का नेतृत्व पार्टी की बडी पूंजी थी । उस दौर में पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के लिये ऐसे व्यक्ति की जरूरत हुआ करती थी जिसमें अपना सामाजिक आधार बनाने एवं बुढाने की कुव्वत से और सारंग जी में इसकी पर्याप्त क्षमता थी । हालांकि शुरूआत में उनके हिस्से में पार्टी कार्यालय की जिम्मेदारी आई , लेकिन उन्होंने अपने इसी गुण के कारण पार्टी कार्यालय को जन संवाद का केन्द्र बना दिया ।
पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों के संचालन के लिये धन संग्रह तो उनका अहम दायित्व था ही लेकिन उनकी रणनीतिक चातुर्य से पार्टी के नेता काफी प्रभावित थे । श्री सुंदर लाल पटवा जब पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उनका निवास सियासी व्यूहरचना के केन्द्र के रूप में तब्दील हो गया । इस पावर हाउस की कमान सारंग जी के हाथ में थी । पार्टी में उनकी विशिष्ट भूमिका के कारण १९९० के दशक में उनका राजनीतिक कद भी बढा और वे पार्टी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेताओं की अग्रिम पंक्ति में शामिल से गए । उस समय पार्टी के प्रादेशिक उपाध्यक्ष , राज्य चुनाव समिति के सदस्य होने के अलावा प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण फोरम में उनकी हिस्सेदारी थी । इतना ही नहीं उन्हें पार्टी की ओर से राज्यसभा में भी भेजा गया लेकिन इन तमाम राजनीतिक उपलब्धियों के बावजूद सारंग जी में कभी भी अहम नहीं आया और वे सभी के लिये पूर्व सी सुलभता से उपलब्ध रहे ।
प्रदेश की राजधानी होने के कारण भोपाल में मुख्यमंत्री , तमाम मंत्रियों एवं विपक्ष के कद्दावर नेताओं की लंबी चौडी फोज अपने पूरे लाव लश्कर के साथ मौजूद होती है और उनके पास तमाम अधिकार भी होते हैं जिसके जरिये लोगों के हित साधकर उनकी सहानुभूति हासिल करने का पूरा पूरा अवसर भी उनके पास रहता है लेकिन श्री सारंग के जेहपूर्ण व्यवहार का ही चमत्कार है कि इन सभी की तुलना में कैलाश सारंग के निवास पर लोगों की कहीं अधिक आमदोरफ्त खेती है । इसकी वजह यही है कि दिली तौर पर लोग उनके ज्यादा करीब है और भरोसे के साथ अपने दुख दर्द , अपनी समस्याओं तथा अपने काम को लेकर उनसे मिलते हैं और उनके रिस्पान्स से उन्हें संतुष्टि भी होती है ।
उनका यह भरोसा रातो रात नहीं बना है बल्कि सारंग जी के स्वभाव में जो मिठास और जिंदादिली का अहसास है , यह भरोसा उसी का परिणाम है । सारंग जी उन लोगों में से नहीं हैं जिनके संबंध सिर्फ स्वार्थ पर टिके होते हैं । वे तो लोगों से दिल से मिलते हैं और उनके व्यक्तित्व की यही मिठास लोगों को अपना बना लेती है । संभवतः यह बरेली की मिट्टी का ही असर है जिसमें वे पले बढे हैं । उनका यह अपनेपन का दायरा वैयक्तिक स्तर पर ही सिमटा नहीं है बल्कि सामूहिकता के स्तर पर भी इसे महसूस किया जा सकता है । उनके रिश्तों की डोर को वे कभी भी कमजोर नहीं होने देते । शयद ही कभी ऐसा हुआ हो कि वे अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के सुख दुख के किसी अवसर पर उनके साथ खड़े न दिखे हों । इसी तरह भाजपा जिन आयोजनों में सारंग जी की मौजूदगी की अपेक्षा करती है , वे वहां अवश्य ही अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराना नहीं भूलते । लेकिन उनका यह राजनीतिक कर्मकांड उनके सामाजिक एवं धार्मिक सरोकारों में कभी आड़े नहीं आता । उनके स्वास्थ्य से जुड़ी विवशताओं को छोड़ दिया जाये तो होली के जुलूस में उनका शामिल होना तय ही होता है । उनके लिए यह महज औपचारिकता नहीं होती , बल्कि इस अवसर पर होली के रंगों में सराबोर हुए बिना उन्हें आनंद ही नहीं आता । हुरियारों के इस मेले में वे भी इस कदर घुल मिल जाते हैं कि उन्हें पहचानना मुश्किल से जाता है । घर पर भी गुलाल एवं रंगों का यह सिलसिला रात तक चलता रहता है । अन्य धार्मिक तथा सामाजिक समारोहों में भी वे आमंत्रित हो और उसके बावजूद न आएं , ऐसा हो ही नहीं सकता ।
दीपावली में तो वे अपने परिजनों तक ही नखुशियों का आदान प्रदान सीमित नहीं रखते बल्कि उनके दिल के करीब तमाम लोगों के साथ ये खुशियां बांटने की भरपूर कोशिश करते हैं ताकि उनके मन की देहरी भी प्रसन्नता के उजास से भरी रहे ।
वे मानवीय मनोविज्ञान के पारखी हैं और मन को पढने की उनकी यह कला काफी हद तक उनके संबंधों के दायरे को निरंतर बढ़ाने में मददगार होती है । आप मन के भावों को कितना भी छिपाने की कोशिश करें लेकिन वे इन्हें पढ ही लेते हैं और फिर आपको उसी के अनुसार वे डील करते हैं ।
