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कायस्थ समाज गायन प्रतियोगिता के आवेदन शरू...

कायस्थ समाज गायन प्रतियोगिता के आवेदन शरू...

07 May,2023 Bhopal

मेधावी छात्र सम्मान 2023

मेधावी छात्र सम्मान 2023

15 Jun,2023 10th & 12th Class

कायस्थ समाज महिलाओं को व्यवसाय के लिए देगा

कायस्थ समाज महिलाओं को व्यवसाय के लिए देगा 

गणेश चतुर्थी पर दी जाएगी राशि, डेढ़ वर्ष की अवधि में मासिक किस्तों के रूप में संस्था को वापस करना होगी रकम

 

सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था ने कोरोना महामारी से उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या को दूर करने समाज की 11 जरूरतमंद गृहणियों को लघु गृह उद्योग शुरू करने बगैर ब्याज ऋण देने का फैसला किया गया है। प्रत्येक महिला को 15 से 20 हजार रुपए तक की राशि 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी के अवसर पर प्रदान की जाएगी। यह राशि वे डेढ़ वर्ष की अवधि में मासिक किस्तों में वापस कर सकेंगी, जिससे अन्य आवेदक महिलाओं को भी ऋण प्रदान किया जा सके। संस्था को यह राशि समाज के दानदाताओं द्वारा अपने पूर्वजों की स्मृति में उपलब्ध कराई गई है। इसलिए इस योजना को कायस्थ पूर्वज ऋण सहायता योजना नाम दिया गया हैं। योजना में जो महिलाएं छह माह के भीतर लोन की राशि वापस कर देंगी, उन्हें एक हजार रुपए कम जमा करने की छूट रहेगी। सभी आवेदन कायस्थ समाज वेब पोर्टल के माध्यम से मंगाए गए।

चयन... समाज की 25 में से 11 महिला आवेदकों को दिया लोन
संस्था प्रमुख वेद आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि समाज की जरूरतमंद महिलाओं को स्वयं का लघु व्यवसाय शुरू कराने के उद्देश्य से महिला औद्योगिक प्रकोष्ठ का गठन किया। इसमें किरण संजर, एकता सक्सेना व इति श्रीवास्तव शामिल हैं। प्रकोष्ठ ने महिलाओं से आवेदन मंगाए। उनके बारे में पड़ताल कर 25 में से 11 महिलाओं का चयन ऋण देने के लिए किया गया। ये वे महिलाएं हैं, जिनके परिजनों के व्यवसाय महामारी के चलते बंद हो गए हैं।

उद्देश्य... महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर खुद का व्यवसाय कराना
संस्था प्रमुख के अनुसार  इसके लिए वेब पोर्टल कायस्थ समाज डॉट इन पर पहले पंजीयन कराए गए। इसके बाद आवेदन मंगाए गए थे। संस्था का उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। इसी उद्देश्य से उन्हें बगैर ब्याज के यह ऋण राशि दी जा रही है।  इन महिलाओं को प्रिंटिंग प्रेस, बेकरी, सिलाई केंद्र, अचार, पापड़, बड़ी,  मसाला आदि गृह व्यवसाय शुरू करने के लिए ऋण मंजूर किया गया है।

मदद... जिन्हें रोजगार की ज्यादा जरूरत उन्हें राशि उपलब्ध कराती है संस्था
संस्था संयोजक आशीष ने बताया कि पूर्वज स्मृति सहायता योजना एक ऐसी योजना है, जो स्वजातीय  बंधुओं की आर्थिक मदद करती है। ऐसे परिवार अपने पूर्वजों की स्मृति में 5000 रुपए या उससे अधिक की राशि संस्था की क्रेडिट सोसायटी के माध्यम से कायस्थ समाज के ऐसे जरूरतमंद स्वजाति बंधुओं को उपलब्ध करते हैं, जिन्हें किसी परिस्थितिवश परिवार के लिए या रोजगार शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता है।

18 Jul, 2020

सिलसिलए यादें निशात से आज प्रस्तुत है- स्व. गोविंद आर्य "निशात" साहब की एक खूबसूरत हिंदी रचना की चंद पंक्ति

मैंने कविता को लिखा है आज यह सन्देश में 
मुझसे मिलना हो तो कल आना नए परिवेश में 

वंचना-पीड़ा-घृणा-तिस्कार-निंदा और दुख
सब ही चिर परिचित मिले हमको अंजाने देश में 

देवता तो स्वर्ग से उपहार लेके__ आए थे 
किन्तु मैंने द्वार से लौटा दिया __ आवेश में 

भूलकर भी लाँघना मत लक्ष्मण रेखा कभी
आज भी फिरते है रावण साधुओं के वेश में 

एक दिन भी सह सकी बिरहिन न साजन का बिछोह 
जल गई नव यौवना वेणी सजाकर केश में 

गोविन्द आर्य 'निशात' 

13 Jun, 2020

अम्बेडकर ने नहीं प्रेम बिहारी रायज़ादा ने लिखा था भारतीय संविधान, जिसमें 254 पेन होल्डर और 303 निब खर्च हुईं थी।

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आज अम्बेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बना कर संविधान सभा ने दलित को सम्मान क्या दिया सभी दलित  उसे संविधान निर्माता समझ बैठे जबकि इनको  पता नही संविधान निर्मात्री सभा में लगभग 389 लोग थे
डा• भीमराव अम्बेडकर संविधान निर्माता नहीं कारण पूर्ण स्पष्टीकरण के साथ संलग्न कर रहा हु ! भीमराव अम्बेडकर संविधान निर्माता नहीं ( 2012 में कुणाल शुक्ला द्वारा आरटीआई के जबाब में हुआ खुलासा )

2-: संविधान को लिखने का कार्य उस समय दिल्ली के निवासी श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ( सक्सेना) ने किया जिसमें 254 पेन होल्डर और 303 निब खर्च हुईं।
cabinet mission plan of 1946 के अन्तर्गत देश में संविधान सभा की स्थापना हुई। कुल सदस्यों की संख्या 389 members representing provinces (292), states (93), the chief commissioner provinces (3) and baluchistan (1).

सभा की पहली बैठक दिसम्बर 9, 1946 को हुई, जिसमें dr. sachhidanand sinha, the oldest member of the assembly को provisional president बनाया गया।
दिसम्बर 11, 1946, को डा• राजेन्द्र प्रसाद को स्थाई चेयर मैन सभा ने चुना। विभाजन के बाद सदस्य संख्या घट कर 299 रह गयी।

3-: संविधान बनाने के लिये बहुत सारी समितियों का निर्माण हुआ जिसमें 8 मुख्य समितियाँ एवं 15 अन्य समितियाँ थी।
major committees
1. union powers committee – jawaharlal nehru
2. union constitution committee – jawaharlal nehru
3. provincial constitution committee – sardar patel
4. drafting committee – dr. b.r. ambedkar
5. advisory committee on fundamental rights and minorities
sardar patel. this committee had two sub-committes:
(a) fundamental rights sub-committee – j.b. kripalani
(b) minorities sub-committee – h.c. mukherjee
6. rules of procedure committee – dr. rajendra prasad
7. states committee (committee for negotiating with states) – jawaharlal nehru
8. steering committee – dr. rajendra prasad

minor committees
1. committee on the functions of the constituent assembly – g.v. mavalankar
2. order of business committee – dr. k.m. munshi
3. house committee – b. pattabhi sitaramayya
4. ad-hoc committee on the national flag – dr. rajendra prasad
5. special committee to examine the draft constitution – alladi krishnaswamy ayyar
6. credentials committee – alladi krishnaswamy ayyar
7. finance and staff committee sinha
8. hindi translation committee
9. urdu translation committee
10. press gallery committee
11. committee to examine the effect of indian independence act of 1947
12. committee on chief commissioners’ provinces
13. commission on linguistic provinces
14. expert committee on financial provisions
15. ad-hoc committee on the supreme court

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जिस समिति को अभी तक हमें सबसे अधिक महत्व पूर्ण बताया गया ड्राफ्टिंग कमेटी ये थी वो कमेटी
1. dr b r ambedkar (chairman)
2. n gopalaswamy ayyangar
3. alladi krishnaswamyayyer
4. dr k m munshi
5. syed mohammad saadullah
6. n madhava rau (he replaced b l miner who resigned due to ill-health)
7. t t krishnamachari (he replaced d p khaitan who died in 1948)
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यहाँ पर अब मैं आपका ध्यान खींचना चाहूँगा कि संविधान को ड्राफ्ट करने में उसके credentials और ड्राफ्ट को परफेक्ट करने में सबसे बड़ा योगदान रहा
श्री अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर का (alladi krishnaswamy ayyar) ना कि भीम राव अम्बेडकर का।
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उसके बाद अब उसी विरोध पर आता हूँ from article 330 से 340 तक special provisions relating to certain classes. इस वैकल्पिक व्यवस्था को 70 साल तक बनाये रखने के पीछे कब किसने क्या समीक्षा की उसका आज तक कुछ पता नहीं चला। संविधान में schedule castes/schedule tribes की और backward classes की बात की गयी पर सामान्य की कहीं कोई सुनवाई नहीं आखिर क्यों ?
      #फिरसंविधानकीशपथमेंक्योंलिखा_गया।
      #equality_of_status_and_opportunity.
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इसके अतिरिक्त उल्लेख मिलता है कि संविधान कोई original document नहीं है। बस cut- paste है।
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श्री प्रेमबिहारी रायजादा जी ने मूल संविधान को हिंदी, अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी !

जब तक देश के संविधान में 21 वीं सदी के भारत के निर्माण हेतु पर्याप्त संशोधन नहीं हो जाते तो क्या ये ओबीसी का हाथ पे हाथ रखकर बैठने का समय
                          है क्या ⁉️

05 Jun, 2020

आत्मनिर्भर बनो...... आत्म विश्वासी बनो ।

मनुष्य को जीवन में दूसरों पर भरोसा न कर आत्म निर्भर और आत्म विश्वासी होना चाहिए । दूसरे शब्दों में आत्म-सहायता ही उसके जीवन का मूल सिद्धांत, मूल आदर्श एवं उसके उद्देश्य का मूल-तंत्र होना चाहिए । असंयत स्वभाव तथा मनुष्य का परिस्थितियों से घिरा होना, पूर्णरूपेण आत्मविश्वास के मार्ग को अवरूद्ध सा करता है ।

वह समाज में रहता है जहां पारस्परिक सहायता और सहयोग का प्रचलन है । वह एक हाथ से देता तथा दूसरे हाथ से लेता है । यह कथन एक सीमा तक उचित प्रतीत होता है । ऐसा गलत प्रमाणित तब होता है जब बदले में दिया कुछ नही जाता सिर्फ लिया भर जाता है और जब अधिकारों का उपभोग विश्व में बिना कृतज्ञता का निर्वाह किए, भिक्षावृत्ति तथा चोरी और लूट-खसोट में हो, लेकिन विनिमय न हो ।

फिर भी पूर्ण आत्म-निर्भरता असंभव सी है । जीवन में ऐसे सोपान आते हैं, जब आत्म विश्वास को जागृत किया जा सकता है । स्वभावतया हम दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं । हम जरूरत से ज्यादा दूसरों की सहायता, सहानुभूति, हमदर्दी, नेकी पर विश्वास करते हैं, लेकिन यह आदत हानिकारक है । इससे हमारी शक्ति और आत्म उद्योगी भावना का ह्रास होता है । यह आदत हममें निज मदद हीनता की भावना भर देती है ।

यह हमारे नैतिक स्वभाव पर उसी प्रकार कुठाराघात करती है, जैसे किसी नव शिशु को गिरने के डर से चलने से मना करने पर कुछ समय पश्चात् अपंग हो जाता है । यदि इसी प्रकार हम दूसरों पर निर्भर न रहें तो नैतिक रूप से हम अपंग व विकृत हो जाते हैं ।

इसके अलावा दूसरों से काफी अपेक्षा रखना एक तरह से खुद को उपहास, दयनीय स्थिति, तिरस्कार व घृणा का पात्र बना लेने के बराबर है । इस स्थिति में लोग आश्रित और परजीवी बन जाते हैं । आत्म-शक्ति से परिपूर्ण व्यक्तियों के मध्य हमारी खुद की स्थिति दयनीय हो जाती है ।

विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए हमारा अन्त करण हमें उत्तेजित करता है । अन्त में हम इस मानव जाति से घृणा व विरोध करने लगते हैं । ईर्ष्या हमारे जीवन में जहर भर देती हैं । इससे ज्यादा दयनीय स्थिति और कोई नही ।

इससे बिल्कुल विपरीत स्थिति आत्म-विश्वासी व्यक्ति की है । वह वीर और संकल्पी होता है । वह बाहरी सहायता पर विश्वास नही करता, बकवास में विश्वास नही रखता और बाधाओं, मुसीबतों से संघर्ष करता है तथा हर पग पर नए अनुभव प्राप्त करता है । वह चाहे सफल रहे या असफल उसे हमेशा दया, आदर और प्रशंसा का अभिप्राय माना जाता है ।

व्यक्ति की महानता उसके प्रयत्नों पर निर्भर करती है न कि सफलता एवं असफलता पर । ऐसे व्यक्ति विश्व को मानसिक दृढ़ता, सहनशीलता व आत्म-निर्भरता की शिक्षा देते हैं । कमजोर और पिछड़ा वर्ग इनसे शिक्षा प्राप्त करते हैं । दु खी लोगों को इनसे सामना मिलती है । साहसिक प्रवृत्ति से संघर्ष तथा उन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है । अन्ततोगत्वा उसके भविष्य का निर्माण होता है ।

आत्म-निर्भर व्यक्ति को पृथ्वी और स्वर्ग दोनों जगह सम्मानित किया जाता है । वह व्यक्तियों के बीच प्रशंसा का पात्र बनता है । वह प्रशंसा, प्यार व आदर हासिल करके प्रसिद्धि, खुशहाली एवं यशस्वी बनता है । वह लोगों का नेतृत्व करता है । जनता तन-मन-धन से उस पर विश्वास करती है तथा उसकी बुद्धिमता और सक्षमता पर विश्वास रखती है । विश्व में जहां सफलता प्राप्त करना दुर्लभ है, वहाँ वह जीवन के प्रत्येक चरण में खरा उतरता है । व्यक्ति के अपने प्रयत्न के साथ-साथ ईश्वर भी संघर्ष मे उसकी सहायता करता है ।

आत्मनिर्भर व्यक्ति के मुकाबले कोई भी व्यक्ति इतना तेजस्वी एवं दृढ़प्रतिज्ञ नहीं होता । भाग्य की रेखाएं इतनी अनिश्चित होती है कि जब हम सब कुछ प्राप्त कर लेते है तो भी शांति से उनका उपभोग नहीं कर पाते । आशा के विपरीत ज्यादा या कम मिलने की अवधारणा प्राय: हम लोगों में व्याप्त है । यहां तक कि हमेशा किसी वस्तु के लिए व्यग्रता-सी बनी रहती है ।

ऐसे उपहार जिनका हम उपार्जन नहीं करते, हमसे दूर होती है और हमारे लिए अपने मन मे उपजी उत्कण्ठा को शांत करना मुश्किल सा प्रतीत होता है । परहितकारों द्वारा की गई दया हमारे आत्म सम्मान पर अंकुश लगाती है । लेकिन जब उन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए हम परिश्रम एवं खर्च करते हैं तथा न चीजों को प्राप्त करने के लिए खून-पसीना एक करते हैं तो इस स्थिति में नैतिक दृष्टिकोण से हम उन वस्तुओं का उपभोग शान्ति से कर सकते है ।

अभ्यास व परिश्रम से सहूलियत उत्पन्न की जाती है । यदि इस तथ्य के अनुरूप हम अपने मस्तिष्क को क्रियाशील बनाएं तथा दूसरे पर निर्भर रहने की अपेक्षा जहां तक संभव हो ज्यादा से ज्यादा अपना कार्य स्वयं सम्पन्न करें और अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करें तो हमारे अन्दर शक्ति का संचार हो जाता है । हम जल्दी ही आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा जीवन की दौड़ में सफलता के कीर्तिमान स्थापित करेंगे, जो पहाडों का सीना चीर सकती है ।

14 May, 2020

पीएम मोदी ने कहा- आर्थिक पैकेज से अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी, छोटे उद्योगों को मिलेगी मदद

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज से अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही इस पैकेज से कंपनियों विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को मदद मिलेगी. बता दें कि पीएम मोदी ने ही एक दिन पहले 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी. also read - nbfcs, होम, फाइनेंस कंपनियों और mfi के लिए 30,000 करोड़ रुपए का कर्ज: वित्‍त मंत्री

मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘सरकार द्वारा घोषित कदमों से नकदी बढ़ेगी, उद्यमियों को सशक्त किया जा सकेगा और उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाई जा सकेगी.’’ कोविड-19 संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एमएसएमई सहित कंपनियों को तीन लाख करोड़ रुपये की ऋण सहायता देने की घोषणा की है. 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ब्योरा देते हुए सीतारमण ने कहा कि इससे 45 लाख छोटी इकाइयों को लाभ होगा. also read - यूपी के उबैद अंसारी के लिए कैसे गेम चेंजर बना 'मोदी गमछा', मिल रही ज़बर्दस्त तारीफ़

मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘वित्त मंत्री सीतारमण ने आज जो घोषणा की है उससे कंपनियों विशेषरूप से एमएसएमई क्षेत्र के समक्ष आ रही दिक्कतों को दूर करने में मदद मिलेगी.’’ इससे एक दिन पहले प्रधानमंत्री मंगलवार को कहा था कि कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार एक बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा करेगी. also read - पी. चिदम्बरम बोले- आर्थिक पैकेज में गरीबों के लिए कुछ नहीं, ये मेहनत करने वालों पर कुठाराघात

वहीं, कांग्रेस ने इसकी आलोचना की है. पी. चिदम्बरम ने निर्मला सीतारमण और केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. पी. चिदम्बरम ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गरीबों के लिए कुछ नहीं कहा. ये कड़ी मेहनत करने वालों पर कुठाराघात है. पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम ने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र के लिए घोषित मामूली पैकेज को छोड़कर हम वित्त मंत्री की घोषणाओं से निराश हैं. यह हर दिन कड़ी मेहनत करने वालों पर कुठाराघात है. वित्त मंत्री ने जो कुछ कहा, उसमें लाखों गरीबों, भूखे प्रवासी श्रमिकों के लिए कुछ नहीं है जो पैदल चलकर अपने घर जा रहे हैं.

13 May, 2020

सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था की अपील- गर्मी में पक्षियों के लिए करें व्यवस्था, पक्षियों की प्यास बुझाने रखने लगे सकोरे

लॉक डाउन में अपने घरों में रह रहे समाजसेवियों, बच्चों और वरिष्ठजनों की अपील पर लोग अपने घरों की बालकनी में पक्षियों के लिए भोजन और पीने के लिए पानी की व्यवस्था कर रहे हैं

अप्रैल महीने के अंत में अब भीषण गर्मी का असर दिखाई देने लगा है। ऐसे में लॉक डाउन में अपने घरों में रह रहे समाजसेवियों, बच्चों और वरिष्ठजनों की अपील पर लोग अपने घरों की बालकनी में पक्षियों के लिए भोजन और पीने के लिए पानी की व्यवस्था कर रहे हैं। लोगों से अपील की जा रही है कि वे अपने घरों की बालकनी में पक्षियों के पानी पीने के लिए सकोरे व अन्य वस्तु रख सकते हैं। जिसमें पानी ठंडा रहे और हमारे पक्षियों की प्यास बुझ सकें। दूसरे चरण के लॉक डाउन में भी लोग अपने घरों पर रहकर प्रशासन का सहयोग कर रहे हैं। साथ ही घर रहकर भी अपनी मानव सेवा का परिचय दे रहे हैं। लोग अपने घरों में मास्क, भोजन सामग्री सहित अन्य सामान तैयार कर जरूरतमंदों को उपलब्ध करा रहे हैं। 
ऐसे ही शहरवासियों को समाजसेवियों, बच्चों और वरिष्ठजनों ने अपील की है कि वे अपने घरों में पक्षियों के पीने के पानी के लिए सकोरे रखें। साथ ही उनके भोजन के लिए दाना सहित अन्य खाद्य सामग्री बालकनी या छत पर रख सकते हैं। 
इससे पक्षियों को भी समय पर भोजन और पानी मिल सकें।

