मध्यप्रदेश में भाजपा के विस्तार के मूल में हैं श्री कैलाश ना . सारंग - रामभुवन सिंह कुशवाह
भारतीय जनसंघ के वे प्रारम्भिक दिन कैसे भुलाये जा सकते हैं , जब वह शैशवकाल में ही था । उस समय की तुलना कुछ कुछ द्वापर में भगवान श्री कृष्ण के साथ की जा सकती है । कृष्ण को समाप्त करने के लिए उसके मामा कंस ने क्या - क्या नहीं किया ? उन्हें मरवाने के लिए कभी पूतना तो कभी बकासुर तो कभी वृत्तासुर को भेजा क्योंकि उसे बताया गया था कि यह बालक उसकी मौत का कारण बनेगा । श्री कृष्ण की तरह भारतीय जनसंघ का जन्म भी जेल में ही हुआ । एक सर्वथा झूठे आरोप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाकर उसके अधिकांश कार्यकर्ता जेल में डाल दिये गये । उस समय की लोकसभा एक तरह से कंन्स का राजदरबार ही बन गई थी । कोई एक व्यक्ति भी इस अन्याय के विरुद्ध बोलने को तैयार नहीं हुआ । तब पिता वासुदेव और माता देवकी ने मन ही मन संकल्प किया होगा कि अब कृष्ण को पैदा करना ही होगा । यद्यपि संघ राजनीति में नहीं जाना चाहता था वह राजनीति को कीचड़ समझता था तथापि राष्ट्र की ' चिति ’ को यही मंजूर था । देश की राजनीति को कंन्स के ' काकस ' से निकालकर आम लोगों के बीच लाने के लिए कृष्ण को लाना आवश्यक जो हो गया था । उस समय की मीडिया चाहे नारद हो या आकाशवाणी , आज जैसी ही थी उस ने कंस को यह अहसास करा ही दिया कि उसको मारने वाला पैदा हो गया है।
जेल से बचने के लिए वासुदेव और देवकी ने कंस को वादा किया था कि वे अपनी आठवीं संतान को उसे सौंप देंगे पर कंस कहां मानने वाला था ? वह तो सभी पुत्रों को मारने में अपनी खैरियत समझ रहा था । द्वापर की यह कथा सबको मालूम है । भारतीय जनसंघ की उत्पति का इतिहास भी किसी से छुपा नहीं है । कंस को मारने के लिए , लोकतंत्र की भाषा में उसका मानमर्दन करने के लिए श्री कृष्ण तो जेल में ही पैदा हो गये थे । बाद में वह आम लोगों , चरवाहों , किसानों मध्यमवर्गीय व्यवसायियों में सक्रिय होकर , गाय - बैलों को चराकर चरवाहों के संगठन कार्य में जुट गये । हमारे समय में ऐसा ही एक कृशकाय कृष्णवर्गीय युवक ग्राम डूमर जिला रायसेन में पैदा हुआ । प्रतिभा पारखी पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे ने उसे पहचान कर अपने पास बुला लिया । स्वामी रामकृष्ण ने जिस तरह ' नरेंद्र ' को पहचाना था । उसकी सुप्त प्रतिभा को उभार कर उसे ‘ विवेकानन्द ' बनाया । ठाकरेजी ने भी कैलाश को कैलाश ना . सारंग बना दिया । यूं तो ठाकरे जी ने मध्यप्रदेश में कई कृष्ण तैयार किये पर इस ' कैलाश ' पर उनका विशेष प्यार था । ठाकरे जी और संघ के विचारों से प्रभावित होकर कैलाश जी ने जातिबोध के संबोधन को भी त्याग दिया और अपने नाम के साथ ' सारंग ' जोड़ लिया ( हालांकि आजकल वे कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ), कुछ ही समय में वे भारतीय जनसंघ के मध्यप्रदेश में एक तरह से पर्याय बन गये ।
