महान गीतकार व कवि गोपाल दास 'नीरज' जी की पुण्यथिति पर उन्हें शत शत नमन...
वेद आशीष श्रीवास्तव - 19/07/2024
कायस्थ समाज वेब पोर्टल पर आज हम बात करेंगे कायस्थ समाज के एक ऐसे गीतकार के बारे में जिसने 94 साल हिन्दुस्थान पर राज किया और हमारे समाज को गौरवान्वित किया l जो मुशायरों और कवि सम्मेलनों के मंच पर यहां उर्दू के बड़े-बड़े सितारे अपना कलाम पड़ते, वही हिंदी के गीतों से मंच लूट लेने वाला यह गीतकार जिसके पहले ही गीत ने इतिहास रच दिया...
जी हाँ हम बात कर रहे है ऐसे महान कवि की जिसका जन्म 4 जनवरी सन 1925 को उत्तर प्रदेश जिला इटावा, ब्लाक महेवा के निकट पुरावली गाँव के कायस्थ परिवार में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के घर हुआ। घरवालों ने नाम रखा गोपालदास जिन्हे दुनिया आज राष्ट्र कवि नीरज के नाम से जानती है l
इससे पहले यह अपनी जीवन यात्रा शुरू करते मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। इन्हें बचपन में कुछ ऐसे अनुभव मिले जिन्होंने बहुत कुछ सिखाया l परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी इसलिए यह यमुना नदी में अक्सर गोते लगाते ताकि ये सिक्के बटोर सके जो श्रद्धालु नदी में फेंकते थे l इस के बाद भी नीरज जी ने एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० उत्तीर्ण कर बता दिया कि
लाख करे पतझर कोशिश पर,
उपवन नहीं मरा करता है।
नफरत गले लगाने वालो.
सब पर धूल उड़ाने वालो!
कुछ मुखड़ों की नाराजी से.
दर्पण नहीं मरा करता है।
नीरज जी ने बचपन से ही काव्य की तरफ रुख कर लिया था l समय का पहिया घूम रहा था घरवालों ने इनकी शादी सावित्री देवी सक्सेना से करा दी l तब इनके रिश्तेदारों ने इन्हें माली रूप से सहायता देना बंद कर दिया और यह कह दिया अब अपने बलबूते पर जो करना चाहो करो l रोजी-रोटी चलने के लिए नीरज जी ने कचहरी में कुछ समय और बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया l उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। यहाँ तक कि नीरज जी ने बीड़ी और सिगरेट भी बेचीं l बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाई, रिक्शा चलाया और दीवारों पर फिल्म के इश्तेहार भी लिखे l
दीवारों पर इश्तेहार लिखते वक्त उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन गीतकार के रूप में नीरज साहब का नाम भी इन्ही इश्तेहारों में लिखा जाएगा l
अब यहाँ हम थोड़ा सा पीछे आकर एक ऐसी दास्तान का जिग्र करेंगे जिसने गोपालदास सक्सेना को गोपालदास नीरज बना दिया l किस्सा कुछ यूँ है कि नीरज जी एक लड़की से प्यार करते थे और वो लड़की एक संपन्न परिवार से थी l इसलिए उससे शादी नहीं कर पाए l तब उस 23 साल के नीरज ने एक गीत लिखा जो 23 हज़ार सालों तक गाया जायेगा वो गीत है-
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
जिससे मोहब्बत थी अब उसकी डोली उठने वाली थी नीरज जी सामने के मकान से अपने दोस्त की छत से सुबह के 6:00 बजे विदाई देखत हुए नीरज जी ने लिखा
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
नीरज जी ने अपने टूटे दिल की दास्तान को कविता और गीतों में वयां किया l इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया और वहां सरकारी पब्लिसिटी डिवीजन में बतौर टाइपिस्ट काम करने लगे l पर नीरज साहब का मन सरकारी नौकरी में लग नहीं रहा था l तो नीरज साहब दिल्ली से मेरठ चले आये और मेरठ कॉलेज में हिंदी के अध्यापक बन गए l लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि एक दिन कॉलेज प्रशासन ने नीरज जी को बुलाकर खरी-खोटी सुना दी, यह कह दिया आप तो क्लास में पढ़ाते नहीं है आपके तो बस इश्क के चर्चे होते है l यह बात नीरज साहब को बड़ी बुरी लगी और उन्हें बहुत गुस्सा आया उन्होंने उसी वक्त अपना इस्तीफा कॉलेज प्रशासन को दे दिया और वहां से चले आये और इसके बाद उन्होंने रुख किया अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज की तरफ यहां पर यह हिंदी विभाग के प्रोफेसर चुन लिए गए l अब नीरज साहब ने ठान लिया था कि अलीगढ़ शहर को ही अपना ठिकाना बनाना है l