26 Apr, 2020

मन की बात / मोदी बोले- कोरोना के खिलाफ जंग जनता ही लड़ रही, इसमें सबका योगदान; अतिआत्मविश्वास न पालें कि हमारी गली-मोहल्ले में संक्रमण नहीं आएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को मन की बात कार्यक्रम में लोगों से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि आज पूरा देश एकसाथ चल रहा है। ताली, थाली, दीया और मोमबत्ती ने देश को प्रेरित किया है। ऐसा लग रहा है कि महायज्ञ चल रहा है। हमारे किसान खेत में मेहनत कर रहे हैं ताकि कोई भूखा नहीं रहे। कोई मास्क बना रहा है, तो कोई क्वारैंटाइन में रहते हुए स्कूल की पुताई कर रहा है। कोई घर का किराया माफ कर रहा है। यह उमड़ता-घुमड़ता भाव ही कोरोना से लड़ाई को पीपल ड्रिवन (लोगों से संचालित) बना रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘बहुत ही आदर के साथ 130 करोड़ देशवासियों की इस भावना को नमन करता हूं। सरकार ने https://covidwarriors.gov.in/ प्लेटफॉर्म भी तैयार किया है। इसमें सरकार ने सभी को एक-दूसरे से जोड़ दिया है। इससे सवा करोड़ लोग जुड़ चुके हैं। डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, आशा कार्यकर्ता, नर्स सभी जुड़े हैं। ये लोग आगे की योजना बनाने में मदद भी कर रहे हैं। हर लड़ाई कुछ न कुछ सिखाकर जाती है। कुछ मार्ग बनाती है, मंजिलों की दिशा भी देती है।’’ प्रधानमंत्री का यह इस साल का चौथा और मन की बात का 64वां संस्करण था। इससे पहले मोदी ने 29 मार्च को मन की बात की थी।

मोदी के भाषण की 8 अहम बातें 

1. देश एक टीम की तरह काम कर रहा 

जब देश एक टीम बनकर काम करती है, तब हम देखते हैं कि कितना बेहतर हो सकता है। दवाईयां पहुंचाने के लिए लाइफलाइन उड़ान सेवा चल रही है। कई टन दवाएं एक से दूसरे हिस्से में पहुंचाई गई हैं। 60 से ज्यादा ट्रैक पर पार्सल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। डाक सेवा भी मजबूती से काम कर रही है। गरीबों के अकाउंट में सीधे पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं। गरीबों को सिलेंडर और राशन दिया जा रहा है।'

2. पुलिस को लेकर सोच में भी बदलाव आया

स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकारों की कोरोना से लड़ाई में अहम भूमिका है। हाल ही में जो अध्यादेश लाया गया है, स्वास्थ्यकर्मियों ने इसकी प्रशंसा की है। ऐसे स्वास्थ्यकर्मी जो कोरोना से लड़ाई में लगे हुए हैं, उन पर हमला करने वालों को सजा का प्रावधान किया गया है। पहले की बजाय पुलिस को लेकर सोच में भी बदलाव आया है। आज पुलिस जरूरतमंदों को खाना पहुंचा रही हैं। इससे पुलिस का मानवीय पक्ष सामने आया है। लोग पुलिस से जुड़ रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में बहुत ही सकारात्मक बदलाव आ सकता है। हमें कभी भी इसे नकारात्मक रंग से रंगना नहीं है।'

3. मदद करना हमारी संस्कृति, दूसरे देश आज थैंक्यू इंडिया कह रहे हैं
जो मेरा नहीं है, जिस पर मेरा हक नहीं है, उसे छीनकर उपयोग लाता हूं तो यह विकृति है। जब अपनी जरूरत छोड़कर दूसरे का ध्यान रखा जाता है तो इसे संस्कृति कहते हैं। भारत ने अपनी संस्कृति के अनुरूप फैसले लिए हैं। ये ऐसा समय है, जब भारत किसी देश को दवाएं न दे तो बड़ी बात नहीं है। भारत ने अपनी संस्कृति के अनुरूप फैसला लिया। दुनिया से आ रही मांग पर ध्यान दिया। आज दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों से बात होती है तो वे थैंक्यू इंडिया कहते हैं। इससे गर्व और बढ़ जाता है।

4. इम्यूनिटी बढ़ाने का प्रयोग जरूर करें 
'आप लोग इम्यूनिटी बढ़ाने का प्रयोग जरूर कर रहे होंगे। काढ़े आदि के प्रयोग से प्रतिरक्षा बढ़ाई जा सकती है। जब कोई देश हमारे फॉर्मूले को बताता है तो हम हाथों-हाथ ले लेते हैं। कई बार हम अपने पारंपरिक सिद्धांतों को अपनाने की बजाय छोड़ देते हैं। जैसे विश्व ने योग को स्वीकार किया है, वैसे ही आयुर्वेद को भी स्वीकार करेगा। युवा पीढ़ी को इस बारे में भूमिका निभानी होगी। 

5. आदतें बदलें; मॉस्क लगाएं, कहीं भी थूकें नहीं  
कोविड ने हमारी जीवनशैली में जगह बनाई है। हमारी चेतना और समझ जागृत हुई है। इसमें मास्क पहनना और चेहरा ढंकना है। हमें इसकी आदत नहीं रही, लेकिन हो यही रहा है। अब आप खुद के साथ दूसरों को भी बचाना चाहते हैं तो मास्क जरूर पहनें। गमछा भी बेहतर है। सार्वजनिक स्थानों पर थूक देना गलत आदतों का हिस्सा था। हम हमेशा से इस समस्या को जानते थे, लेकिन यह खत्म नहीं हो रही थी। अब समय है कि थूकने की आदत छोड़ देनी चाहिए। यह बेसिक हाईजीन के साथ कोरोना को फैलने से भी रोकेगी।

6. त्योहार हमें बुरे वक्त से लड़ना सिखाते हैं 
आज अक्षय तृतीया है। यह त्योहार याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी विपत्तियां या कठिनाइयां आएं, इससे लड़ने की हमारी ताकत अक्षय रहेगी। इसी दिन पांडवों को सूर्य से अक्षय पात्र मिला था। आज देश के पास अक्षय अन्य भंडार है। हमें पर्यावरण के बारे में सोचना होगा। अगर हम अक्षय रहना चाहते हैं तो पर्यावरण को अक्षय रखना होगा। 

7. रमजान घर पर मनाएं,  फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाएं रखें 
रमजान चल रहा है। इस बार इसे सद्भाव, संयम का पर्व बनाएं। मुझे विश्वास है कि स्थानीय प्रशासन की अपील का पालन करते हुए फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखेंगे। आज कोरोना ने त्योहार मनाने का ढंग बदल दिया है। लोग अब त्योहारों को घर में रहकर, सादगी से मना रहे हैं। इस बार ईसाई दोस्तों ने ईस्टर भी घर पर मनाया।

8. दो गज दूरी बनाए रखें, अतिआत्मविश्वास में न आएं 
मेरा आपसे आग्रह है कि अतिआत्मविश्वास न पालें कि शहर, गली में कोरोना पहुंचा नहीं है, इसलिए मुझे नहीं होगा। लेकिन दुनिया का अनुभव कुछ और कह रहा है। इसे समझना होगा। नजर हटी, दुर्घटना घटी। हल्के में लेकर छोड़ी गई आग, कर्ज और बीमारी मौके पड़ते ही दोबारा उभर जाती है। इसलिए कोई लापरवाही न करें। फिर कहूंगा- दो गज दूरी बनाए रखें। अगली बार जब मन की बात में मिलूं तो दुनिया से अच्छी खबरें आएं।

26 Apr, 2020

मुंशी प्रेमचंद्र की अमर कहानियाँ- दो बैलों की कथा - मानसरोवर भाग-2

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दर्जे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है, किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी नहीं दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता है, पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर स्थाई विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं, पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर! 

कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है ? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया। लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है। और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम 'गधा' का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफी में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे, मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है, अतएवं उसका स्थान गधे से नीचा है।

झूरी क पास दो बैल थे- हीरा और मोती। देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊंचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे। एक-दूसरे के मन की बात को कैसे समझा जाता है, हम कह नहीं सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोनों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफसी, कुछ हल्की-सी रहती है, फिर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे। 

दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चूट कर अपनी थकान मिटा लिया करते, नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नांद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था। 

 

संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोईं को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे कहाँ भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोईं ले जाने में दांतों पसीना आ गया। पीछे से हांकता तो दोनों दाएँ-बाँए भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे की ओर जोर लगाते। मारता तो दोनों सींगे नीची करके हुंकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो ?

हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था, और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेंच दिया ?

संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नांद में लगाए गए तो एक ने भी उसमें मुंह नहीं डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया। यह नया घर, नया गांव, नए आदमी उन्हें बेगाने-से लगते थे। 

दोनों ने अपनी मूक भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गये। जब गांव में सोता पड़ गया तो दोनों ने जोर मारकर पगहा तुड़ा डाले और घर की तरफ चले। पगहे बहुत मजबूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा, पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं।

झूरी प्रातः काल सो कर उठा तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गरांव लटक रहा था। घुटने तक पांव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आंखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है। 

झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुम्बन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था। 

घर और गाँव के लड़के जमा हो गए। और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गांव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी, बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों का अभिनन्दन पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियां लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।

एक बालक ने कहा- ‘‘ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।’’

दूसरे ने समर्थन किया- ‘‘इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।’

तीसरा बोला- ‘बैल नहीं हैं वे, उस जन्म के आदमी हैं।’

इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस नहीं हुआ। झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा तो जल उठी। बोली -‘कैसे नमक-हराम बैल हैं कि एक दिन वहां काम न किया, भाग खड़े हुए।’

झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-‘नमक हराम क्यों हैं ? चारा-दाना न दिया होगा तो क्या करते ?’

स्त्री ने रोब के साथ कहा-‘बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं।’

झूरी ने चिढ़ाया-‘चारा मिलता तो क्यों भागते ?’