मुझसे उनके परिचय की भी एक रोचक दास्तान है । इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तो सारे देश में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर दौड रही थी और इसलिये स्वाभाविक रूप से भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर विजय हासिल हुई । में उस समय भास्कर में था । सारंग जी ने भास्कर में फोन लगाया तो संयोग से मैं फोन पर था । उन्होंने अपने चिरपरिचित मस्ती भरे अंदाज में कहा कि यार तुम प्रेस वाले भाजपा को खूब हरवा रहे हो तो मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया कि भाजपा की गलत व्यूहरचना के कारण ही वह हार रही है । सारंग जी चौंकते हुये बोले कि आखिर व्यूटनचना में ऐसी क्या चूक हो गई ? मैंने कहा कि अटल जी पर पत्थरों की बारिश से वे घायल से गये तो सहानुभूति की लहर उनके पक्ष में से गई और वे मेहसाना से चुनाव जीत गये । यदि भाजपा अन्य स्थानों में भी अपने नेताओं को पिटवाती तो शायद भाजपा ज्यादा सीटें जीतती । उन्होंने मुझसे कहा शैतान कहीं के । मेरे घर आ । फिर में तेरी खबर लेता हूँ । में दूसरे दिन सुबह उनके शीशमहल स्थित निवास पर गया और फिर तो उनसे संबंध कुछ इतने प्रगाढ हुये कि वे मेरे लोकल गार्जियन ही बन गये । यह शायद उनके व्यवहार में घुली मिसरी का ही असर था कि मैंने कई साल तक उनके मेग्जीनों के लिये कार्य किया ।
मैं कोई अनोखा पत्रकार नहीं हुं जिनके सारंग जी से अंतरंग संबंध है । न केवल शहर के बल्कि प्रदेश एवं देश के पत्रकारों से उनके काफी नजदीकी ताल्लुकात हैं और सच तो यह है कि भोपाल के बहुत से पत्रकारों में अपने कैरियर के शुरुआती दौर में सारंग जी की मेग्जीन के लिये काम किया है ।
संघ की छाया में उनकी जिंदगी का काफी बड़ा हिस्सा गुजरा है । लेकिन उनके व्यक्तित्व में अजीब सा संतुलन है । सभी धर्म , संप्रदाय के लोग उनके परिचय एवं मित्रता के दायरे में शामिल हैं । यदि कहा जाए कि उनके संबंधों में इंद्रधनुषी रंग बिखरे हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी ।
लेकिन उनकी किस्मत में भी विडंबना ने कुछ पीले चावल डाल दिये हैं और शायद इसी का असर है कि उन्होंने जिनके मार्ग में भलाई के फूल बिछाए , उनमें बहुतेरे लोग आज उनेकी राहों का कांटा बन गये हैं । सारंग जी के चेहरे पर जो मुस्कुराहट नाचती रहती है , वह सभी हैं लेकिन उनके सीने में कहीं गहरे संबंधों की इन उलटबांसियों का भी पीडाजनक अहसास मौजूद है । बहरहाल राहें यदि आसान हो तो चलने का आनंद ही क्या ? सारंग जी के मन में जो वसंत विराजता है उसमें पतझड को आनंद पर्व में तब्दील कर लेने का माद्दा है । बसंत के इस राज रथ को मेरी अनंत शुभकामनाएं ।
( लेखक- दैनिक जागरण , भोपाल में समाचार संपादक है )
उन्हें हमेशा परिणाम पसंद है
उन्हें हमेशा परिणाम पसंद है - अशफाक मुशहदी नदवी
संसार में बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो बाधाओं को चीरकर केवल परिणामों को प्राप्त करने के लिए सदैव प्रयत्नशील होते हैं । न तो वे स्वयं बहाने करते हैं और न उन्हें बहाने पसंद होते हैं । सम्माननीय सारंग जी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी हैं । उनके साथ काम करके मैंने यही सीखा कि समस्याएं तो आती रहती है लेकिन यदि आगे बढ़ना है । तो वर्णन समस्याओं का नहीं बल्कि लक्ष्य प्राप्ति का होना चाहिए ।
मेरी उनसे मुलाकात 1974 के आस - पास हुई । में भोपाल का रहने वाला हूँ । लिहाजा मैंने उन्हें देखा भी था और उनका नाम भी सुना था । हो सकता है कभी मुलाकात भी हुई हो जो मुझे याद नहीं हां 1974 की पहली विस्तृत और प्रभावी मुलाकात मुझे याद है । भारतीय जनता पार्टी के प्रभावी नेता जनाब आरिफ बेग से मेरा लंबा साथ रहा है । उस जमाने में श्री आरिफ बेग समाजवादी पार्टी के नेता थे और इसी दल के प्रतिनिधि के रूप में वे 1969 में मध्यप्रदेश में बनी संविद सरकार में जनसंघ के साथ मंत्री थे । जनसंघ के नेताओं को उन्होंने नजदीकी से देखा और वे जनसंघ में आ गए । तब श्री आरिफ बेग एक उर्दू साप्ताहिक अयाज निकाला करते थे । मैं इसी अखबार से जुड़ा हुआ था । बाद में फैसला हुआ कि अब अयाज का प्रकाशन पं . दीनदयाल विचार प्रकाशन केन्द्र करेगा । इसी सिलसिले में श्री बेग ने मुझे सारंग जी के पास भेजा । में पीरगेट पर जनसंघ कार्यालय गया । वहां से पता चला कि सारंग जी के बेटे विश्वास की तबियत खराब है और वे हमीदिया अस्पताल गए हैं । मैं हमीदिया अस्पताल पहुंचा । वहां सारंग जी अपने पुत्र विश्वास को गोद में लिए बैठे थे । मैंने अपना परिचय दिया । उन्होंने बात सुनी । मुझे काम समझाया और अयाज की नीतियां समझाई ।
