About Shri Chitragupt Ji
मध्य प्रदेश में कायस्थ समाज के आराध्य देव भगवान श्री चित्रगुप्त जी का गंगा सप्तमी को प्रकटोत्सव मनाया जाता है। कुछ अन्य प्रदेशों में भगवान श्री चित्रगुप्त जी का वैशाख शुक्ल सप्तमी को प्रकटोत्सव मनाया जाता है। और कई जगह यमद्वितीया पर अवतरण दिवस मनाया जाता है और भगवान श्री चित्रगुप्त पूजा को कुछ प्रदेशों में ‘कलम -दवात पूजा’ भी कहा जाता है।
इस दिन चित्रगुप्त मंदिर में उनका पंचामृत स्नान, श्रृंगार, हवन, आरती तथा कलम-दवात की पूजा होती है। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की कृपा पाने के लिए निम्न मंत्र का जाप करना लाभदायी होगा।
श्री चित्रगुप्त जी की प्रार्थना के लिए यह मंत्र पढ़ें...
श्री चित्रगुप्त की प्रार्थना मंत्र -
मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
इसके साथ ही भगवान श्री चित्रगुप्त जी के इस मंत्र का जाप अवश्य करें।
गंगा सप्तमी के दिन 'ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः' का 108 मंत्र का जाप करना लाभदायी रहता है।
धर्मराज श्री चित्रगुप्त पर ऋग्वेद व यजुर्वेद में भी कई ऋचाएं हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का पूजन यम द्वितीया के दिन किया जाता हैं। इस दिन कायस्थ अपने घरों में आराध्यादेव भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। और इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते। ‘गरुड़-पुराण’, ‘स्कंद-पुराण’, ‘मत्स्य-पुराण’, ‘भविष्य-पुराण’, ‘पद्म-पुराण’, ‘कठोपनिषद्’, ‘याज्ञवल्क्य स्मृति’ व ‘नारद समृति’ के साथ ही 12 प्राच्य-अभिलेखों में उल्लिखित श्री चित्रगुप्त की ऐतिहासिक कथा इस प्रकार है- कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब परमपिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ और उन्हें जीवों को मृत्यु उपरांत सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ इस हेतु यमराज ने जब एक योग्य न्यायकर्ता जो जीवों के कर्मानुसार न्याय कर सके ऐसे देव की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद ब्रह्मा जी ने अपने सामने एक पुरूष उत्पन्न पाया जिसके के हाथों में कलम, दवात, करवाल और पुस्तिका थी । इस देव पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और चित्रगुप्त के नाम का प्रश्न है तो स्पष्ट होता है कि जो हर मानव के चित्त (मन) में गुप्त रूप से विराजमान हैं, वही चित्रगुप्त हैं। और यह भी मानना कि इनका रूप ब्रह्मा जी के चित्त में गुप्त था इसलिए इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों के पाप पुण्य के हिसाब से न्याय करने का कार्य प्राप्त हुआ। इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की विशेष पूजा का विधान है।