स्त्री चिढ़ गयी-‘भागे इसलिए कि वे लोग तुम जैसे बुद्धुओं की तरह बैल को सहलाते नहीं, खिलाते हैं तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूं कहां से खली और चोकर मिलता है। सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूंगी, खाएं चाहें मरें।’

वही हुआ। मजूर की बड़ी ताकीद की गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।

बैलों ने नांद में मुंह डाला तो फीका-फीका, न कोई चिकनाहट, न कोई रस ! 

क्या खाएं ? आशा-भरी आंखों से द्वार की ओर ताकने लगे। झूरी ने मजूर से कहा-‘थोड़ी–सी खली क्यों नहीं डाल देता बे ?’

‘मालकिन मुझे मार ही डालेंगी।’

‘चुराकर डाल आ।’

‘ना दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।’

दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता।

दो-चार बार मोती ने गाड़ी को खाई में गिराना चाहा, पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज्यादा सहनशील था।

संध्या-समय घर पहुंचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बांधा और कल की शरारत का मजा चखाया फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। अपने दोनों बालों को खली चूनी सब कुछ दी।

दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी ने इन्हें फूल की छड़ी से भी छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहां मार पड़ी। आहत सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा !

नांद की तरफ आंखें तक न उठाईं।

दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पांव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया, पर दोनों ने पांव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाये तो मोती को गुस्सा काबू से बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाटकर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो दोनों पकड़ाई में न आते।

हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है।’

मोती ने उत्तर दिया-‘तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी।’

‘अबकी बड़ी मार पड़ेगी।’

‘पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है तो मार से कहां तक बचेंगे ?’

‘गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है, दोनों के हाथों में लाठियां हैं।’ 

मोती बोला-‘कहो तो दिखा दूं मजा मैं भी, लाठी लेकर आ रहा है।’

हीरा ने समझाया-‘नहीं भाई ! खड़े हो जाओ।’

‘मुझे मारेगा तो मैं एक-दो को गिरा दूंगा।’

‘नहीं हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।’

मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुंचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती पलट पड़ता। उसके तेवर देख गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही भलमनसाहत है।

आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया, दोनों चुपचाप खड़े रहे।

घर में लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियां लिए निकली और दोनों के मुंह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शान्त होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहां भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी मां मर चुकी थी। सौतेली मां उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।

दोनों दिन-भर जाते, डंडे खाते, अड़ते, शाम को थान पर बांध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियां खिला जाती। प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आंखों में रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।

एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘अब तो नहीं सहा जाता हीरा !

‘क्या करना चाहते हो ?’

‘एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूंगा।’

‘लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियां खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है, यह बेचारी अनाथ हो जाएगी।’

‘तो मालकिन को फेंक दूं, वही तो इस लड़की को मारती है।

‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’

‘तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते, बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।’

‘हां, यह मैं स्वीकार करता, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे।’

इसका एक उपाय है, पहले रस्सी को थोड़ा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।’

रात को जब बालिका रोटियां खिला कर चली गई तो दोनों रस्सियां चबने लगे, पर मोटी रस्सी मुंह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।

साहसा घर का द्वार खुला और वह लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूंछें खड़ी हो गईं। उसने उनके माथे सहलाए और बोली-‘खोल देती हूँ, चुपके से भाग जाओ, नहीं तो ये लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाएं।’

उसने गरांव खोल दिया, पर दोनों चुप खड़े रहे।

मोती ने अपनी भाषा में पूंछा-‘अब चलते क्यों नहीं ?’

हीरा ने कहा-‘चलें तो, लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी, सब इसी पर संदेह करेंगे।

साहसा बालिका चिल्लाई-‘दोनों फूफा वाले बैल भागे जे रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो।

गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया, और भी तेज हुए, गया ने शोर मचाया। फिर गांव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहां तक कि मार्ग का ज्ञान रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहां पता न था। नए-नए गांव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

हीरा ने कहा-‘मुझे मालूम होता है, राह भूल गए।’

‘तुम भी बेतहाशा भागे, वहीं उसे मार गिराना था।’

‘उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती ? वह अपने धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोडें ?’

दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट लेते रहे थे। कोई आता तो नहीं है।

जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेकने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहां तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आ गया। संभलकर उठा और मोती से भिड़ गया। मोती ने देखा कि खेल में झगड़ा हुआ चाहता है तो किनारे हट गया।

अरे ! यह क्या ? कोई सांड़ डौंकता चला आ रहा है। हां, सांड़ ही है। वह सामने आ पहुंचा। दोनों मित्र बगलें झांक रहे थे। सांड़ पूरा हाथी था। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है, लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नजर नहीं आती। इन्हीं की तरफ आ भी रहा है। कितनी भयंकर सूरत है !

मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘बुरे फंसे, जान बचेगी ? कोई उपाय सोचो।’

हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-‘अपने घमंड में फूला हुआ है, आरजू-विनती न सुनेगा।’

‘भाग क्यों न चलें?’

‘भागना कायरता है।’

‘तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ दो ग्यारह होता है।’

‘और जो दौड़ाए?’

‘ तो फिर कोई उपाए सोचो जल्द!’

‘उपाय यह है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें। मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है, पर दूसरा उपाय नहीं है।

दोनों मित्र जान हथेली पर लेकर लपके। सांड़ को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुरबा न था। 

वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्यों-ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। सांड़ उसकी तरफ मुड़ा तो हीरा ने रगेदा। सांड़ चाहता था, कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले, पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे। एक बार सांड़ झल्लाकर हीरा का अन्त कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिया। सांड़ क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींगे चुभा दिया। 

आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहां तक कि सांड़ बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया। दोनों मित्र जीत के नशे में झूमते चले जाते थे।

मोती ने सांकेतिक भाषा में कहा-‘मेरा जी चाहता था कि बचा को मार ही डालूं।’

हीरा ने तिरस्कार किया-‘गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।’

‘यह सब ढोंग है, बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।’

‘अब घर कैसे पहुंचोगे वह सोचो।’

‘पहले कुछ खा लें, तो सोचें।’

सामने मटर का खेत था ही, मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाये थे कि आदमी लाठियां लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्र को घेर लिया, हीरा तो मेड़ पर था निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धंसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया। हीरा ने देखा, संगी संकट में है तो लौट पड़ा। फंसेंगे तो दोनों फंसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।

प्रातःकाल दोनों मित्र कांजी हौस में बंद कर दिए गए।

दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा था कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहां कई भैंसे थीं, कई बकरियां, कई घोड़े, कई गधे, पर किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुर्दों की तरह पड़े थे।

कई तो इतने कमजोर हो गये थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए रहते, पर कोई चारा न लेकर आता दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती।

रात को भी जब कुछ भोजन न मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला-‘अब नहीं रहा जाता मोती !

मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया-‘मुझे तो मालूम होता है कि प्राण निकल रहे हैं।’

‘आओ दीवार तोड़ डालें।’

‘मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।’

‘बस इसी बूत पर अकड़ते थे !’

‘सारी अकड़ निकल गई।’

बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा मजबूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और जोर मारा तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस बढ़ा उसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा।

उसी समय कांजी हौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजिरी लेने आ निकला। हीरा का उद्दंड्डपन्न देखकर उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बांध दिया।

मोती ने पड़े-पड़े कहा-‘आखिर मार खाई, क्या मिला?’

‘अपने बूते-भर जोर तो मार दिया।’

‘ऐसा जोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए।’

‘जोर तो मारता ही जाऊंगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएं।’

‘जान से हाथ धोना पड़ेगा।’

‘कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है। सोचो, दीवार खुद जाती तो कितनी जाने बच जातीं। इतने भाई यहां बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है। दो-चार दिन यही हाल रहा तो मर जाएंगे।’

‘हां, यह बात तो है। अच्छा, तो ला फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।’

मोती ने भी दीवार में सींग मारा, थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी, फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंदी से लड़ रहा है। आखिर कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई, उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा तो आधी दीवार गिर पड़ी।

दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे, तीनों घोड़ियां सरपट भाग निकलीं। फिर बकरियां निकलीं, इसके बाद भैंस भी खसक गई, पर गधे अभी तक ज्यों के त्यों खड़े थे। 

हीरा ने पूछा-‘तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?’

एक गधे ने कहा-‘जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएं।’

‘तो क्या हरज है, अभी तो भागने का अवसर है।’

‘हमें तो डर लगता है। हम यहीं पड़े रहेंगे।’

आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें, या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया तो हीरा ने कहा-‘तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो, शायद कहीं भेंट हो जाए।’

मोती ने आंखों में आंसू लाकर कहा-‘तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए हो तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊं ?’

हीरा ने कहा-‘बहुत मार पड़ेगी, लोग समझ जाएंगे, यह तुम्हारी शरारत है।’

मोती ने गर्व से बोला-‘जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधना पड़ा, उसके लिए अगर मुझे मार पड़े, तो क्या चिंता। इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई, वे सब तो आशीर्वाद देंगे।’

यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मार कर बाड़े से बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा। 

भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की जरूरत नहीं। बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।

एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहां बंधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हां, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक नहीं जाता था, ठठरियां निकल आईं थीं। एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहां पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और लोग आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। 

ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीददार होता ? सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आंखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्र के कूल्हों में उंगली गोदकर मुंशीजी से बातें करने लगा। चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों का दिल कांप उठे। वह क्यों है और क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।

हीरा ने कहा-‘गया के घर से नाहक भागे, अब तो जान न बचेगी।’ मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया-‘कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं, उन्हें हमारे ऊपर दया क्यों नहीं आती ?’

‘भगवान के लिए हमारा जीना मरना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार उस भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएंगे ?’

‘यह आदमी छुरी चलाएगा, देख लेना।’

‘तो क्या चिंता है ? मांस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी के काम आ जाएगा।’

नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी कांप रही थी। बेचारे पांव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-प़डते भागे जाते थे, क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर डंडा जमा देता था।

राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-भरे हार में चरता नजर आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था कितना सुखी जीवन था इनका, पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो बाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुःखी हैं।

सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि परिचित राह है। हां, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गांव मिलने लगे, प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह ! यह लो ! अपना ही हार आ गया। इसी कुएं पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआं है।

मोती ने कहा-‘हमारा घर नजदीक आ गया है।’

हीरा बोला -‘भगवान की दया है।’

‘मैं तो अब घर भागता हूँ।’

‘यह जाने देगा ?’