पहली बार तो मुझे लगा कि जिस शख्स का बेटा बीमार है वह उसका इलाज करने अस्पताल आया है इस नाजुक मौके पर कैसे बात की जाए । किन्तु सारंग जी ने पूरी बात की इस बात ने मुझे बेहद प्रभावित किया । उनके सामने परिवार , बच्चे या दीगर समस्याओं का कोई मायने नहीं होता था । वे हमेशा काम को महत्व देते थे । उस जमाने में ठाकरे जी जनसंघ के सर्वेसर्वा हुआ करते थे । ठाकरे जी ने जो कहा सारंग जी उसे निर्धारित सीमा में पूरा करके दिया करते थे । न तो वे कोई किन्तु - परन्तु करते थे और न किसी से किन्तु - परन्तु सुनते थे । अयाज में किसी विशेषांक या अयाज के बैनर पर मुशायने आदि के काम करने में सारंग जी की प्रशासनिक क्षमता देखने का मौका मिला । वे कोई काम बताते तो फिर परिणाम ही पूछा करते थे ।
अयाज के संपादक के रूप में 1974 से 1991 तक मेरा सारंग जी का साथ रहा , प्रतिदिन बातें होती । कई बार सारंग जी से घंटों विभिन्न विषयों पर बातचीत होती । वे बहुत खुले और व्यापक विधान के स्वामी है । उनसे मुझे बहुत सीखने का मौका मिला । उनके 75 वर्ष पूर्ण होने पर में उन्हें शुभकामना देता हूं और मालिक से प्रार्थना करता हूं कि उनका स्नेह से भरा हाथ मेरे सिर पर सदा बना रहे ।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
अन्तर्राष्ट्रीय विभूति श्री कैलाश ना . सारंग
अन्तर्राष्ट्रीय विभूति श्री कैलाश ना . सारंग - विनीत खरे
भारतीय जनता पार्टी में एक राष्ट्रीय छवि निर्मित करने के बाद श्री कैलाश नारायण सारंग ने अपना अधिक समय देशभर के सभी राज्यों के दस करोड़ कायस्थों को एक मंच पर लाने में लगाया और आज देश की सीमाओं के बाहर निकलकर विदेशों में रहने वाले कायस्थों को अंतर्राष्ट्रीय मंच के माध्यम से अखिल भारतीय कायस्थ महासभा से जोड़कर बिखरी हुई कायस्थ जाति को मंचों पर एक साथ मिल बैठकर अपनी समस्याओं को हल करने का अवसर प्रदान किया ।
कायस्थों का संगठन , कायस्थों का इतिहास , कायस्थों की आरक्षण के कारण दुर्दशा , कायस्थों को अपना सम्मान बनाये रखने के प्रयासों को लेकर श्री सारंग ने देश के हर प्रांत का दौरा किया , एक बार नहीं बार बार दौरे किये । कायस्थों के अपने आप में खोये रहने वाले स्वभाव को वास्तविकता से परिचित करवाया और आज देश में “ भूतो न भवष्यति ” के रूप में कैलाश नारायण सारंग ने पूरे देश के कायस्थों को एक परिवार बनाकर एक ऐसे मुखिया , एक ऐसे पिता , एक ऐसे भाई , एक ऐसे मित्र के रूप में स्थापित किया कि वे करोड़ों कायस्थों की हृदय की धड़कन बन गये और आज लाखों करोड़ों कायस्थों को ना केवल नाम से पहचानते हैं बल्कि भलीभांति उनके सुख , दुख में शामिल होकर विलक्षण ऊर्जा का प्रदर्शन करते हैं और संदेश देते हैं कि अगर कायस्थ अब भी नहीं जागा तो अपना अस्तित्व पूरी तरह खो देगा ।
कल्पना कीजिये एक 75 वर्ष का इंसान जिसकी दो दो बार हृदय की शल्य चिकित्सा हो चुकी हो , वे अपने परिवार और बच्चों के लाख लाख बार मना करने पर भी न तो पार्टी का काम छोड़ते हैं और न कायस्थ महासभा का 75 वर्षीय युवा कैलाश नारायण सारंग सुबह से कार्यालय में बैठ जाते हैं और टेलीफोन से सम्पर्क साधना शुरू करते हैं , हर प्रांत , हर जिले और हर इकाई से सतत संपर्क चलता रहता है , रोज घड़ी जैसी चाबी भरी जाती है और कायस्थ संगठन से जुड़े हुए लोग जागृत बने रहकर देश में एक वातावरण निर्मित कर रहे हैं और वह दिन दूर नहीं जब कायस्थ अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा पाने में सफल हो जायेगा ।
सबसे अधिक बुद्धि और विवेक तथा कार्यकुशल होते हुए उच्चकोटि के प्रशासक और शासक होते हुए भी कायस्थ पिछड़ गया , आजादी के बाद सेवाओं में उसका प्रतिशत घटता गया और अब नाम मात्र का शेष है । श्री सारंग ने सबसे पहले देश को विध्वंस करने वाले आरक्षण को मिटाने के लिये जाति के आधार पर चलने वाले आरक्षण का विरोध किया और आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग की जिसे सर्वत्र सराहा गया । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आयोग बनाया और बात बनते बनते सरकार बदल गई , लेकिन हमारा संघर्ष जारी है ।