बाद में वे बच्चों को लेकर सोमवारा के एक छोटे से मकान में आकर रहने लगे। उसी मकान में ठाकरे जी रहते थे और उसी में जनसंघ का प्रादेशिक कार्यालय चलता था , जहां प्रदेश भर से संगठन मंत्री और कार्यकर्ता आते थे सारंग जी सभी कार्यकर्ताओं की चिंता भी किया करते थे । उस समय भारतीय जनसंघ अभाव और उपेक्षा की भयंकर चपेट में था किंतु सारंग जी ने अपने कार्यकर्ताओं और संगठनमंत्रिओं की जिस तन्यता से चिंता की उसका उदाहरण आजकल दुर्लभ ही है ।
मैं तो उस समय भिण्ड में ही था । सीधा सादा सरल विद्यार्थी , पूरा परिवार कांग्रेसी पर स्व. माणिक चन्द्र वाजपेयी ' मामा जी ' ने कब विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता बना दिया पता ही नहीं चला । विद्यार्थी जीवन राजनीति से अलिप्त था इसलिये यह भी नहीं समझ पा रहा था कि बड़े मेरे भाई क्यों विद्यार्थी परिषद में मुझे नहीं जाने देना चाहते । राजमाता विजया राजे सिंधिया जब जनसंघ में आई तो उनके साथ यशवंत सिंह कुशवाह जैसे कांग्रेसी भी चले आये । मेरे बड़े भाई से उनके निकटस्थ सम्बन्ध थे । तब पूरे परिवार को लगा कि मेरा जनसंघ में जाना उतना गलत नहीं था । उस समय भारतीय जनसंघ में भी दो धारायें थी एक कांग्रेस से आये राजमाता समर्थक लोगों की तो दूसरी भारतीय जनसंघ के संगठन मंत्री द्वारा जोड़े गये कार्यकर्ताओं की। मुझे यशवंत सिंह कुशवाह से ज्यादा नरेश जौहरी आकर्षित कर रहे थे । सच पूछिये तो नरेश जौहरी ने ही मुझे वकालत के व्यवसाय से छुड़वाकर जनसंघ का पूर्णकालिक कार्यकर्ता और एक छात्र से नेता बनाया।
यह संयोग ही था कि मिसरौद की एक बैठक में कैलाश ना.सारंग और मेरी एक साथ संगठन मंत्री की घोषणा हुई पर उनके और मेरे दर्जे में जमीन आसमान का अंतर था । मेरे लिए तब सचमुच में सारंगजी आसमान ही थे । मैं एक छोटे से जिला भिण्ड का संगठन मंत्री और सारंगजी एक बड़े राज्य के उभरते हुए संगठन के कार्यालय मंत्री । सारंग जी केवल कार्यालय मंत्री ही नहीं थे तो उस समय भारतीय जनसंघ के सब कुछ ही थे। मैं तो उनका एक समर्थक भक्त ही था।
सारंग जी के नेतृत्व में संचालित भारतीय जनसंघ का कार्यालय न केवल आदर्श कार्यालय था बल्कि समूचे संगठन की गतिविधियों का आधार स्तम्भ भी था । सुदूर जिलों से आये कार्यकर्ताओं की चिंता संगठन के व्यय की योजना और कांग्रेस के खिलाफ आंदोलनों की रूपरेखा वहीं से बनती थी । सर्वश्री ठाकरे जी , प्यारेलाल खण्डेलवाल , नानाजी ( नारायण प्रसाद गुप्ता ) मेघराज जी और न जाने कितने जी लोकतंत्र को पटरी पर लाने और देश में शुचिता की राजनीति संचालित करने के लिए पूर्ण तन्मयता से लगे रहते थे । तब सारंग जी मध्यप्रदेश में भारतीय जनसंघ के मुख्य केन्द्र बिन्दु थे । ठाकरे जी का असीम प्रेम , दिलखोल समर्थन और अपार विश्वास उनसे बहुत कुछ करवा लेता था । उस समय भारतीय जनसंघ का कार्यालय एक आदर्श कार्यालय था । उस समय के राजनीतिक प्रस्ताव , कार्यकर्ताओं से पत्र व्यवहार और कार्यालय का संचालन आज भी किसी पार्टी के लिए अनुकरणीय हो सकते हैं । मैदानी कार्यकर्ताओं के साथ सारंग जी के आत्मीय सम्बन्धों ने कई बड़े नेताओं को आकर्षित किया । तब आज जैसी मारा - मारी और एक दूसरे को नीचा दिखाने की स्थिति नहीं थी और यदि होती तो आज भाजपा की इतनी सुदृढ़ स्थिति ही न होती ।
