राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत और बंगाल के नवयुग का जनक कहा जाता हैं. उन्होंने पारम्परिक हिन्दू परम्पराओं को तोड़ते हुए महिलाओं और समाज के हितों में कई सामाजिक कार्य किए. हालांकि भारत के इतिहास में उनकी पहचान देश में सती प्रथा के विरोध करने वाले प्रथम व्यक्ति के रूप दर्ज हैं. लेकिन इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे कार्य हैं जिनके कारण राजा राम मोहन राय को आज भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हैं. राममोहन ना केवल महान शिक्षा विद थे, बल्कि एक विचारक और प्रवर्तक भी थे. वो कलकत्ता के एकेश्वरवादी समाज के संस्थापकों में से भी एक थे. उस समय जब भारतीय संस्कृति और भाषा को ही सम्मान दिया जाता था, तब राम मोहन राय इंग्लिश, विज्ञान, वेस्टर्न मेडिसिन और टेक्नोलॉजी जैसे नवीन विषयों के अध्ययन के पक्षधर बने I राम मोहन का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हूगली जिले के में राधानगर गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम रामकंतो रॉय और माता का नाम तैरिनी था. राम मोहन का परिवार वैष्णव थाी 1830 में राजा राम मोहन राय अपनी पेंशन और भत्ते के लिए मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत बनकर यूनाइटेड किंगडम गए I
27 सितम्बर 1833 को ब्रिस्टल के पास स्टाप्लेटोन में मेनिंजाईटिस के कारण उनका देहांत हो गया I