जब श्री सारंग अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के अध्यक्ष बने तब उन्होंने देशभर में संगठन खड़ा करने के बाद घोषणा की कि वे कायस्थों के देवता श्री चित्रगुप्त भगवान पर सीरियल बनायेगे , सुनने वालों को अजीब लगा , लाखों करोड़ों का यह कार्य कायस्थ महासभा कैसे करेगी और लोगों ने सुनकर भी विश्वास नहीं किया परंतु वाह रे सारंगजी ? कमाल कर दिया , करिश्मा दिखला दिया और समय सीमा के अन्तर्गत “ पाप पुण्य का लेखा जोखा ” नामक सीरियल बनाकर दूरदर्शन के डी.डी. वन चैनल पर उसका सोमवार से शुक्रवार तक दोपहर 1 से डेढ़ बजे तक रात में भी इसी समय सीरियल का प्रसारण हुआ । एपीसोड आगे बढ़ने लगे चित्रगुप्त भगवान रोज दिखने लगे और देश में ही नहीं हर जाति के लोगों ने सीरियल देखकर श्री चित्रगुप्त भगवान के बारे में विस्तार से जाना और सीरियल की सर्वत्र प्रशंसा कर श्री कैलाश नारायण सारंग को पत्र भेज भेजकर लाखों बधाइयां दीं , यह तो एक मिसाल है जिसे पूरे विश्व ने देखा , पहचाना और समझा गया और माना गया कि श्री सारंग ने एक असंभव कार्य करके चित्रगुप्त भगवान के कृतित्व को जानने का अवसर दिया साथ ही कायस्थों का सम्मान बढ़ाया ।
श्री सारंग ने बीड़ा उठाया है कि देश के कायस्थों का एक मुख्यालय दिल्ली में बनाया जाये और उसे एकेडमी का रूप दिया जाये जिसमें चित्रगुप्तजी का मंदिर होने के साथ कायस्थ इतिहास की विशाल लायब्रेरी , शोध की व्यवस्था , कायस्थ युवकों को उच्च पदों पर भेजने हेतु प्रशिक्षण , व्यवसायिक प्रशिक्षण , सभा भवन , सामुदायिक भवन सभी हो जहां देशभर के कायस्थ आकर ठहर भी सकें , ' कायस्थ ' की जानकारी प्राप्त कर सकें , काम शुरू हुआ , पैसा इकट्ठा हुआ , दिल्ली के द्वारका में जमीन खरीदी गई , नक्शा प्लान बना और अब निर्माण प्रारंभ होने की स्थिति में है ।
एक अनूठी प्रतिभा , अनूठा आत्मविश्वास , विलक्षण संकल्प शक्ति , विलक्षण सोच और विशालतम हृदय वाले श्री सारंग अपना स्वयं का खर्च करके पूरे देश में कायस्थ जाति को जागृत करके उन्हें संगठित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं , अब वे प्रांतों से जिलों की ओर देख रहे हैं फिर उनका सपना है कि भारत के हर प्रांत , हर जिले , हर तहसील , हर ब्लाक और यहां तक कि हर गांव में कायस्थ संगठन हो और कायस्थ की पहचान एक शक्ति के रूप में हो ।
यह सर्वेक्षण चौंकाने वाला है कि कायस्थ देश में 10 से 12 करोड़ हैं परंतु पहचान खोते जा रहे हैं दूसरी जातियां जो कायस्थों की तुलना में बहुत कम हैं अपनी संगठन की शक्ति के कारण देश में जानी जाती हैं । राजनैतिक परिदृश्य में उनकी मांग है पहचान है ।
आज श्री सारंग का अमृत महोत्सव है पूरी जाति के लिये गौरव की बात है वे ऐसे ही ऊर्जावान बने रहें , चित्रगुप्त भगवान उन्हें दिन प्रतिदिन और और शक्ति प्रदान करें और वे एक यशस्वी पिता की तरह कायस्थ जाति के लोगों को पुत्रवत सेठ दे देकर इतना अधिक जोड़ दें , कि देश में कभी भी कायस्थ के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार न हो ।
आइये हम सब मिलकर श्री सारंग का अमृत महोत्सव मनाते हुये उनके शतायु होने की कामना करते हुए नये उत्सव का इंतजार करें जब श्री सारंग अगले 25 वर्षों में अपने सारे संकल्पों को पूरा कर देश और विदेश के कायस्थों की एक माला पिरो चुके होंगे ।
( लेखक अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री हैं )
जीवेत शरदः शतम
जीवेत शरदः शतम - अच्युतानंद मिश्र
मध्यप्रदेश के हजारों पुराने और वरिष्ठ कार्यकर्ता इस तथ्य की गवाही | देंगे कि आदरणीय भाई कैलाश नारायण सारंग और उनका परिवार मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े उन चन्द परिवारों में शामिल है जिन्हें नींव के पत्थर के रूप में जाना जाता है । आदरणीय श्री कुशाभाऊ ठाकरे के अनन्य और अभिन्न सहयोगी रहे सारंग जी से मेरी पहली भेंट लगभग साढ़े चार दशक पूर्व दिल्ली में उस समय हुई थी जब वे मध्यप्रदेश जनसंघ के प्रदेश के प्रमुख थे और मैं उनसे अपने पत्र ' पान्चजन्य ' साप्ताहिक के लिए मध्यप्रदेश से जनसंघ के किसी आन्दोलन के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त करने गया था । प्रथम भेंट की स्मृति आज भी यथावत है और यह भी कि मध्यप्रदेश की राजनीति पर उनकी पकड़ और समझ उन दिनों भी कितनी गहरी थी । उन्हीं की दी हुई सूचनाओं के आधार पर मैंने एक विस्तृत लेख भी लिखा था । उसके बाद जनसंघ के राष्ट्रीय अधिवेशनों में मिलने का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक भारतीय जनसंघ भारतीय जनता पार्टी में रूपान्तरित नहीं हो गया । इसका मुझे भी आश्चर्य है कि सारंग जी 1990 से 1996 तक राज्यसभा के सदस्य थे लेकिन दिल्ली में उनसे एक भी उल्लेखनीय भेंट नहीं हो सकी । बहुत वर्षों बाद जब एक बार मैंने लखनऊ में माननीय ठाकरे जी से यह पूछा कि सारंग जी कैसे हैं तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा - ' आपकी उनसे मित्रता कबकी है ? तो मैंने उन्हें भी यह घटना सुनाई थी । भोपाल आने से पूर्व जब में नागपुर में ' लोकमत ' के हिन्दी समूह का संपादक था तो मेरे घनिष्ट मित्र और कुशल चिकित्सक डॉक्टर गोविन्द प्रसाद उपाध्याय से भी सारंग जी के परिवार की खैरियत मिल जाती थी क्योंकि डा.