इसे मैं मार गिराता हूँ।

‘नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहां से आगे हम न जाएंगे।’

दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भांति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।

झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आंखों से आनन्द के आंसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।

दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियां पकड़ लीं। झूरी ने कहा-‘मेरे बैल हैं।’

‘तुम्हारे बैल कैसे हैं ? मैं मवेसीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।’

‘‘मैं तो समझता हूँ, चुराए लिए जाते हो! चुपके से चले जाओ, मेरे बैल हैं। मैं बेचूंगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार हैं 

'जाकर थाने में रपट कर दूँगा।’

‘मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।

दढ़ियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा, गांव के बाहर निकल जाने पर वह रुका, पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता वह देख रहा था, दढ़ियल दूर खड़ा धमकियां दे रहा था, गालियां निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था, और मोती विजयी शूर की भांति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गांव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे। जब दढ़ियल हारकर चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौटा। हीरा ने कहा-‘मैं तो डर गया था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।’

‘अब न आएगा।’

‘आएगा तो दूर से ही खबर लूंगा। देखूं, कैसे ले जाता है।’

‘जो गोली मरवा दे ?’

‘मर जाऊंगा, पर उसके काम न आऊंगा।’

‘हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।’ 

‘इसलिए कि हम इतने सीधे हैं।’

रा देर में नाँदों में खली भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था। वह उनसे लिपट गया। झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी आई। उसने ने आकर दोनों बैलों के माथे चूम लिए।

20 Apr, 2020

विवेकानन्द के जीवन संघर्ष की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी,1863 : कलकत्ता में जन्म


सन् 1879 : प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश


सन् 1880 : जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश


नवंबर 1881 : श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट


सन् 1882-86 : श्रीरामकृष्ण से संबद्ध


सन् 1884 : स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास


सन् 1885 : श्रीरामकृष्ण की अंतिम बीमारी


16 अगस्त, 1886 : श्रीरामकृष्ण का निधन


सन् 1886 : वराह नगर मठ की स्थापना


जनवरी 1887 : वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा


सन् 1890-93 : परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण


25 दिसंबर, 1892 : कन्याकुमारी में


13 फरवरी, 1893 : प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में


31 मई, 1893 : बंबई से अमेरिका रवाना


25 जुलाई, 1893 : वैंकूवर, कनाडा पहुँचे


30 जुलाई, 1893 : शिकागो आगमन


अगस्त 1893 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन राइट से भेंट


11 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान


27 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान


16 मई, 1894 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण


नवंबर 1894 : न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना


जनवरी 1895 : न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ


अगस्त 1895 : पेरिस में


अक्तूबर 1895 : लंदन में व्याख्यान


6 दिसंबर, 1895 : वापस न्यूयॉर्क


22-25 मार्च, 1896 : वापस लंदन


मई-जुलाई 1896 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान


15 अप्रैल, 1896 : वापस लंदन


मई-जुलाई 1896 : लंदन में धार्मिक कक्षाएँ


28 मई, 1896 : ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट


30 दिसंबर, 1896 : नेपल्स से भारत की ओर रवाना


15 जनवरी, 1897 : कोलंबो, श्रीलंका आगमन


6-15 फरवरी, 1897 : मद्रास में


19 फरवरी, 1897 : कलकत्ता आगमन


1 मई, 1897 : रामकृष्ण मिशन की स्थापना


मई-दिसंबर 1897 : उत्तर भारत की यात्रा


जनवरी 1898: कलकत्ता वापसी


19 मार्च, 1899 : मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना


20 जून, 1899 : पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा


31 जुलाई, 1899 : न्यूयॉर्क आगमन


22 फरवरी, 1900 : सैन फ्रांसिस्को में वेदांत समिति की स्थापना


जून 1900 : न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा


26 जुलाई, 1900 : यूरोप रवाना


24 अक्तूबर, 1900 : विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा


26 नवंबर, 1900 : भारत रवाना


9 दिसंबर, 1900 : बेलूर मठ आगमन


जनवरी 1901 : मायावती की यात्रा


मार्च-मई 1901 : पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा


जनवरी-फरवरी 1902 : बोधगया और वारणसी की यात्रा


मार्च 1902 : बेलूर मठ में वापसी


4 जुलाई, 1902 : महासमाधि।

20 Apr, 2020

स्वामी विवेकानंद की जीवनी

स्वामी विवेकानन्द (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ – मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ” मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों ” के साथ करने के लिए जाना जाता है । उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

स्वामी विवेकानंद का जीवनवृत्त

स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी सन्‌ १८६3 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान् शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ‘ब्रह्म समाज’ में गये किन्तु वहाँ उनके चित्त को सन्तोष नहीं हुआ। वे वेदान्त और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे।

दैवयोग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। अत्यन्त दर्रिद्रता में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।

स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किये बिना, स्वयं के भोजन की चिंता किये बिना वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

विवेकानंद बड़े स्‍वपन्‍द्रष्‍टा थे। उन्‍होंने एक नये समाज की कल्‍पना की थी, ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद नहीं रहे। उन्‍होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया, उससे सबल बौदि्धक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएं थीं। आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्‍वी संन्‍यासी का यह जीवन-वृत्‍त लेखक उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृ‍ष्‍ठभूमि के संदर्भ में उपस्थित करने का प्रयत्‍न किया है यह भी प्रयास रहा है कि इसमें विवेकानंद के सामाजिक दर्शन एव उनके मानवीय रूप का पूरा प्रकाश पड़े।

स्वामी विवेकानंद का बचपन

बचपन से ही नरेन्द्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के और नटखट थे। अपने साथी बच्चों के साथ तो वे शरारत करते ही थे, मौका मिलने पर वे अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। नरेन्द्र के घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। कथावाचक बराबर इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुक्ता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पंडितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे।

 

गुरु के प्रति निष्ठा

एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखायी तथा घृणा से नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर स्वामी विवेकानन्द को क्रोध आ गया। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को वे समझ सके, स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भंडार की महक फैला सके। उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में थी ऐसी गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा!

शिकागो धर्म महा सम्मलेन भाषण

अमेरिकी बहनों और भाइयों,

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं। भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

– ‘ जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।’

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।

– ‘ जो कोई मेरी ओर आता हैं – चाहे किसी प्रकार से हो – मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।’

साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।

यात्राएँ

२५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये। तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ १८९३ में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। योरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किन्तु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमेरिका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिन्दू’ का नाम दिया। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा” यह स्वामी विवेकानन्दजी का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। ४ जुलाई सन्‌ १९०२ को उन्होंने देह-त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। जब भी वो कहीं जाते थे तो लोग उनसे बहुत खुश होते थे।

विवेकानन्द का योगदान तथा महत्व

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। गुरुदेव रवींन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ‘‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’’

रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था, ‘‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम हुए। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देखकर ठिठककर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा, ‘शिव !’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।’’

वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, ‘‘नया भारत निकल पड़े मोदी की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।’’ और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं—केवल यहीं—आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। उनके कथन—‘‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’’

विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन

स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अेंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?

स्वामी जी शिक्षा द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते हैं । लौकिक दृष्टि से शिक्षा के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि 'हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।' पारलौकिक दृष्टि से उन्होंने कहा है कि 'शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।'

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:

१. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।

२. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भन बने।

३. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।

४. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

५. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।

६. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।

७. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।

८. सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।

९. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय।

१०. मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।

मृत्यु

उनके ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्चभर में है। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा “एक और विवेकानंद चाहिए, यह समझने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है।” प्रत्यदर्शियों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपने ‘ध्यान’ करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घंटे ध्यान किया। उन्हें दमा और शर्करा के अतिरिक्त अन्य शारीरिक व्याधियों ने घेर रक्खा था। उन्होंने कहा भी था, ‘यह बीमारियाँ मुझे चालीस वर्ष के आयु भी पार नहीं करने देंगी।’ 4 जुलाई, 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।

 

20 Apr, 2020

स्वामी विवेकानंद की ये 10 विचार, जो आपके जीवन की दिशा को बदल सकते हैं...

स्वामी विवेकानंद का जन्‍म 12 जनवरी 1863 को हुआ था. उनका जन्मदिन हर साल युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनके विचार ऐसे हैं कि निराश व्यक्ति भी अगर उसे पढ़े तो उसे जीवन जीने का एक नया मकसद मिल सकता है.

जानिए स्वामी विवेकानंद के ऐसे अनमोल विचार, जो आपके जीवन की दिशा को बदल सकते हैं...

1. जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.

2. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

3. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.

4. पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं.

5. उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते.

6. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है.

7.  एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ.

8. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते.

9.ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक

10. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.

हिंदुत्‍व का किया प्रतिनिधित्‍व

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी. 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्‍व धार्मिक सम्‍मेलन में उन्‍होंने भारत और हिंदुत्‍व का प्रतिनिधित्‍व किया था. हिंदुत्‍व को लेकर उन्‍होंने जो व्‍याख्‍या दुनिया के सामने रखी, उसकी वजह से इस धर्म को लेकर काफी आकर्षण बढ़ा. वे औपनिवेशक भारत में हिंदुत्‍व के पुन: उद्धार और राष्‍ट्रीयता की भावना जागृत करने के लिए जाने जाते हैं.