पर समय ने करबट बदली कवि सम्मेलनों में नीरज जी की लोकप्रियता परमान चढ़ने लगी l तभी फिल्म प्रड्यूसर आर चंद्रा जो एक फिल्म को बतौर डारेक्टर बनाना चाहते थे l यह फिल्म नीरज जी की कविता ''कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे'' से प्रेरित थी फिल्म का नाम था ''नई उम्र की पहली फसल''
हालांकि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास काम नहीं किया पर इसी बीच नीरज साहब पर नजर पड़ी एवरग्रीन सुपरस्टार देवानंद साहब की और देवानंद साहब ने नीरज जी को मुंबई आने को कहा l नीरज जी ने अपने कॉलेज से 6 दिन की छुट्टी ली और मुंबई पहुंच गए l देवानंद साहब से यह इनकी पहली मुलाकात थी l देवानंद साहब ने अभी इन्हें साइन भी नहीं किया था पर हजार रुपए इनके हाथ में थमा दिए और इन्हें शांत क्रूज़ के पास की एक आलीशान होटल में ठहराया ( यह उस वक्त की बात है जब देवानंद साहब अपनी फिल्म प्रेम पुजारी के लिए एक खास सिचुएशन के लिए गाना खोज रहे थे) अगले दिन सुबह देव साहब इन्हें लेने खुद होटल पहुंच गए और इन्हें लेकर मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन के पास गए देव साहब ने बर्मन जी से कहा दादा यह नीरज है इन्हें गीत लिखने बुलाया है l बर्मन साहब ने देखा एक दुबला पतला जवान लड़का उनके सामने खड़ा हैl वर्मन साहब ने कहा कौन ?नीरज! बेटा तुम गाना लिखोगे..... उन्होंने एक चुनौती दी कहा जाओ एक गाना लिखकर लाओ एक गांव की लड़की विदेश गई है वहां उसने शराब पी ली हैl ना अब शराब लिखना है, ना नशा लिखना है, ना मदहोश लिखना है, ना बेहोश लिखना है, इस पर गाना लिखकर लाओ नीरज जी ने एक ही रात में गाना लिख डाला सुबह आकर एस डी वर्मन साहब को दे दिया वो गाना था - रंगीला रे तेरे रंग में रंग में रंग गाया है मेरा मन .. देव साहब गाना सुनकर बड़े खुश हुए और एच डी बर्मन साहब ने कहा मैंने जानबूझकर तुम्हें इतनी कठिन सिचुएशन दी थी पर तुम पास हो गए l फिर क्या था नीरज साहब ने फिल्म प्रेम पुजारी के लिए शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब..... और फूलों के रंग से.... गीत लिखे जिन्हें कोई भुला नहीं सकता l नीरज साहब के गीत मशहूर हो गए थे नीरज साहब की नज़दीकियां मशहूर संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन से बड़ी हालांकि शंकर जयकिशन में शंकर साहब से इनकी काफी बहस हुआ करती थी लेकिन वहसा-वहसी में काम बड़ा अच्छा हो जाता था l एक दिन नीरज साहब 3 पन्नों की कविता लेकर शंकर जयकिशन साहब के पास पहुंच गए और उस कविता ने कटते- छटते गाने की शक्ल ली और वह गाना था- लिखे जो खत तुझे जो तेरी याद में..... जो फिल्म कन्यादान में इस्तेमाल किया गया