उपाध्याय न केवल उनके गांव के हैं बल्कि उनके प्रचंड प्रशंसक भी है ।
दशकों के लम्बे अन्तराल के बाद भोपाल आने पर उनके साथ के पुराने रिश्ते न केवल पुनर्जीवित हुए हैं बल्कि अधिक ऊष्मा और अधिक ऊर्जा के साथ जीवन्त हुए हैं ।
दिल्ली आते जाते ट्रेन में तथा विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में देश , काल , समाज , सरकार , राजनीति या पत्रकारिता जैसे अनेक विषयों पर उनसे विमर्श और मार्गदर्शन मिलता है । सहमतियाँ , असहमतियाँ भी होती है लेकिन यह सिलसिला अबाध रूप से जारी है । सारंग जी का सार्वजनिक जीवन 6 दशकों से भी अधिक का है । उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में जितने बदलाव या उतार चढ़ाव देखे है उससे उनका अनुभव अधिक समृद्ध और परिपक्व हुआ है । उनकी गिनती राजनेताओं की उस दुर्लभ होती जा रही प्रजाति में की जा सकती है जिन्होंने सत्ता सुख के पीछे दौड़ने की अपेक्षा अपने सार्वजनिक और वैचारिक जीवन की प्रतिबद्धता को निजी हितों पर सदैव प्राथमिकता दी है । भाई श्री गोविन्द जी और अपनी अर्धांगिनी के असामयिक निधन से मर्माहत होने के बाद भी सारंग जी ने अपनी पीड़ा की छाया कभी अपनी सार्वजनिक सक्रियता पर नहीं पड़ने दी है । हरेक की हर संभव सहायता के लिए तत्पर सारंग जी अपनी उदारता के साथ अपनी स्पष्टवादिता के लिए भी जाने जाते हैं । प्रदेश और देश की राजनीतिक , सामाजिक या आर्थिक परिस्थितियों का प्रतिमाह अपनी पत्रिका ' नवलोक भारत ' में बेबाक विश्लेषण करने वाले सारंग जी की छवि एक कुशल पत्रकार और संपादक के रूप में भी है । अपनी टिप्पणियों में वे किसी पार्टी , सरकार या मुख्यमंत्री की खुशी नाखुशी का विचार नहीं करते । आश्चर्य है कि इसके बावजूद उनके निजी रिश्ते कभी प्रभावित नहीं होते । उनके लिए शायद ही किसी के मन में कटुता के भाव हों । उनके ‘ अमृत महोत्सव ' का आयोजन करने वालों को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ क्योंकि यह सत्कार्य उन सभी लोगों को सम्मान और प्रतिष्ठा देने का आयोजन है जिनका सार्वजनिक जीवन सार्थक और सकारात्मक है । परमात्मा से मेरी प्रार्थना है कि उनको दीर्घजीवन , उत्तम स्वास्थ्य और सुख सन्तोष प्रदान करे ताकि हम और अधिक उत्साह और भव्यता के साथ उनके जन्मशताब्दि वर्ष का आयोजन कर सकें ।
( लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति हैं )
कैलाश सारंग : अटूट मैत्री का 51 साल का सफर
कैलाश सारंग : अटूट मैत्री का 51 साल का सफर - राधेश्याम शर्मा
बड़ी खुशी और आनंद का समाचार है । प्रियवर कैलाश सारंग ने जो कई मायने में मेरे लिये छोटे भाई की तरह हैं , जिंदगी की तीन चौथाई सदी पूरी कर ली है और भोपाल में उनकी मित्र मंडली , सहयोगी , प्रशंसक एवं हितैषी मिलकर अमृत महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं । प्रिय सारंग को हार्दिक बधाई , शुभ कामनाएं और आयोजकों को ऐसे आयोजन के लिये साधुवाद । आखिरकार सार्वजनिक जीवन , समाज , देश एवं राष्ट्रीय निर्माण की साधना में समर्पित भाव से सारा जीवन लगाने वाले कर्मठ व्यक्ति के कार्यों का स्मरण सामाजिक दृष्टि से भी जरूरी है , क्योंकि इससे समाज एवं देश के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध लोगों का हौसला बढ़ता है तथा नई पीढी को भी एक सार्थक संदेश मिलता है । दिशा भी मिलती है ।
