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सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था के अधिष्ठाता वेद आशीष श्रीवास्तव की कलम से .....

भारतवर्ष में कायस्थ समाज की गरिमा का स्वर्णाक्षरी गौरवमयी इतिहास साक्षी के रूप में विद्यमान है। इसका सम्पूर्ण वर्णन व आद्योपान्त घटना चक्र को दर्शाना बालू के कण गिनने के समान है। विश्व इतिहास में अपना अलग स्थान रखने वाली अनेक कई प्रमुख घटनाएँ व कार्य ऐसे है जो केवल कायस्थ समाज के माध्यम से ही संभव हुऐ। उनमें से कुछ का संक्षिप्त उल्लेख यहाँ किया है। और विस्तृत विवरण वेबसाइट पर साहित्य प्रकोष्ठ का निर्माण कर प्रकाशित करने का निश्चय किया गया है।
यहाँ कायस्थ समाज के संबंध में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है। विस्तृत जानकारी वेबसाइट की ई-पत्रिका में आपको उपलब्ध हो सकेगी। कायस्थ समाज डॉट कॉम का निर्माण एक बडे ही पवित्र उद्देश्य को सामने रखकर किया है। श्री चित्रगुप्त एवं कायस्थ समाज के पूर्वजों के कार्यों और विचारों का प्रचार-प्रसार देश के कोने-कोने में प्रत्येक चित्रांश तक हो और इसका क्षेत्र न केवल भारत हो अपितु संसार के अन्य देशों में भी रसे-बसे कायस्थ जन तक हो। इस उद्देश्य की सफलता हेतु सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था ने वेबसाइट के माध्यम से प्रयास प्रारंभ कर इन्टरनेट और सोशल साइटस् के जरिये भारत के बाहर के देश अमेरिका, अफ्रीका, गयाना, माॅरिथस, हालैण्ड, इंग्लैण्ड आदि आदि देशों में भी कायस्थ समाज महासम्पर्क अभियान शुरू किया जा रहा हैं। लक्ष्य बड़ा पवित्र व विशाल है, इस हेतु हम श्रेष्ठ समाज को एक बनाने का घोष करते हैं।
कायस्थ समाज का इतिहास और समाज के महापुरुषों का जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षमय रहा है। विगत् हजारों वर्षों से व्याप्त अकर्मण्यता एवं अज्ञान ने समाज को अपना अहित मानकर उसका पुरजोर विरोध किया, किन्तु हिमालय सी दृढ़ता रखने वाले त्यागी, बलिदानियों का यह समाज निरन्तर सब तूफानों से जूझता हुआ अबाध गति से आगे बढ़ता रहा है। जमाना कायस्थों के संकल्प, जीवट्ता और निर्भिकता को देख स्तम्भित रहा है। भारत के इतिहास में कायस्थ समाज ही पहला समाज है जिसका भारत की आजादी में सर्वाधिक योगदान रहा। अपने समाज के सुनहरे इतिहास को सुनकर हर कायस्थ का मन गौरवान्वित हो जाता है। किन्तु यह सब तब तक रहा जब तक हममें त्याग, समर्पण और सेवा की भावना समाज का आदर्श रही। किन्तु जैसे एक प्रतिष्ठित व संस्कारित परिवार में कभी-कभी परिवार का कोई सदस्य परिवार की मान्यताओं का विरोधी हो जाता है, गलत संस्कारों के प्रभाव में बाहरी तत्वों से सम्बन्ध जोड़ परिवार को क्षति पहुॅंचाने लगता है, परिवार की कार्यक्षमता को कमजोर कर देता है।
ठीक उसी प्रकार कायस्थ समाज को कुछ लोगो ने अपनी लोकेषणा, वित्तेषणा व पुत्रेषणा का शिकार बनाकर कमजोर करने का प्रयास किया। परिणाम समाज पीछे और स्वार्थ को आगे रख यह माना जाने लगा वे समाज के लिये नहीं बल्कि समाज उनके लिए बना हो ।
यहाँ इस संबंध में विस्तृत विवरण या चर्चा आवश्यक नहीं है किन्तु संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इसका एक कारण यह भी रहा कि हम दूषित प्रवृत्ति का पुरजोर विरोध न कर चुपचाप सब देखते रहे, यह हमारी कमजोरी रही उसके परिणाम स्वरूप अप्रत्यक्ष रूप से सत्य को अस्वीकार कर उसका साथ नहीं दिया। क्योंकि ‘‘मौन सत्यं विनस्यति’’ मौन सत्य को नष्ट कर देता है। खैर जो समाज प्रेमी दीवाने हैं वे इन सबके बाद भी निरन्तर बढ़ रहे हैं। कायस्थ समाज का कुछ महत्वकांक्षी एवं राजनैतिक मंच या अन्य संगठनों की भांति जिनमें नियम-उपनियम, सिद्धांतों व नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता, ऐसा समाज बनाना चाहते हैं, किन्तु ऐसी दूषित विचारधारा को कुचलते हुये कायस्थ महापुरुषों के सपनों का समाज बनाने हेतु हम सब कटिबद्ध हों और सभी कायस्थ बंधु कायस्थ समाज महासम्पर्क अभियान के प्रमुख भागीदार बनकर आगे रहें। हमारा लक्ष्य संसार के समस्त कायस्थ संगठन और कायस्थ जन को संगठित करना है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सब कठिन लग रहा है। किन्तु हम आशावादी हैं, कार्य कठिन है, किन्तु असंभव नहीं है। हम उन महान् महापुरुषों के अनुयायी है जिन्होंने दुनियाँ को जगा दिया, असंभव को संभव कर दिखाया। हमें उनसे यही शिक्षा लेनी चाहिए कि कैसे कंटकाकीर्ण पथ को भी सुगम बनाया जा सकता है। कार्य तो बहुत करना है। किन्तु जिस प्रकार हमारे शरीर के किसी भाग में उठ रहा दर्द पूरे शरीर को प्रभावित कर देता है और शरीर की कार्य क्षमता पर भी प्रभाव डालता है। वही स्थिति वर्तमान में हमारे समाज की है। उपर्युक्त विचारों को कार्य रूप में परिणित करने के लिये कार्य करने की विस्तृत योजना हमारे पास है जिसे कुछ वर्षों में पूर्ण करने का लक्ष्य है। केवल योजना बनाना ही सफलता का मापदण्ड नहीं है, उन पर किस प्रकार कार्य हो यह भी निश्चित किया जाता है। जो हमने किया है। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की कृपा हुई, सबका सहयोग मिला तो इस योजना को हम और आप मिलकर सार्थक बना सकेंगे, इतना आत्म विश्वास है। अन्त में इस पवित्र कार्य में जिनका सहयोग प्राप्त है, उन सबको धन्यवाद है, मनुष्य प्रवृत्ति के कारण इसमें त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है। फिर भी समाजहित संबंधी बहुत सारी बातें प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। आशा है कि सुविज्ञजन इसे इसकी मूलभावना से जोड़कर देखेंगे। मैं भगवान श्री चित्रगुप्त जी का कोटिशः धन्यवाद करता हूँ, तदुपरान्त उन समस्त कायस्थजनों का भी जो तूफान के सामने अडिग खड़े रहकर समाज का कार्य करने के लिये कटिबद्ध हैं। उनकी समर्पण और समाज के प्रति भावना को कोटिशः नमन्। धन्यवाद ।

सदैव आपका

वेद आशीष श्रीवास्तव
अधिष्ठाता
सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था