यह वो दौर था जब साहिर लुधियानवी, हसरत जयपुरी जैसे फनकार उर्दू के एक से एक गीत लिख रहे थे वही हिंदी के गीतकार शैलेंद्र के निधन के बाद देवानंद साहब चाह रहे थे कि कोई ऐसा आए जो सरल हिंदी में बड़े अच्छे गाने लिख सके l सबको इस उम्मीद की किरण नीरज साहब के काव्य में दिखी l जिस दौर में कुछ गाने आमीरी पर बनते थे, तो कुछ गरीबी पर, कुछ इश्क पर, तो कुछ बेवफाई पर, ऐसे माहौल में राजकुमार साहब अपनी फिल्म मेरा नाम जोकर में एक ऐसा गाना रखना चाहते थे जो हर आम इंसान से जुड़ा हुआ हो राजकुमार साहब ने नीरज जी से इस गाने को लिखने को कहा राज साहब से गाने की सिचुएशन सुनकर नीरज जी जब थियटर से निकल रहे थे तब उनका पैर लाइट से टकरा गाया और वो लड़खड़ा गए और उन्हें वो बात याद आ गयी जब वो रिक्शा चलते वक्त किसी से टकरा गए थे नीरज जी लौटे और वह दो लाइन जो उनको लड़खड़ाते हुए याद आई थी वो शंकर जयकिशन जी को सुनाई शंकर जयकिशन जी को लगा यह गाना फोम लेस होगा l यह तो सीधे-सीधे बात है इस पर धुन बनाना मुश्किल होगा तब खुद नीरज जी ने एक धुन सुनाई और गाना गाकर बताया यह धुन सुनकर शंकर जयकिशन जी को भरोसा हो गया कि इस गाने की धुन बन सकती है l गाना कंपोज किया और हिन्दुस्थान को एक ऐसा मुहावरा दे दिया जो हर आम आदमी का गीत बन गया आज भी लोग इस गाने को सड़क पर चलते हुए गुनगुनाते हैं- ऐ भाई जरा देख के चलो आगे भी नहीं पीछे भी ऊपर भी नहीं नीचे भी.....दाएं भी नहीं बाएं भी ....
नीरज जी ने 70 के दौर में एक से एक गाने दिए यह वो दौर था जब मुंबई जान गई थी कि, उर्दू अगर साहिल लुधियानवी दे सकती है, तो हिंदी ने भी गोपाल दास नीरज दिया है l अभी नीरज जी को फिल्म नगरी में 5 साल ही हुए थे और यहाँ नए ज़माने के ऊलजलूल गाने बनने लगे फिर क्या था नीरज जी का फ़िल्मी दुनिया से भी जी उचट गया और वे मुंबई को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये और फिर से शिक्षक का रूप धारण कर लिया l मुझे लगता है शायद तब ही नीरज जी ने लिखा होगा -
“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”
हालांकि नीरज जी की रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रमुख्यता से छपती रही और कवि सम्मेलनों में इनका एक अलग ही मुकाम बना गया l मध्यप्रदेश के शहर इंदौर में प्रति वर्ष होने वाले अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मलेन में लगातार 55 वर्षों तक नीरज जी काव्य पाठ किया l
नीरज जी ऐसे पहले शख्स रहे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया l सन 1991 में पद्मश्री और सन 2007 में पद्म भूषण से, सन 1994 में उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान ने यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया l नीरज जी को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था l यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार भी मिला।
अगर अपने नीरज जी को कवि सम्मेलनों में सुना होगा तो वो अक्सर कहते थे कि मुझे यमदूत लेने आया था मैंने उसे एक गीत सुना दिया और वो चला गया l कवि यमदूत से कह रहा है क्या -
ऐसी क्या बात है चलता हूँ अभी चलता हूँ,
गीत एक और जरा झूम के गा लूँ तो चलूँ
ये कुआँ ताल, ये पनघट ये त्रिवेणी संगम,
ये भुवन भूमि अयोध्या, ये विकल वृंदावन,
क्या पता स्वर्ग में फिर इनका दरस हो के न हो,
धुल धरती की जरा माथे लगा लूँ तो चलूँ
पर 19 जुलाई 2018 को पता नहीं कैसा दूत आया जो उनका गीत समझ नहीं सका और उस दिन नीरज जी इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए l सदियों तक अमर कवि गोपाल दास नीरज की कविताएं उन्हें जीवित रखेंगीl गोपाल दास नीरज एक नाम जो भारतीय साहित्य और फ़िल्मी गीतों के इतिहास में सदा अमर रहेगा l
वेद आशीष श्रीवास्तव
निर्माता
कायस्थ समाज वेब पोर्टल
अधिष्ठाता
सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था
सार्वदेशिक कायस्थ युवा प्रतिनिधि संस्था की ओर से सादर श्रद्धांजलि....
आप अपने श्रद्धा सुमन कमेंट बॉक्स में प्रेषित कर सकते है l
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