यह ठीक है कि जीवन के संघर्ष में एवं किसी उद्देश्य के प्रति जी जान से जुटे रहने में यदि सफलता एवं यश मिलते हैं , तो कुछ विफलताएं भी मिलती हैं । चार लोग खुश होते हैं तो इक्का दुक्का रुष्ट भी होते हैं । सबको एक साथ तो भगवान भी संतुष्ट नहीं कर सकते । बड़े - बड़े नेताओं , समाजसेवियों , महात्माओं के भी आलोचक मिल जाते हैं । लेकिन महत्वपूर्ण है , टीका टिप्पणी , विरोध , छिद्रान्वेषण की चिंता किये बगैर अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित भाव से लगातार लगे रहना विफलता या आलोचना के बावजूद कार्य करते रहना । यदि एक पद या अवसर हाथ से गया तो दूसरा क्षेत्र तलाशकर तत्काल फिर सक्रिय हो जाना । यानी ऋग्वेद के आर्षवचन “ चरैवेति चरैवेति ” चलते रहो , चलते रहो , की भावना से लगातार सक्रिय रहना , चलते जाना । पं . दीनदयाल उपाध्याय की इस आर्षवचन पर दृढ़ आस्था थी और वे आजीवन इस पर अमल करते भी रहे । वे कहते भी थे कि यदि संकोचवश , डरकर , आलोचना से घबराकर , खीजकर , निराश होकर , छींटाकशी या तानाकशी से चिढ़कर रुक गए तो पैरों में चलने की गति भी नहीं रहेगी । सूखे पेड़ की तरह ठूंठ बनकर रह जायेंगे । फिर पैर में चलने की ताकत और आगे बढ़ते जाने की मंशा भी नहीं रहेगी । यह ध्यान रहना चाहिये कि सक्रियता , गतिशीलता ही जिंदगी है और निष्क्रियता ही मौत का दूसरा नाम है ।
मैं कैलाश सारंग का इसलिए प्रशंसक हूं कि उन्होंने खुद को केवल राजनीति तक सीमित नहीं होने दिया । उनमें संगठन कुशलता प्रबल है । समाज सेवा , पत्रकारिता , लेखन कार्य आदि क्षेत्रों में भी भरपूर दिलचस्पी ली । पत्र - पत्रिकाएं निकाल और निकाल रहे हैं । समाज में चेतना लाने , कुरीतियों अंधविश्वास से जूझने , नई पीढ़ी के जागरण में भी जुटे रहे हैं । संसद भी पहुंचे तो वहां भी सक्रिय रहे । वहां से मुक्त हुए तो दूसरा मोर्चा खोल लिया । विधानसभा चुनाव भी लड़ा , हार गये तो भी निराश होकर नहीं बैठे , लगे रहे । काफी समय बाद आखिर बेटे को विधानसभा एवं नगर निगम में बैठाकर नई पीढ़ी को भी देश सेवा में जुटने के लिये आगे बढ़ाया । अनेक मित्रों को भी समाज सेवा व पत्रकारिता में मौका दिया । राजनीति भी की , कूटनीति भी , ' किंग मेकर ' का रोल भी निभाया । पार्टी भी चलाई । सरकार भी चलाई । मंत्री या मुख्यमंत्री के सलाहकार भी बने रहे , जनसमस्याओं के हल में ताकत लगाई । अब ऐसे काम करेंगे तो आलोचना , आरोप , बुराई का दंश तो लगेगा ही । उसे सहन करके भी या कोई पद छिन जाने पर भी मैदान में , कार्य में डटे रहे और डटे हैं । इनके एक छोटे भाई गोविंद जी ने सारा जीवन देश सेवा , देश भक्ति , देश निष्ठा , राष्ट्रीयता की भावना के निर्माण में लगा दिया , घर नहीं बसाया । अहिर्निश देश व समाज की चिंता की , शरीर की चिंता नहीं की , आखिर बीमार हो गये और असमय चल बसे । अब बेटों को भी अपने कारोबार के साथ - साथ देश सेवा में जुटाया । इन सारी बातों का पूर्वधारणा से हटकर सभी को सकारात्मक दृष्टि से जायजा लेना उचित होता है । भूलों पर भी ध्यान दिला सकते है ।
कैलाश सारंग से मेरा परिचय दिसम्बर , 1958 से है , जब वे शिक्षक थे और मैं विशेष संवाददाता ( दैनिक युगधर्म ) बनकर जबलपुर से भोपाल 1957 में आया था । 1958 से स्थाई रूप से यहां आ गया , तब बरखेड़ी में रहता था । कुछ दिन बाद सारंग जी का तबादला हो गया तो वे भी बरखेड़ी में पड़ोस में आकर रहने लगे । दो छोटे भाई पढ़ते थे , पिताजी आजीवन शिक्षक रहकर रिटायर हुये थे । माता जी थीं नहीं । कुछ दिन बाद इनकी शादी तय हुई तो वधू का सामान लाने मेरी पत्नी इनके पिताजी के साथ बाजार जाती । शादी के बाद गोद भरने का काम मेरी श्रीमती जी ने पूरा किया , यानी पारिवारिक मित्रता हो गई । यह निकटता बढ़ती गई । इनकी पत्नी श्रीमती प्रसून सारंग सागर की थीं और प्रसिद्ध लेखक , कवि , प्रोफेसर डॉ ० रामकुमार वर्मा एवं भूतपूर्व डी.पी.आई. एवं कवि चंद्रप्रकाश वर्मा के परिवार से थीं । स्वाभिमानी , धीर गंभीर , विवेकशील , निष्ठावान , सेवाभावी , अग्रसोची आत्मविश्वास से सराबोर । कैलाश जी की सफलता में उनका बड़ा योगदान रहा , सारा परिवार बसाया , चलाया । असुन , देवर , ननदों , सबका ध्यान रखा । सारंग जी के सारे रिश्तेदारों , मित्रों , राजनीतिकों से रिश्ते निभाए । सबको मान सम्मान दिया । में कई बार टिप्पणी कर देता कि सारंग जी से प्रसून जी ज्यादा समझदार हैं । वे अब इस दुनिया में नहीं है , यह दुखद है ।
बाद में सारंग जी नौकरी छोड़कर राजनीति से जुड़ गए । जनसंघ ( बाद में भाजपा ) के प्रादेशिक कार्यालय के स्थाई मंत्री बन गये । श्री कुशाभाउ ठाकरे के अनुरोध पर सरकारी नौकरी छोड़ दी । प्रादेशिक कार्यालय बनाया , संवारा , उसे नये आयाम दिए , दिन रात संगठन की सेवा की । संगठन की पत्रिका चरैवेति ' भी चलायी । कार्यकर्ताओं की सेवा भी की और उनका मार्गदर्शन भी किया । संगठन की छवि बनाने में शक्ति लगायी । कुशाभाऊ ठाकरे का विश्वास एवं मार्गदर्शन उनके लिये बहुत सहायक रहा । ठाकरे जी एक त्यागी , तपस्वी , राष्ट्र को समर्पित समाजसेवी थे । व्यक्ति की परख का बड़ा गुण उनमें था ।
1972 में में दैनिक युगधर्म का संपादक होकर जबलपुर चला गया । किंतु हमारा संपर्क एवं पारिवारिक निकटता बनी रही । 1975 में आपातकाल लगा तो सारंग जी के नाम भी वारंट था । वे भूमिगत होकर कार्य करते रहे । में भी भुक्तभोगी था । दैनिक युगधर्म जबलपुर के प्रकाशन पर पाबंदी लग गई । वैसे मुझे परेशान नहीं किया , में पाबंदी हटवाने के अभियान में भोपाल दिल्ली के चक्कर काटता रहा । श्रमजीवी पत्रकार नेता भी कन्नी काट गये । भूमिगत सारंग जी से , भोपाल आता तो भेंट कर लेता था । भूमिगत होकर भी वे मुस्तैदी से डटे रहे । परिवार के हालचाल भी पूछ आता प्रसून जी संकोच करती होंगी , यह सोचकर कभी श्रीमती जी को भोपाल लाकर उनकी कुशल - क्षेम पूछने को कहता । बाद में कैलाश जी गिरफ्तार भी हो गये , लेकिन प्रसून जी ने उस दौर में जिस साहस , आत्म विश्वास एवं संघर्षशीलता से परिवार एवं बच्चों का ध्यान रखा वह प्रशंसनीय है ।
1977 में आपातकाल हटने के बाद मैं 1978 में चंडीगढ़ आ गया । कैलाश जी सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर गए , प्रादेशिक कार्यालय की सीधी जिम्मेदारी से संगठन कार्य एवं राजनीति में ज्यादा सक्रिय होते गए । अब राजनीति में जो रहेगा , उसके यदि कुछ प्रशंसक होंगे तो कुछ आलोचक भी होंगे । कोई भी राजनेता ईर्ष्या एवं द्वेष तथा पूर्वधारणा अथवा शक - सुबाह की बीमारी से भी बच नहीं पाता । हमारे देश में यह बीमारी शायद कुछ ज्यादा ही है । वे इस बीच राज्य सभा सदस्य भी बने । पार्टी में कुछ नेताओं के कोपभाजन का शिकार भी हुए , लेकिन अपने कार्य में डटे रहे । राजनीति में और पत्रकारिता में वे अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के आजकल अध्यक्ष हैं , इस नाते पूरे देश का प्रवास हुये अपना दायित्व निभाते हैं , लेकिन अध्यक्ष बनने से पहले भी उसमें सक्रिय थे । जाति और समाज का उत्थान , उसमें जाग्रति लाना , अंधविश्वास एवं कुरीतियों के जंजाल से उसे मुक्त करना भी अपने आप में बड़ी देश सेवा है । हां , जातिगत विद्वेष , दुर्भावना या विघटन पैदा करके राजनीतिक रोटियां सेंकना अथवा घटिया राजनीति से सस्ती लोकप्रियता की पेशकश घटिया और देशघातक आचरण है । सारंग जी ऐसी संकुचितता से बचने की सदैव सावधानी बरतते हैं , यह अच्छी बात है क्योंकि ऐसी मनोवृत्ति राष्ट्रीय एकता , एकात्मकता और सामाजिक समरसता में बाधक होती है ।
इसके अलावा आजकल सारंग जी ' नवलोक भारत ' नामक पाक्षिक पत्रिका भी निकाल रहे हैं । पिछले कुछ वर्षों में इस पत्रिका ने अपनी विशेष पहचान बनाई है । प्रदेश और राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाओं पर इसमें दमदारी से सामग्री प्रकाशित होती है । प्रधान संपादक के बतौर लगातार लेखन से सारंग जी ने राजनीति के अलावा पत्रकार के रूप में भी अपनी और अपनी कलम की पहचान बनाने की कोशिश की है , यह अच्छी बात है क्योंकि प्रबुद्ध वर्ग के समक्ष अपनी बात रखना , राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर स्वस्थ परिचर्चा को बढ़ावा देना भी जरूरी है , ताकि जागृत जनमत द्वारा लोकतंत्र स्वस्थ एवं मजबूत बन सके ।
सारंग जी के प्रशंसक यदि काफी संख्या में हैं तो आलोचक ( प्रकट या प्रच्छन ) भी कम नहीं हैं । कुछ उन पर महत्वाकांक्षी होने का आक्षेप करते हैं , इसमें बुराई क्या है ? हर व्यक्ति को चाहे वह राजनीतिक व्यक्ति भी क्यों न हो , महत्वाकांक्षी होना चाहिये । इसके बिना व्यक्ति आगे कैसे बढ़ेगा । हां , अति महत्वाकांक्षी होना या संगठन और देश से अपनी महत्वाकांक्षा बड़ी नहीं हो , इसका ध्यान रखना जरूरी है । सारंग जी ने जिस क्षेत्र में काम किया , अपनी विशेष पहचान बनाई । यह उनके मित्रों के लिये संतोष की बात है । वे और भी ज्यादा आगे जा सकते हैं , इसमें संदेह नहीं है । उनमें संगठन कुशलता का बड़ा गुण है , कार्य करने की भी क्षमता है और साधन जुटाने का सामर्थ्य एवं चतुराई भी है । उम्मीद की जानी चाहिये कि वे ज्यादा सावधानी , ज्यादा सतर्कता एवं ज्यादा दूरदर्शिता एवं भूलों में सुधार कर अपने ध्येय पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे । व्यक्ति चाहे और तय कर ले तो बिना किसी पद के भी बहुत कुछ कर सकता है , पद तो एक माध्यम होता है ।
सारंग जी की एक विशिष्टता यह है कि वे संवेदनशील , सेवा भावी और मित्रों के मित्र हैं । ऐसे कई प्रसंगों में एक प्रसंग मुझे सदैव याद रहता है । मार्च 1969 की शाम की बात है । मेरा स्कूटर एक्सीडेंट रेतघाट पर हो गया । में तो वहीं बेहोश हो गया । श्रीमती जी और छोटी बिटिया साथ थे । वे बच गये । मुझे लोगों ने अस्पताल पहुंचाया । सूचना मिलते ही अस्पताल तत्काल पहुंचने वालों में कैलाश सारंग आगे थे । वे अस्पताल से हिले नहीं रातभर मेरे सिरहाने बैठे सेवा में लगे रहे , मुझे दूसरे दिन होश आया तब सबको राहत मिली । ऐसे उनके सेवाभाव के कई प्रसंगों का में प्रत्यक्ष दर्शक रहा हूं , वे पहले बड़े भावुक थे । जैसे ही पं . दीनदयाल उपाध्याय के कत्ल की खबर आयी , जनसंघ दफ्तर में फूट - फूटकर रोने लगे । प्रेस रिपोर्टरों के साथ मैं भी पहुंचा तो कहा ' भाई , रोने से कैसे काम चलेगा ? प्रेस के लिये सामग्री दो , वे मित्रों , परिचितों के कष्टों के प्रति भी संवेदनशील रहे हैं , शायद अब राजनीति में पकने के बाद थोड़ा संयम रखने लगे हैं ।
मुझे ' अमृत महोत्सव समारोह समिति ' के भाई मेघराज जैन और भाई रमेश शर्मा ने अभिनंदन ग्रंथ के लिए लेख लिखने को कहा । स्मरण पत्र भी भेजे , कुछ शीर्षक एवं प्रश्न भी भेजे । हमारी और कैलाश जी की मित्रता 51 वर्ष पुरानी है । स्थान परिवर्तन और बीच के लंबे अंतराल के बाद चंडीगढ़ आ जाने के बावजूद भी संपर्क , मित्रता और आत्मीयता बनी नहीं , यह क्या कम है ? 1990 से 1995 तक मुझे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के संस्थापक महानिदेशक ( कुलपति ) के बतौर पुनः भोपाल रहना पड़ा । फिर निकटता हो गई हालांकि तब तक उनके स्थापित नेता बन जाने से कभी कुछ खटपट या सहमति असहमति अथवा पृथक राय के दौर भी आये , लेकिन यह तो समाज जीवन और कार्यक्षेत्र की विभिन्नता के कारण सामान्य बात है । फिर भी मित्रता निभती नही , यह बड़ी उपलब्धि है । ताली तो दोनों हाथों से ही बज सकती है ।
मैंने लेख में प्रशस्तिगान , जिन्दागान , लच्छेदान शब्दावली , खुशामदी गुणगान से बचकर मित्रता की यात्रा का एक सफरनामा पेश किया है । आयु के जिस सोपान पर हम सफर में हैं , उसमें बनावटीपन , दिखावा या किसी किस्म के नफा - नुकसान , कोई अपेक्षा अथवा कुछ लेन देने वाली बात नहीं है । इसलिए जो महसूस किया या महसूस करता हूं , उसी अहसास को यहां प्रस्तुत किया है । यह एक निकट मित्र की मित्रता के कुछ मधुर क्षणों का स्मरण मात्र है । कैलाश सारंग दीर्घजीवी हो और देशसेवा , समाजसेवा , राजनीति , पत्रकारिता एवं अन्य क्षेत्रों में ऊंचाइयों को छुएं , यही कामना है । अमृत महोत्सव पर उन्हें पुनः बधाई और उत्तम भविष्य के लिए शुभकामनाएं ।
( लेखानुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के पूर्व महानिदेशक ( कुलपति ) और दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ के पूर्व संपादक है । )
आज भी नवभारत परिवार के हैं सारंग जी
आज भी नवभारत परिवार के हैं सारंग जी - प्रफुल्ल कुमार माहेश्वरी
प्रफुल्ल कुमार माहेश्वरी
पूर्व सांसद ( राज्यसभा )
आज भी नवभारत परिवार के हैं सारंग जी
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि राजधानी के लोकप्रिय समाजसेवी , वरिष्ठ राजनेता श्री कैलाश नारायण जी सारंग के अमृत महोत्सव के मौके पर अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है ।
श्री सारंग जी से हमारे ओर नवभारत के वर्षों पुराने आत्मिक संबंध हैं , उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत नवभारत के सदस्य के रूप में की थी । वे वर्षों नवभारत भोपाल के सम्पादकीय विभाग के सदस्य रहे , तब उन्हें नजदीक से जानने का मौका मिला । यदि सारंग जी राजनीति में नहीं आये होते तो आज देश की पत्रकारिता में उनका महत्वपूर्ण स्थान होता ।
हम उन्हें आज भी नवभारत परिवार का ही सदस्य मानते हैं । वे जब भी मिलते हैं तब यह लगता है कि हमारे परिवार का कोई सदस्य हमारे सामने हैं ।
वे उच्च विचार और कर्मठ व्यक्तित्व वाले ऐसे समाजसेवी हैं जिन्होंने सदैवे भोपालवासियों को मार्गदर्शन एवं सहयोग दिया है । उन्हें हर वर्ग का सम्मान मिला है । हम सब उन्हें सेठ करते हैं ।
मुझे विश्वास है कि इस अभिनन्दन ग्रंथ के माध्यम से युवा पीढ़ी सारंगजी के व्यक्तित्व , विचारधारा और भावना को समझेगी , अमृत महोत्सव के आयोजन एवं अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन पर श्री कैलाश सारंगजी को ढेरों बधाइयां ।
23 सितम्बर 09
आपका
( प्रफुल्ल माहेशवरी )