पत्रकार - राजनेता श्री सारंगजी -प्रियकुमार
श्री कैलाश नारायण सारंगजी देश के उन गिने चुने राजनेताओं में से एक हैं जिन्होंने पत्रकारिता से राजनीति में प्रवेश किया और राजनीति के क्षेत्र में पद और प्रतिष्ठा का प्रभामण्डल चारों ओर होने के बावजूद पत्रकारिता से अपने पहले प्यार को वे विस्मृत नहीं कर सके । राजनीति के क्षेत्र में कुछ समय के लिए उन्होंने भले तटस्थ भाव अपना लिया हो परन्तु उनके अन्दर का पत्रकार हमेशा जीवित रहा । जनसंघ , जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्होंने समाज और संगठन के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से किया परंतु इस दौरान भी पूरे समय पत्रकारिता से जुड़े रहकर लोकतंत्र के सजग प्रहरी की भूमिका के साथ भी उन्होंने पूरा न्याय किया । एक सफल राजनेता को उन्होंने एक सजग पत्रकार के ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया । इसका सबूत पाक्षिक पत्रिका नवलोक भारत के अंतिम पृष्ठ पर “ विचार अनुभूति ” शीर्षक स्थायी स्तम्भ के अंतर्गत नियमित प्रकाशित होने वाले उन आलेखों से मिलता है जिनमें श्री सारंग ने अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की तीखी आलोचना से कभी परहेज नहीं किया । इस पत्रकार राजनेता की पैनी कलम “ न दवाब न भेदभाव ” की नीति पर अनवरत चलती रही । ‘ अपने और पराए ' का तत्व कभी भी लेखनी पर हावी नहीं हो पाया । उनके लेखन में “ सबसे पहले राष्ट्रहित और सबसे ऊपर राष्ट्रहित ” के तत्व की प्रधानता रही । वे इन तमाम वर्षों में विशुद्ध रूप से एक राष्ट्रवादी पत्रकार के रूप में हमारे सामने आए हैं ।
जब उन्होंने भोपाल से पाक्षिक नवलोक भारत का प्रकाशन प्रारंभ किया था तब पत्रिका का ध्येय वाक्य ही यही था “ पत्रकारिता राष्ट्र के लिए , समर्पण सिद्धांत के लिए । ” विचार अनुभूति में प्रकाशित उनके सारे आलेख इस ध्येय वाक्य की कसौटी पर खरे उतरते हैं । इस व्यावसायिक युग में भी सारंग जी के लिए पत्रकारिता एक मिशन है । वे जब लिखने के लिए बैठते हैं तब वे केवल पत्रकार होते हैं , एक ऐसा निर्भीक पत्रकार , जो राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित होकर लिखता है । उस समय सारंग जी के अन्दर बैठा पत्रकार न तो भाजपा का वरिष्ठ नेता होता है और न ही किसी एक विचारधारा का पोषक । लिखते वक्त उनके समक्ष राष्ट्र और समाज का हित ही सर्वोपरि होता है । सारंगजी बेलाग लिखते हैं , बेबाक लिखते हैं , साफगोई के साथ लिखते हैं और बेपरवाह होकर लिखते हैं । लिखते वक्त वे यह चिंता नहीं करते कि उनकी साफगोई और बेबाक लेखन से उनके निजी हित भी प्रभावित हो सकते हैं ।
स्पष्ट लेखन के बावजूद उनकी भाषा में कहीं हल्के प्रहार नहीं होते । मंजी हुई भाषा और नपे तुले शब्दों में वे अपनी बात इस अंदाज में कहते हैं कि दिल की गहराईयों तक उतर जाती है । वे अपने दल की खामियों पर भी वैसा ही तीक्ष्ण प्रहार करते हैं जैसा कि कांग्रेस , साम्यवादी या अन्य दलों पर राष्ट्र की सुरक्षा में लापरवाही , समाज में फैली कुरीतियों और व्यवस्था के दोषों पर उनकी कलम कई बार आग उगलती दिखती है । व्यवस्था की खामियों के लिए जिम्मेदार लोगों पर वे तीखे प्रहार करते हैं । सार्वजनिक जीवन में शुचिता के पक्षधर सारंगजी आजकल के सुविधाभोगी नेताओं की आडंबरपूर्ण जीवन शैली को भी निशाना बनाने से नहीं चूकते । उनके लेखन में उनके गहन अध्ययन मनन और चिंतन की झलक मिलती है । वे ऐतिहासिक संदर्भों में वर्तमान घटनाओं की व्याख्या करते हैं । अकाट्य तर्कों के साथ प्रामाणिक लेखन ही उनकी असली पहिचान है ।
सिद्धांतों पर अडिग रहने का उनका चिरपरिचित स्वभाव लेखन में कई बार उन्हें कठोर भी बना देता है । वे आक्रामक भी हो उठते हैं परन्तु कहीं भी उसमें कटुता दिखाई नहीं देती । यह इस बात का परिचायक है कि बेलाग लेखन करने वाला यह पत्रकार राजनेता अन्दर से कितना संवेदनशील है । सक्रिय राजनीति में पदार्पण के पूर्व श्री सारंग ने प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्रों जागरण और नवभारत के संपादकीय विभाग में अपनी सेवाएं प्रदान की थीं । राजनीति में व्यस्तता के बाद भी पत्रकारिता में उनकी रुचि बनी रही । भाजपा कार्यालय से निकलने वाली चरैवति ( हिन्दी ) , अयाज ( उर्दू ) और मूवआन (अंग्रेजी ) पत्रिकाओं के सफल और नियमित प्रकाशन के सूत्रधार श्री सारंग ही थे । श्री सारंग की मौलिक सूझबूझ और परामर्श से इन पत्रिकाओं का रूप निखरा । पत्रिकाओं का हर अंक संग्रहणीय होता था । श्री सारंग हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि उक्त तीनों पत्रिकाओं में भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के विचारों के साथ ही देश के प्रमुख विचारकों , चितंकों , मनीषियों के आलेख भी प्रमुखता से प्रकाशित किए जाएं । कालांतर में अयाज एवं मूवआन पत्रिकाओं का प्रकाशन अवरुद्ध हो गया । चरैवति प्रदेश भाजपा कार्यालय दीनदयाल परिसर से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है । समाचार पत्रों को लोकतंत्र का सजग प्रहरी मानने वाले श्री सारंग ने चरैवेति प्रकाशन के स्थानांतरित होने के बाद नवलोक भारत का प्रकाशन प्रारंभ करने का निश्चय किया । दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी श्री सारंग ने शीघ्र ही नवलोक भारत को हिन्दी भाषी क्षेत्रों की लोकप्रिय पत्रिका के रूप में राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलाने में सफलता पाई । श्री सारंग के अथक प्रयासों का ही सुफल है कि ' नवलोक भारत ' आज संपूर्ण रंगीन पत्रिका के रूप में प्रकाशित हो रही है जिसका विशाल पाठक परिवार है तथा जिसमें विख्यात लेखकों , विचारकों की उत्कृष्ट रचनाओं का समावेश होता है । ' नवलोक भारत ' की मुख्य विशेषता यह है कि पत्रिका में सामग्री चयन में कोई समझौता नहीं किया जाता । व्यावसायिकता के इस युग में भी पत्रिका अपने स्थापित मानदण्डों से कभी विचलित नहीं हुई । कभी कभी ऐसा नियमित प्रतीत होता है कि सारंगजी मूलतः एक पत्रकार ही हैं । खूब पढ़ते हैं , खूब लिखते हैं , लिखते हैं । उनका चैम्बर एक व्यस्त राजनेता का कक्ष नहीं बल्कि एक जीनियस का ' स्टडी रूम ' या लाइब्रेरी रूप प्रतीत होता है । श्री सारंग के कक्ष की कई आलमारियों में आपको विश्व के प्रसिद्ध विद्वानों के पठनीय ग्रंथ करीने से रखे हुए मिल जाएंगे । उनकी लायब्रेरी में किताबों की संख्या में इजाफा एक नियमित प्रक्रिया है । सुबह उठकर देशभर के प्रमुख अखबार पढ़ने का उन्हें पुराना नशा है । सारी व्यस्तताओं और यहां तक कि रोगावस्था में भी वे अखबार पढ़े बिना नहीं रह सकते । कहीं किसी हादसे की खबर पढ़कर उनके इस संवदेनशील पत्रकार के चेहरे पर वेदना की लकीरें खिंच जाती हैं तो आंतरिक सुरक्षा में सरकार की लापरवाही के समाचार पर वे उद्विग्र हो उठते हैं । कमजोर तबके के लोगों पर अत्याचार की खबरें पढ़ते ही वे स्वयं उसके निराकरण की पहल करते हैं । वे केवल आलोचना नहीं करते बल्कि समस्या का समाधान भी सुझाते हैं । वे सनसनीखेज पत्रकारिता के ऊपर उद्देश्यपूर्ण पत्रकारिता को तरजीह देते हैं । वे कभी नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रेरित होकर नहीं लिखते । दुष्यंत कुमार का यह शेर इस राजनेता पत्रकार के लेखन पर खरा उतरता है
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ॥
अंत में , मैं यही कहना चाहूंगा कि सारंगजी मूलतः एक पत्रकार ही हैं राजनेता तो वे बाद में बने , राजनीति में उनकी सक्रियता कम ज्यादा भले होती रही हो परंतु उद्देश्यपूर्ण पत्रकारिता के पथ पर वे हमेशा आगे बढ़ते रहे । ईश्वर से प्रार्थना है कि इस पत्रकार राजनेता को दीर्घायु प्रदान कने और वे स्वस्थ रहकर अपनी अशक्त लेखनी के जरिए देश , समाज और राजनीति की ' सूरत ' बदलने के मकसद में कामयाब होते रहें ।
( लेखक पत्रकार हैं )