20 Apr, 2020

सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था, महिला प्रकोष्ठ के तत्वावधान में आयोजित कायस्थ महिला महासम्मेलन 8 मार्च 2020 (रविवार), शाम 5 बजे से, मानस भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल की आयोजन समिति सदस्य महिलाओं की सूची

सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था, महिला प्रकोष्ठ के तत्वावधान में आयोजित कायस्थ महिला महासम्मेलन 8 मार्च 2020 (रविवार), शाम 5 बजे से, मानस भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल की आयोजन समिति सदस्य महिलाओं की सूची

श्रीमती किरण संजर, संजोयक महिला सम्मलेन 

श्रीमती प्रतिभा कुलश्रेष्ठ
श्रीमती कामिनी श्रीवास्तव 
श्रीमती श्वेता श्रीवास्तव
श्रीमती इति सक्सेना
श्रीमती श्रुति श्रीवास्तव
श्रीमती प्रीति सक्सेना
श्रीमती सविता श्रीवास्तव

श्रीमती रश्मि श्रीवास्तव 
श्रीमती उमा श्रीवास्तव 
श्रीमती अंजलि वर्मा 
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव 
श्रीमती प्रेरणा जौहरी 
श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव 
श्रीमती सोनल श्रीवास्तव 

श्रीमती कुसुम सक्सेना
श्रीमती साधना श्रीवास्तव
श्रीमती लता श्रीवास्तव 
श्रीमती नीना सक्सेना 
श्रीमती अनु श्रीवास्तव
श्रीमती दुर्गेश सक्सेना
श्रीमती अमृता भटनागर

श्रीमती सृष्टि अंनत संजर
श्रीमती रुपाली सक्सेना
श्रीमती आकांक्षा श्रीवास्तव
सुश्रीअनामिका श्रीवास्तव
सीए सान्या श्रीवास्तव
सुश्री प्रगति श्रीवास्तव 
सुश्री सुकृति श्रीवास्तव

श्रीमती साधना श्रीवास्तव sbi 
श्रीमती बबिता श्रीवास्तव
श्रीमती किरण श्रीवास्तव
श्रीमती रंजना सक्सेना 
श्रीमती सिम्पल श्रीवास्तव
श्रीमती स्नेहा खरे 
श्रीमती अंजना श्रीवास्तव 

श्रीमती प्रीति निगम
श्रीमती अनुष्का श्रीवास्तव
श्रीमती सुषमा श्रीवास्तव
श्रीमती सुचि श्रीवास्तव
श्रीमती पूनम कुलश्रेष्ठ 
श्रीमती सुषमा सक्सेना 
श्रीमती रूचि कुलश्रेष्ठ

श्रीमती वीनू सक्सेना 
श्रीमती सुनीता खरे 
श्रीमती सोमिया सक्सेना 
श्रीमती रश्मि श्रीवास्तव
श्रीमती श्वेता भटनागर
श्रीमती रानी वर्मा
श्रीमती शिल्पी वर्मा 

सभी महिलाओं के समूह बनाये गए है जो सम्मान, सांस्कृतिक, स्वागत, सत्कार, सञ्चालन, अतिथि सत्कार, मंच व्यवस्था आदि समितियों के सदस्या के रूप में आयोजन के कार्यों में अपनी भागीदारी देंगी i

सूची में किसी प्रकार के सुधार या अन्य विषय में सुझाव हेतु सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था के अधिष्ठाता वेद आशीष (रानू) 9303110615 और प्रदेशाध्यक्ष शैलेन्द्र निगम 9425011013 पर संपर्क कर सकते है i 

01 Mar, 2020

भारत के विभिन्न प्रान्तों में निम्न उपनाम के कायस्थ अधिक रहते हैं |

भारत के विभिन्न प्रान्तों में निम्न उपनाम के कायस्थ अधिक रहते हैं |

उत्तर भारत- अम्बष्ट, अस्थाना, अधोलिया, बाल्मिकी, श्रीवास्तव, खरे, सक्सेना, माथुर, निगम, सूरध्वज, गौंड, भटनागर, कुलश्रेष्ट, कर्ण हैं |
दक्षिण भारत-  मुदलियार, नायडू, पिल्ले, नायर, राज, मेमन, रमन, राव, करनाम, लाल, काणिक, रेड्डी, प्रसाद |
राजस्थान - गुप्त, नन्द, शर्मन, फुत्तु, भावेकदानवास, माथुर |
बंगाल - सेन, कार, पालित, चंद्र, साहा, भद्रधर, नंदी, घोष, मल्लिक, मुंशी, डे, पाल, रे ( राय ) गुहा, वेध, नाग, सोम, सिन्हा, रक्षित, अकुर,           नंदन, नाथ, विश्वास, सरकार, चौधरी, बर्मन, भावा, गुप्त,   मृत्युंजय, दत्ता, कुंडु, मित्र, धर, शर्मन, भद्र, बोस |
महाराष्ट्र-  पठारे, चंद्रसेनी, प्रभु, चित्रे, मथरे, ठाकरे, देशपांडे, करोड़े, दोदे, तम्हणे, सुले, राजे, शागले, मोहिते, तुगारे, फडसे, आप्टे, रणदिये,     गड़कारी, कुलकणी, श्राफ, वेध, जयवत, समर्थ, दलवी, देशमुख,  मौकासी, चिटणवीस, कोटनिस, कारखनो, फरणीस, दिघे, धारकर, प्रधान |
गुजरात-  चंद्रसेनी, प्रभु, मेहता, बल्लभी, बाल्मिकी, सूरध्वज |
उडीसा - पटनायक, पाटस्कर, कानूनगो, मोहन्ती, वाहीयार |
आसम-  बरुआ, चक्रवर्ती, पुरुकायस्थ, वेध, चौधरी |
सिन्ध-   आलिभ, फाजिल, कामिल, अडवानी |
नेपाल-  श्रेष्ठ, वैध, चक्रवर्ती, सिन्हा |
पंजाब -  राय, बक्शी, दत्त, सिन्हा, बोस |  गोविल, लाहिरी, हजेला, रायज़ादा, विद्यार्थी, चौधरी, जोहरी, रावत, बिसरिया, सिन्हा, नागपाल, गोत्रीय, खत्री 

03 Feb, 2020

कौन हैं भगवान चित्रगुप्त

सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा की आज्ञा से चित्रगुप्त प्रत्येक प्राणी के कर्मों का लेखा- जोखा रखने का काम करते हैं। चित्रगुप्त भगवान का पूजन विशेष तौर पर कार्तिक शुक्ल द्वितीया को किया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन धर्मराज अपनी बहन से मिलने उनके घर पहुंचते हैं। चित्रगुप्त के एक हाथ में कर्मों की पुस्तक है और दूसरे हाथ से वे कर्मों का लेखा-जोखा करते दिखलाई पड़ते हैं।

08 Jan, 2020

ऐतिहासिक कैथी लिपि कायस्थों की खोज

कैथी कायस्थों की लिपि थी। जब श्रुति परंपरा थी और लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था, तब ज्ञान को हस्तांतरित किया जाता था। इसी से यह परंपरा विकसित हुई होगी। बताया कि जब लिपि की खोज हुई तो कायस्थों ने भी अपनी लिपि कैथी बनाई। जिसका अस्तित्व अब संकट में है। लोग ब्यूरोक्रेट और एकाउंटेंसी में जाने लगे। कभी कायस्थों का भारत के बड़े भूभाग पर नियंत्रण बतौर राजा हुआ करता था। बाद में मुनीब की हैसियत में आ गये। बता दें कि कायस्थ समाज के घरों में उत्साह देखते बन रहा था। बताया गया कि इसकी बड़ी तैयारी कई दिन पूर्व से की जाती है। हर घर में उत्साह देखा जा रहा था।

मुगल शासन व न्यायालयों में हुआ प्रयोग

इतिहास बताता है कि कैथी ऐतिहासिक लिपि है। मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से इसका इस्तेमाल उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में किया जाता था। वर्तमान उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्र में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाते थे। अब भी हजारों ऐसे दस्तावेज उपलब्ध हैं जो कैथी में लिखे गए हैं। विशेषत: जमीन खरीद-बिक्री के दस्तावेज। कैथी को ही कहीं कयथी तो कहीं कायस्थी लिपि कहा जाता है। व्यापार संबधी ब्यौरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले इस लिपी का प्रयोग किया गया था। कैथी का प्रयोग 16 वीं सदी में धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत में प्रयोग काफी होता था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था।

08 Jan, 2020

जागो, सोचो, समझो और बढ़ो समाज को नई दिशा देने की ओर.....

आज हमारे ऊपर ऋण हैं उन बलिदानों का जिनके कारण यह धरोहर हमें मिल पाई, अब हमारा नैतिक दायित्व है कि इस धरोहर से हम अपना, अपने परिवार, अपने समाज व अपने राष्ट्र का उद्धार कर सकें। साथ ही इसे संरक्षित कर एक ऐसा वातावरण बनाए की आने वाली पीढ़ियों का विश्वास समाज में दृढ़ हो सके। परन्तु आपके बगैर यह जागृति अधूरी है, ध्यान रहे अगर आज नहीं जागे तो कल समाज और समय हमें क्षमा नहीं करेगा। ईश्वर की सृष्टि में प्रत्येक मनुष्य यथायोग्य अपना निर्वाह करता है परंतु कायस्थ श्रेष्ठ इसलिए है, क्योंकि वह बुद्धि का स्वामी है और बुद्धि से सोच-विचार करने में समर्थ है हमने कायस्थ कुल में जन्म लिया है तो आवश्यक है कि हम अतीत के अपने दायित्व, वर्तमान की जिम्मेदारी और भविष्य के प्रति अपने सामाजिक दायित्व को समझकर समाज की गतिविधियों में पर्याप्त रुचि लेकर अपनी जिम्मेदारी एवं योगदान पर गंभीरता से विचार करते हुए कार्य प्रारंभ करें। जागो, सोचो, समझो और बढ़ो समाज को नई दिशा देने की ओर.....

