भाई दूज का दिन जहां भाइयों और बहनों के लिए खास होता है वहीं कायस्थ समाज के लोगों के लिए भी विशेष महत्व वाला होता है। भगवान चित्रगुप्त के चित्र के समक्ष कलम-दवात रखे गए और उनकी भी पूजा की गई।
कायस्थ समाज के सदस्यों ने यम द्वितीया के मौके पर अपने प्रेरणास्रोत भगवान चित्रगुप्त का पूजन किया। इस अवसर पर हुई गोष्ठी में वक्ताओं ने भगवान चित्रगुप्त के कृतित्व पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने कहा कि भविष्य पुराण में चित्रगुप्त की जन्म कथा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। ब्रम्हा की 12 वर्ष की तपस्या के बाद उनकी काया से भगवान चित्रगुप्त का जन्म हुआ था। इसके बाद यमराज के दरबार में उनको धर्म और अधर्म का लेखा-जोखा करने का काम सौंपा गया।
मान्यता के अनुसार, उनके द्वारा किए गए लेखा-जोखा के बाद ही प्राणी को नया जन्म प्राप्त होता है। इस कारण कायस्थ समाज में यम द्वितीया के दिन कलम और दवात के पूजन का चलन शुरू हुआ। शहर में कायस्थ समाज के विभिन्न संगठनों की ओर से भगवान चित्रगुप्त का पूजन विधि विधान से किया गया। कायस्थ समाज वाराणसी की ओर से इस अवसर पर सायंकाल सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया।