नई पीढ़ी की नई मिसाल हैं सारंग - बद वास्ती
भोपाल की सियासी माहौल की थोड़ी मालुमात रखने वाले के लिये भी मोहतरम कैलाश सारंग साहब का नाम अंजान नहीं होगा और इसी बिना पर मैं भी सारंग साहब को जानता हूं लेकिन वो दूसरे सियासी लीडरों से अलग इसलिये नजर आते हैं कि वो उर्दू जबान को जानते और मानते भी हैं । इसलिये वो सिर्फ सियासी जलसों में ही नहीं बल्कि अदबी महफिलों में भी नजर आते हैं और मैं ऐसी कई महफिलों का गवाह भी हूं जिसमें सारंग साहब की उर्दू की तकरीरें भी सुनी हैं वो भले ही ऐसी सियासी पार्टी से जुड़े हों जिसका एजेंडा कुछ और हो , मगर जाती तौर पर वो भोपाल की गंगा जमुनी तहजीब की एक जीती जागती मिसाल हैं ।
उर्दू खादिम होने के नाते एक बात में हमेशा महसूस करता रहा हूं कि हम जब हिन्दी उर्दू की दोस्ती की बातें बहुत करते हैं जब मिसाल देने की बात आती है तो हम चकबस्त , फ़िराक , प्रेमचंद्र , बेदी , कृष्णचंद की ही मिसालें देते हैं , जो एक गुजरा हुआ दौर था , बल्कि आज हिन्दी में जो उर्दू लिट्रेचर का अनुवाद मिलेगा , वो भी इस दौर का ही है , आज के दौर में उर्दू में क्या लिखा जा रहा है , इससे हिन्दी वाले अंजान हैं , यही कुछ हालात उर्दू में मौजूद हिन्दी साहित्य का है , यह सब कहते हैं कि उर्दू मुसलमानों की जबान नहीं है और यह सच भी है जिसे आज गोपीचंद नारंग और कैलाश सारंग जैसी मिसालें साबित भी करती हैं , जिन्होंने उर्दू को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है जो प्रेमचंद , बेदी , रघुपति सहाय , की कड़ी को आगे बढ़ाती है ।
जिंदगी का हिस्सा बना लिया है जो प्रेमचंद , बेदी , रघुपति सहाय , की कड़ी को आगे बढ़ाती है । कहा जाता है कि किसी की तहजीब को समझना हो तो उसकी जुबान को समझना जरूरी होता है और इसी फलसफे को अपनाकर मोहतरम कैलाश सारंग साहब ने भोपाल की अवाम में अपनी पहचान बनाई है , उनकी मेगजीन में उर्दू शायरी के पेज के सिलसिले में एक दो मुलाकातें भी हुई थीं । एक शायर के कलाम को लेकर एक सिलसिला शुरू किया गया था , जो बाद में किसी वजह से बंद कर दिया गया है , इस मुलाकात के दौरान ही उनकी उर्दू शायरी से मोहब्बत मालूम हुई , फिर अपने बड़ों से साप्ताहिक “ अयाज ” की बातें सुनीं , जो आज के उर्दू हल्के में यादगार दिनों की याद दिलाती है और एक तमन्ना जागती है काश वो अयाज के दिन दोबारा लौटें और सारंग साहब को वो जोश हमारी पीढ़ी को भी देखने को मिले जो उन्होंने उर्दू हिन्दी को एक करने के लिये उठाया था । जिसकी आज के हालात में जरूरत भी है । यही नेक ख़्वाहिशात के साथ मैं उनकी 75 वीं सालगिरह पर दिली मुबारक बाद देता हूं ।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है )