 

कायस्थ समाज वेब पोर्टल के बारे में सर्व प्रथम परिजनों को अवश्य बताएं अन्य समाजसेवी चित्रांश बंधुओं मित्रों परिचितों एवं रिश्तेदारों को भी अवगत कराने में सहयोग प्रदान करें।

07 Jan, 2020

कायस्थ समाज वेब पोर्टल को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए मजबूत टीम की आवश्यकता

कायस्थ समाज वेब पोर्टल को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए मजबूत टीम के निर्माण की आवश्यकता है और इसको सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय हो। वर्तमान में इंटरनेट के माध्यम से हम विश्वभर को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए कायस्थ समाज वेब पोर्टल की योजना एक सफल शुरुआत सिद्ध होगी। कायस्थों को संगठित करने हेतु विभिन्न स्तरों पर कई गतिविधियां चलाई जा रही हैं। कायस्थ समाज वेब पोर्टल का संक्षिप्त परिचय निमावत है कायस्थ समाज डॉट इन इस वेबसाइट पर विश्वभर के कायस्थ परिवार को ऑनलाइन पंजीयन कराया जा रहा है।
अबाउट चित्रगुप्त जी- यहां अपने इष्ट देव महाराज की उत्पत्ति और वंशावली का विवरण चित्र कथा आदि दिखाया गया है।
अबाउट कायस्थ- भारत की आजादी और निर्माण में कायस्थों के बलिदान और योगदान एवं समाज की प्राचीन एवं नवीन इतिहास की जानकारी दी गई है।
ई पत्रिका- यहां कायस्थ समाज के प्राचीन इतिहास, दुर्लभ चित्र ओर जानकारी को संगृहीत किया गया हैं। यहाँ आप अपने पास उपलब्ध जानकारी को आपके परिचय के साथ इस संग्रहालय में संग्रहित कर  वेबसाइट के माध्यम से पूरे विश्व भर में विस्तृत विवरण के साथ प्रसारित कर सकते हैं।
ivr  सेवा और sms  सेवा के माध्यम से संबंधित समस्त जानकारी सेवा पूरे विश्व भर में उपलब्ध कराई जा रही है। समाज के संदेशों को मोबाइल के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है। श्री चित्रगुप्त स्तुति कॉलर ट्यून व रिंगटोन के रूप में उपलब्ध है।
सोशल मीडिया के माध्यम से कायस्थ उत्थान के विचारों को प्रभावशाली तरीके से कायस्थों के समक्ष रखकर सत्य इतिहास से कायस्थों को परिचित कराया जा रहा है। जो सोशल मीडिया की सभी साइट पर उपलब्ध है।
कायस्थ समाज वेब पोर्टल पर बच्चों के लिए, युवाओं के लिए  महिलाओं के लिए ओर बुजुर्गों के लिए अलग-अलग सहायता सूचक दिए गए है।
ऑनलाइन पंजीयन, कायस्थ वैवाहिकी मेट्रोमोनियल, कायस्थ सहायता, दूरभाष निर्देशिका, रोजगार सूचना, उद्योग, व्यवसाय, कायस्थ परिवारों का विवरण और जानकारियां देखी जा सकती है और विभिन्न राज्यों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

07 Jan, 2020

कायस्थ समाज ने दिलाया सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी का अहसास

कायस्थ समाज ने सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी का अहसास दिलाते हुए कोई ऐसा सार्थक कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ा जिससे कायस्थ समाज पृथक रहा हो। समाज के महापुरुषों ने केवल व्यक्तिगत उन्नति से संतुष्ट न रहकर, सदैव राष्ट्र की सेवा करने को प्रेरित किया है। तभी अनेकों कायस्थ-जन एक ओर स्वतंत्रा संग्राम तो दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों ओर पाखंडों  के विरोध में जान हथेली पर रखकर लड़े।
आज कायस्थ समाज की उस जिम्मेदारी को पुनः जागृत करना होगा। राष्ट्र पर आज भी भयंकर खतरों के बादल मंडरा रहे हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार हो या फिर सांप्रदायिकता या पाखंड। अपने-अपने स्तर पर कुछ संस्थाएं व बुद्धिजीवी इन समस्याओं से जूझ रहे हैं परंतु उन प्रयासों में आज कायस्थ समाज का योगदान ना के बराबर है। अगर आप इससे सहमत हैं कि कायस्थ समाज को राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए की पूर्व की भांति सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ओर अगर आप इस भूमिका में अपना योगदान देना चाहते हैं तो कृपया अपने विचार अवश्य देवें। इससे भावी योजनाएं बनाने में महत्वपूर्ण सहयोग मिलेगा।  

07 Jan, 2020

तैंतीस कोटि देवताओं में सर्वमान्य हैं श्री चित्रगुप्त जी महाराज

श्री चित्रगुप्त जी महाराज तैंतीस कोटि देवताओं में सर्वमान्य हैं। जिन्होंने विश्व के प्रथम ग्रंथ के रूप में वेद ग्रंथ लिखा विगत हज़ार वर्षों से ऋषि मुनियों द्वारा (जिसमें कायस्थ ऋषि मुनि भी सम्मिलित हैं) इतने वेदानुकूल ग्रंथ लिखे गए कि उनकी गिनती ही नहीं है, पिछले डेढ़ सौ वर्षो में स्वामी विवेकानंद और चित्रगुप्त जी के अनुयायियों ने हजारों हजार किताबों में इस विचारधारा को संजोया था। कायस्थ इतिहास ऐसी अमूल्य व अतुल्य निधि है। जिसे पाकर हम गौरवान्वित हैं, परंतु यह धरोहर हम खोते जा रहे हैं हमारा इतिहास लुप्त होता जा रहा है। कारण ना तो हम इस उसे सहेज पा रहे हैं ना प्रयत्न कर उसके संरक्षण संवर्धन का प्रयास कर रहे हैं ना ही कोई प्रकाशन का कार्य कर रहे हैं। भारत के स्वतंत्र संग्राम व राष्ट्र निर्माण के इतिहास पर लिखी गई पुस्तकों में से हमारे समाज का इतिहास लुप्त कर दिया गया है।आज इस निधि का एकत्रीकरण कर इसका संरक्षण हमारी भौतिक सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। कायस्थ ई संग्रहालय और लेखा-जोखा अभिलेखागार जैसी योजनाएं इसी उद्देश्य से शुरू की जानी है। जिसके अंतर्गत कायस्थ साहित्य, कायस्थ समाज के इतिहास से जुड़े दस्तावेज इत्यादि एक स्थान पर एकत्रित किए जा सकें। साथ ही दीर्घकालीन संरक्षण के लिए इंटरनेट के माध्यम से ई दस्तावेज में परिवर्तित किया जा सकता है, ताकि विश्व भर में कायस्थ समाज के शोधकर्ता एवं विचारक चित्रगुप्त वंश का ज्ञान एवं इतिहास का अध्ययन कर सकें और इसे सत्य ज्ञान के प्रति कायस्थों की रुचि बढ़ सकें। दुर्लभ साहित्य के संरक्षण साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि हम कायस्थ विद्वानों के विभिन्न विषयों पर उनके विचारों को वीडियो में रिकॉर्ड कर संरक्षित करें। जिन्हें टीवी चैनल, इंटरनेट और सोशल मिडिया  के द्वारा प्रचारित कर बड़े स्तर पर उठाया जा सकता है। साथ में भविष्य के लिए यह एक निधि भी बन जाएगी। और एक अच्छी योजना बनाकर विभिन्न सभाओं एवं आयोजन में विशिष्ट विद्वानों के विचार एवं भाषण की रिकॉर्डिंग भी दिखाई जा सकेगी।

07 Jan, 2020

हमारे समाज को शत प्रतिशत शिक्षित समाज होने का गौरव प्राप्त है

हमारे पूर्वजों ने शिक्षा पर अत्यंत जोड़ दिया था इसलिए हमारे समाज को शत प्रतिशत शिक्षित समाज होने का गौरव प्राप्त है, क्योंकि यह सर्वविदित है कि हर समाज का उत्कृष्ट सृजन केवल शिक्षा से ही हो सकता है। आज शिक्षा का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि कायस्थ समाज के लिए कोई ज्ञानवर्धक केंद्र खोलकर अपनी शिक्षा, संस्कार एवं सभ्यता को भावी पीढ़ी तक पहुंचाना संभव नहीं है विश्व भर में अनुमानित तीन करोड़ कायस्थ छात्र-छात्राएं शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं - जो कि भारत का भविष्य है!  इन अध्यनरत कायस्थ बच्चों में अपने समाज के मानवीय मूल्य व समाज प्रेम की भावनाओं को जागृत करना आवश्यक है। विचारणीय है कि इन अध्ययनरत कायस्थ बच्चों तक वैचारिक रूप से कैसे पहुंचा जाए। यहां पर हम फिर आधुनिक तकनीक का उपयोग कर सकते हैं एक सफल प्रयोग इंटरनेट द्वारा हुआ है जिसके अंतर्गत कायस्थ समाज का कायस्थ समाज डॉट इन नाम से वेब पोर्टल बनाया गया। जिसे आज देश के लगभग सभी कायस्थ संगठनों और एक लाख से अधिक कायस्थों ने लॉगिन किया है। हमारा  प्रयास है कि देश के विभिन्न भाषा, विभिन्न संस्था एवं कायस्थ परिवार के हर उम्र के व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक आधुनिक जानकारी हो जिसका प्रत्येक कायस्थ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सके। कल्पना करें कि तीन करोड़ों अध्ययनरत कायस्थ बच्चों में से अगर हम 10% पर भी कायस्थ समाज के उच्च विचारों की छाप छोड़ सके तो भविष्य के यह तीस लाख युवा कायस्थ समाज व राष्ट्र का उद्धार नहीं कर सकेंगे। अगर हमें अपने देश को उद्धार करना है तो अपने समाज को पहले संगठित एवं विकसित करना होगा।