सारंग जी अपने कार्यकर्ताओं और विशेष कर संगठनमंत्रियों पर कितना विश्वास करते थे इसके एक दो उदाहरण देने से ही समझा जा सकता है कि कार्यकर्ता कैसे बनते हैं और कार्य कैसे खड़ा होता है । उस समय संगठन मंत्रियों को प्रदेश कार्यालय से दौरा आदि के लिए कुछ मानदेय मिलता था । हम लोगों को प्रदेश कार्यालय से कुछ छपे फार्म मिलते थे जिसमें संगठन मंत्रियों को पूरे महीने का व्यय विवरण लिखना होता था । सारंग जी का अपने कार्यालय को निर्देश रहता था कि उस व्यय विवरण पर किसी भी प्रकार की नुक्ताचीनी न करें । गोविंद श्रीवास्तव शायद उस समय हिसाब के आखरी जोड़ पर चेक बनाकर भेज दिया करते थे । कभी कभी तो संगठन मंत्रियों के हिसाब का जोड़ ही गलत होता परंतु उस पर किसी ने आपत्ति नहीं की और चेक उतने का ही जारी होता था जितने कि हिसाब के जोड़ का उल्लेख होता था । हिसाब के लिए न रसीद की जरूरत , न प्रमाण की । हिसाब का विवरण भी नहीं देखा जाता था । मैं तो युवा था एक दो बार सिनेमा देखने और किसी उपन्यास खरीदने का उल्लेख भी हुआ तो भी किसी ने आपत्ति नहीं की और न कभी किसी अन्य से जिक्र किया गया । कहने को यह साधारण सी बात है पर इसके कारण विश्वास का भाव जाग्रत होता है । सारंग जी का यह व्यवहार कार्यकर्ताओं को कितनी प्रेरणा दे रहा था यह तो अब कल्पनातीत ही है ।
एक और प्रसंग , मैंने भिण्ड में जनसंघ का कार्य प्रारंभ किया उस समय जनसंघ और संघ का काम एक तरह से मिला जुला ही था । स्व . सुधर सिंह कुशवाह संगठन मंत्री बने और मुझे कार्यालय का दायित्व दिया गया । उस समय जनसंघ भिण्ड , मेहगांव , गोहद , रौन या लहार जैसे शहर या कस्बों की ही पार्टी हुआ करती थी । भिण्ड के प्रमुख कार्यकर्ता मामाजी के परम भक्त थे परंतु उनकी रुचि गांव में जनसंघ का काम पहुंचे उसमें कम ही थी । उसी समय राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जनसंघ में आना हुआ तो ग्रामीणों का रुझान भी बढ़ा । ठाकरे जी और प्यारेलाल जी के दौरे शुरू हुए । मैं भी कार्यालय का काम सम्हालते हुए दौरे करने लगा । संगठन के चुनाव हुए तो ग्रामीण कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ने से अध्यक्ष , महामंत्री और अन्य पदाधिकारी बदल गये । भिण्ड के स्थापित नेताओं को यह अच्छा नहीं लगा । वे मामाजी से हमारी शिकायत करने लगे । मामाजी एक दो माह में इंदौर से भिण्ड आते , उन सबकी बैठकें लेते , उनकी सुनते और उन्हें समझाते पर मुझसे कुछ नहीं कहते । पुराने कार्यकर्ताओं को लगता कि भोपाल में भले ही भारतीय जनसंघ की सरकार बनी हो भिण्ड में तो उनकी उपेक्षा हो रही है । मैं उनके आक्रमणों का प्रमुख शिकार होता , वे सब मिलकर भोपाल भी शिकायतें भिजवाते , पर उनका अधिक असर नहीं हो रहा था ।