07 Jan, 2020

अब हर कायस्थ परिवार जुड़ेगा विश्वभर से

हमने कायस्थ समाज वेब पोर्टल के माध्यम से विश्व स्तर पर कायस्थों को जोड़ने के लिए कायस्थ समाज महासंपर्क अभियान की रूपरेखा बनाई जिसे सभी ने आशातीत समर्थन दिया है उसी के फल स्वरुप कायस्थ समाज के संगठनों से मिलकर कायस्थ समाज डॉट इन के नाम से एक वेब पोर्टल बनाया है। जिसमें विभिन्न अभियान, योजना, कला-प्रदर्शन, त्यौहार एवं कार्यक्रम आयोजन करने तथा उनका प्रचार करने की योजना है। कायस्थ समाज महासंपर्क अभियान  उसी का परिणाम है जिसका प्रचार कई चैनलों, एफ एम  रेडियो और सोशल मिडिया पर नियमित हो रहा है, यह हमारी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। हमारा लक्ष्य कायस्थ समाज वेब पोर्टल के माध्यम से प्रभावशाली सामाजिक एवं देशभक्ति कार्यक्रम प्रसारित किया जा सके ताकि जनसाधारण में नई सोचा व  चेतना का संचार हो सके।
इस उद्देश्य को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि समाज के हर वर्ग के लिए उचित कार्यक्रम हो जैसे बच्चों के लिए कार्टून देखना पसंद करते हैं उनके लिए कायस्थ समाज आधारित कार्टून फिल्म और कॉमिक्स, किड्स लायब्रेरी हो। किशोर युवाओं के लिए उनकी रूचि के अनुसार समाज के महापुरुषों से संबंधित जानकारी, समाज के साहित्यकारों द्वारा लिखित पुस्तकें, महापुरुषों द्वारा किए गए त्याग की प्रेरणादायक व ज्ञानवर्धक जानकारी, परिचर्चा और  खुला मंच इत्यादि हो जो उन्हें राष्ट्रहित में जागृत कर सके। महिलाओं के लिए उनकी रूचि अनुसार कार्यक्रम हो। वरिष्ठ जनों के लिए भजन, सत्संग धार्मिक प्रवचन आदि हो जो उन्हें सुखदायक हो।
हमें आशा है कि कायस्थ समाज वेब पोर्टल में प्रदर्शित सुविधा कहीं ना कहीं आपके दिलों में जगह जरूर बनाएंगे। हमारा प्रयास नये प्रभावशाली कार्यक्रमों के माध्यम से करोड़ों दिलों को छूने का है। देश की अन्य भाषाओं से सम्बद्ध स्वजनों से भी हम इस अभियान में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं।
परंतु यह आसान नहीं है। इसके लिए अभी और भी व्यापक साधनों की आवश्यकता है। सर्वेक्षण के अनुमान से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक कायस्थ परिवार को जोड़ने का सॉफ्टवेयर (जो पूर्णता आधुनिक संसाधनों व सुविधाओं से युक्त हो) की अनुमानित लगत लगभग एक करोड़ संभावित है। साथ ही एक ऐसी विशाल विचारधारा से ओतप्रोत टीम की आवश्यकता है जो भव्य अभियान मैं निस्वार्थ भाव से संपूर्ण मनोयोग से सक्रिय भागीदारी ले सके।
आज यह कार्य हमें बड़ा लग सकता है पर जरा सोचिए जब हम सभी धार्मिक एवं विभिन्न विषयों को लेकर आयोजित अनेक कार्यक्रमों में भागीदारी दे रहे हैं, अन्य समाज हमारे समाज के महापुरुषों की प्रेरणा से अनेकों आयोजन कर रहे हैं, तो क्या राष्ट्र व समाज निर्माण के हमारे द्वारा यह कोई बड़ा कार्य है या बड़ी कीमत है?  सबसे बड़ी वस्तु है सबका संगठित होकर कार्य करना जो कि हर असंभव कार्य को संभव बना देता है अगर अब हम सभी संगठित होकर कार्य करेंगे तो निश्चित रूप से असंभव कार्य को संभव बना देंगे।

07 Jan, 2020

कायस्थ समाज को सशक्त बनाने के लिए शुरू हुआ वेब पोर्टल

कायस्थ समाज वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है आपको यहां का समाज के उत्थान में हो रहे नवीन प्रयोगों की झलकियां देखने को मिलेंगी वह चाहे किसी संस्था द्वारा की जा रही है या फिर सोशल मिडिया और इंटरनेट पर दिखाई जा रही योजनाएं हो, हमें आशा है कि यह आपको भी पसंद आएगी। इन योजनाओं के मूल रूप में आधुनिक साधनों का प्रयोग है, जिससे हमें आशा है कि कायस्थ समाज अब चित्रगुप्त जी के मंदिरों के परिसरों से बाहर निकल कर अपने समाज के बंधुओं के घरों तक प्रभावशाली तरीकों से अपनत्व बना पाएगा, उनके मत मस्तिष्क  में अपना महत्वपूर्ण स्थान निर्धारित कर सकेगा।

परंतु यह सुगमता से संभव नहीं हो सकता आप सभी की प्रशंसा स्थानीय रूप से कार्यकर्ताओं का उत्साह एवं मनोबल तो बढ़ाती है, परंतु वर्तमान की राष्ट्रीय योजनाएं आगे चलकर विश्व स्तर की होंगी। यह तभी आगे बढ़ेगी जब आप सभी का संपूर्ण मनोयोग से सक्रिय योगदान मिलेगा। वर्तमान में हमारा उद्देश्य आपको कायस्थ समाज वेब पोर्टल के माध्यम से कायस्थ समाज की सांस्कृतिक विरासत, प्राचीन इतिहास , साहित्य, दर्शन, विभिन्न अभियानों, योजनाओं, कार्यक्रमों, कला-प्रदर्शनों, त्यौहारों एवं समाज के बारे में की जानकारी देना है ताकि आप इनको समझ कर कायस्थ समाज के आयोजनों के संचालन एवं परिपूर्णता में अपनी सहभागिता पर विचार कर अपनी भूमिका तैयार कर सकें

आज हमारे सामने समाज जागरण हेतु मूलता चार बिंदु है  शिक्षा, सेवा, संगठन एवं संरक्षण  यद्यपि इन चारों बिंदुओं पर कार्य तो हमेशा से ही होता आया है, पर आज हम विचार कर रहे हैं कि किस प्रकार विज्ञान और तकनीकी के नए संसाधनों से प्रयोग से इन सभी में एक अभूतपूर्व नई क्रांति का संचार कर सकें।

07 Jan, 2020

कायस्थ समाज ने भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति स्थापित की

भारतीय कायस्थ महासभा की महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव ने सोमवार को इस्माइलपुर में भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति की स्थापना की। इस दौरान सभी कायस्थ बंधुओं ने पूजा अर्चना कर भगवान चित्रगुप्त की भव्य प्रतिमा की स्थापना कराई। मौके पर हरियाणा महामंत्री बीएस सक्सेना समेत जेपी श्रीवास्तव, अतुल सिन्हा, सुनील सिन्हा, अमित, सतीश दत्ता, रत्नेश मालिक, संजय श्रीवास्तव ,अतुल श्रीवास्तव बतौर अतिथि मौजूद रहे। मेघना श्रीवास्तव ने कहा कि ऐसे धार्मिक एवं सामाजिक आयोजन समाज के लोगों को साथ जोड़ते हैं। उन्होंने सभी से कायस्थ समाज को मजबूत करने में सहयोग देने की अपील की। इस दौरान विनय कुमार श्रीवास्तव, प्रमोद श्रीवास्तव, राजेश चंद्र, शिव कुमार सिन्हा, श्रवण कुमार लाल, मुकेश सक्सेना, राम मनोहर भूषण, राकेश वर्मा, सुनील सिन्हा आदि मौजूद रहे।

29 Dec, 2019

कायस्थ समाज से देश की प्रगति में अहम भागीदारी निभाने का आह्वान

कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय उप्र इकाई की ओर से रविवार को अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान में कायस्थ महाकुंभ-2018 के आयोजन किया गया। जिसमें देश व प्रदेश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली कायस्थ समाज की विभूतियों को भास्कर सम्मान से सम्मानित किया गया है। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार सक्सेना, पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन, डा. एके श्रीवास्तव, पूर्व सूचना आयुक्त वीरेंद्र सक्सेना, बलदाऊ जी श्रीवास्तव, कौशल कुमार श्रीवास्तव, समाजसेविका, ज्योति खरे व शिक्षाविद् व सेवानिवृत्त प्राचार्य भगवती प्रसाद खरे समेत 11 हस्तियों को प्रशस्ति-पत्र व अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।

प्रशासनिक सेवा में समाज की भागीदारी बढ़ाएं

समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना ने कायस्थ समाज से देश व समाज की प्रगति में अहम योगदान निभाने का आह्वान किया। साथ ही युवाओं से उच्च शिक्षा प्राप्त कर न्याय के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने कहा कि प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में समाज के लोगों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। उन्होंने समाज के परिवारों से अपने बच्चों को प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने का आह्वान किया। डा. एके श्रीवास्तव, वीरेंद्र सक्सेना, वरिष्ठ पदाधिकारी पंकज भैया समेत अन्य पदाधिकारियों च अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार रखे।

कार्यक्रम संयोजक दिनेश चंद्र खरे ने बताया कि कायस्थ महाकुंभ में प्रदेश की विभूतियों के साथ दस देशों के कायस्थ वंशजों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि महाकुंभ का उद्देश्य भारत सरकार व प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं व कार्यक्रमों की जानकारी पात्र लोगों तक पहुंचाकर उन्हें लाभान्वित कराने में समाज की भागीदारी सुनिश्चित कराना है। साथ ही कायस्थ समाज के बिखरे हुये लोगों को एकत्र कर समाज व देश की प्रगति में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कराना कायस्थ वाहिनी अन्तर्राष्ट्रीय उप्र इकाई के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है। कायस्थ समाज के वंशज भगवान श्री चित्रगुप्त के ब्रह्मलोक में आम लोगों का लेखा-जोखा रखकर अपने दायित्वों का निर्वहन बेहतर ढंग से संपादित किये जाने का उल्लेख वेदों में किया गया है।

29 Dec, 2019

अभा कायस्थ महासभा की बैठक 11 अगस्त को सुबह 10 बजे से डिपो चौराहा, जवाहर चौक स्थित चित्रगुप्त मंदिर परिसर में

अभा कायस्थ महासभा की बैठक 11 अगस्त को सुबह 10 बजे से डिपो चौराहा, जवाहर चौक स्थित चित्रगुप्त मंदिर परिसर में होगी। इसमें महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुवोधकांत सहाय मौजूद रहेंगे। प्रदेश महामंत्री राकेश श्रीवास्तव ने बताया कि बैठक में प्रदेश के 22 जिलों के जिलाध्यक्ष सामाजिक मुद्दों पर चिंतन करेंगे।

29 Dec, 2019

12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर होगा अखिल भारतीय कायस्थ युवक युवती परिचय सम्मलेन

12 जनवरी 2020 को स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर नंदन पैलेस, होशंगाबाद रोड, भोपाल में 12 बजे से अखिल भारतीय कायस्थ युवक युवती परिचय सम्मलेन आयोजित किया जा रहा है i साथ ही कायस्थ समाज के वेब पोर्टल का शुभारम्भ भी किया जा रहा है यह कायस्थ मंडल नगरीय क्षेत्र वेलफेयर सोसायटी और सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था का संयुक्त आयोजन है i

26 Dec, 2019