एक बार इन्ही सब लोगों ने जिला महामंत्री स्व . शिवस्वरुप श्रीवास्तव के नेतृत्व में एक ' शिकायत मंडली ' भोपाल भिजवाई । सारंग जी कार्यस्थ हैं इसलिए कार्यस्थ कार्यकर्ता की अधिक सुनेंगे यह सोचकर शिवस्वरूप श्रीवास्तव को आगे किया गया । वे वकील भी थे । मामले को बेहतर ढंग से रख सकते थे । सभी सारंग जी के पास पहुंचे । तमाम मनगढंत आरोप लगाये गये । पहले तो सारंग जी ने उन्हें धैर्य से सुना पर जब असह्य हो गया तो उन्होंने फटकारना शुरू कर दिया । पर भिण्ड से गये हुए लोग इससे कहां संतुष्ट होने वाले थे । वे दूसरे दिन ठाकरे जी से मिले । ठाकरे जी ने उनका जो हाल किया वह कम से कम मेरे लिए तो अविस्मरणीय और प्रेरणादायक था । ठाकरे जी ने कहा कि वे तुरंत कार्यालय से चले जायें । उन्हें ऐसे कार्यकर्ताओं की कतई आवश्यकता नहीं जो संगठन मंत्री पर आरोप लगाते हों । ठाकरे जी ने कहा कि कोई आग से लाल तवे पर बैठकर भी रामभुवन सिंह पर आरोप लगा रहा हो तो भी वे यह मानने को तैयार नहीं है कि रामभुवन सिंह किसी प्रकार के दोष से ग्रसित हैं ।
प्रतिनिधि मंडल वापस भिण्ड लौट आया । उनमें से किसी एक ने मुझे पूरा हाल बताया । उसके बाद मुझे अपनी पार्टी और अपने नेताओं पर इतनी आस्था पैदा हुई जो आज भी कायम है । भारतीय जनसंघ हो या भारतीय जनता पार्टी आज इस स्थिति तक पहुंची है तो इसका कारण यही है कि यहां प्रारंभ से परस्पर प्रेम , विश्वास और पारिवारिक वातावरण के संस्कारों को अन्य दूसरी चीजों से ज्यादा महत्व दिया गया । भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी केवल भाषणों , नारों , आंदोलनों से आगे नहीं बढ़ी बल्कि ठाकरे जी जैसे असंख्य कार्यकर्ताओं के समर्पण और सारंग जी जैसे तमाम नेताओं के सदासयी व्यवहार से आगे बढ़ती रही है । भोपाल में आकर मेरा व्यक्तिगत नुकसान हुआ है तो यही है कि मैंने इस जनाधार और केडरबेस पार्टी के तमाम नेताओं और मंत्रियों को अत्यंत नजदीक से आकर देखना शुरू किया , तो अब मेरा आस्थाभाव चुकने लगा है । मैं अपने उस पुराने दिनों को याद करता हूं और चाहता हूं कि फिर वहीं लौट जाऊं , जहां की क ख ग ......... से काम शुरू किया था । पर अब न वह सामर्थ्य है और न अब वैसा वातावरण बचा है । तब साधन नहीं थे साधना थी , पैसा नहीं था कार्यकर्ताओं से मिलने और इन्हें जोड़े मनवाने की प्यास थी । तब पदों से लोग भागते थे अब पदों की ओर भागते हैं जबकि सब जानते है व्यक्ति के आदर का कारण पद नहीं हुआ करते । आज परिदृश्य बदला है जिसे कुछ लोग समय की मांग कह दिया करते हैं कुछ मजबूरी बताते हैं पर सत्य यह है कि यह सब भटकाव है । अपनों को छलने से कोई महान नहीं बनता । अपनों को अपनाने से भलें ही महान बना जा सकता हो सम आत्मिक सुख तो मिलना ही है । मैं अपने आदरणीय नेता कैलाश ना . सारंग के अमृत महोत्सव के अवसर पर उनका हार्दिक अभिनंदन करना चाहता हूं । वे दीर्घजीवी , स्वस्थ और प्रमाण चित्त रहें । वे हमारे जैसे असंख्य जनों के मार्गदर्शक और प्रकाश स्तम्भ हैं । इस अथाह मागर में कितने भी तूफान आयें , समय के थपेड़ों के साथ कितना भी भटकाव आये पर दूर टिमटिमाता प्रकाश स्तंभ हमारी दृष्टि से ओझल न ले यही प्रभु से प्रार्थना है।
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार