कैलाश ना . सारंग - एक मुकम्मल शख्सियत - राजीव श्रीवास्तव
अमृत जयंती वर्ष पर शत् शत् प्रणाम ? अभिनंदन !
जनाब कैलाश सारंग जैसी बहुमुखी शख्सियत को कौन नहीं जानता । यह नाम ऐसा है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है । मध्यप्रदेश की जनता तो सारंगजी से भली भांति परिचित है ही मगर साथ ही हिन्दुस्तान के तमाम प्रदेशों में बड़ी संख्या में इन्हें जानने और चाहने वाले भरे पड़े हैं ।
सामाजिक और राजनीतिक तौर पर प्रांतीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर कैलाश बाबू द्वारा जनहित में किये गये कार्यों की लम्बी फेहरिस्त है । मैंने इनका नाम , इनकी प्रसिद्धि वर्षों से सुन रखी थी । मेरे मिलने जुलने वालों में कई लोग ऐसे हैं जिनका सारंगजी से और उनके परिवार से निकट का संबंध रहा है । मुझे व्यक्तिगत रूप से श्री कैलाश सारंग से मिलने का सौभाग्य तकरीबन दो - ढाई साल पहले मिला था । अब तक उनके बारे में जो कुछ मैंने सुना था और जाना था , उससे कहीं ज्यादा मैं तब प्रभावित हुआ जब पहली बार में उनके घर पर उनसे रू - ब - रू हुआ । सादगी भरा व्यक्तित्व , धोती - कुर्ता पहने , चेहरे पर ओज , होठों पर मुस्कान , मीठी जुबान और गर्मजोशी का जज़्बा लिये एक ऐसा शख्स मेरे सामने था जिसे देखकर में क्या , कोई भी अभिभूत हो जाता । इस तरह का चुम्बकीय व्यक्तित्व कम ही देखने को मिलता है । मेरा मानना है कि सादगी में जो आकर्षण है वह बनाव - श्रृंगार में नहीं है ।
सारंग साहब के साथ मेरी यह पहली मुलाकात तय समय से काफी ज्यादा चली । मैंने यह सारंग साहब के साथ मेरी यह पहली मुलाकात तय समय से काफी ज्यादा चली । मैंने यह महसूस किया कि बातचीत के दरम्यान वो इतने सहज और मित्रवत् हो गये कि ऐसा लगा मानों हम एक दूसरे को वर्षों से जानते हैं । कैलाश जी का होमवर्क कितना दुरुस्त होता था इसका आभास मुझे तब हुआ जब उन्होंने मेरी लिखी दो महत्वपूर्ण पुस्तकों और उस पर मुझे राष्ट्रीय स्तर पर मिले पुरस्कारों का जिक्र किया । यह मेरे लिये एक सुखद आश्चर्य था । हर विषय और देश दुनिया के तमाम मसलों पर हमारी खूब बातें हुई । उन्हीं दिनों भोपाल में ' वर्ल्ड हेरिटेज वीक ' के लिये आयोजित विशेष कार्यक्रम के लिये मैंने पाकिस्तान के मशहूर सूफी गायक उस्ताद शफाकत अली खाँ का गायन अपने बैनर आर.एस. वीजनल पैनोरमा , नयी दिल्ली के अन्तर्गत करवाया था जिसकी तारीफ उन तक भी पहुंची थी और साथ ही उन्हें दिल्ली , मुंबई तथा दूसरे तमाम शहरों में आयोजित होने वाले मेरे कई मेगा इवेंट्स की भी खबर थी । इस संबंध में जब बातें हुई तो उन्होंने मुझे विशेष रूप से अपने उस प्रोजेक्ट की बात बतायी जिसके तहत वह भोपाल में एक वृहद संगीतमय कार्यक्रम करवाना चाह रहे थे । मैंने उन्हें आश्वस्त किया था कि जब भी उन्हें इस प्रकार के किसी भी आयोजन में मेरी आवश्यकता होगी , में उन्हें निराश नहीं करूंगा ।
हमारी इसी मुलाकात में उन्होंने अपने बेटे विश्वास सारंग का जिक्र किया । उस दिन वो शहर में नहीं थे लिहाजा वो उनसे मेरी मुलाकात नहीं करवा सके पर उन्होंने मुझसे यह जरूर कहा कि अपनी अगली भोपाल यात्रा में आप उनसे जरूर मिलें और कला , साहित्य , संगीत , सिनेमा , संस्कृति के अपने विस्तृत अनुभवों को विश्वास के साथ बांटें । अपनी विरासत को अगली पीढ़ी के हाथों सुपुर्द करके एक पिता , एक गुरु , मार्गदर्शक और संरक्षक किस हद तक संतोष का अनुभव करता है यह मैंने उस दिन कैलाश बाबू के चेहरे पर उभरे भावों को पढ़कर महसूस किया ।
मैं अपने आपको उन गिने - चुने लोगों में पाकर फक्र महसूस करता हूं जिनकी पारिवारिक निकटता देश के दो महान साहित्यकार परिवारों से रही है । कथाकार कमलेश्वर और हिन्दी के प्रथम गजलकार दुष्यंत कुमार एवं उनका परिवार मेरे लिये हमेशा अपने घर के ही सदस्यों सा रहा है । पिछले दिनों 27 सितम्बर को भोपाल में ही भारत सरकार द्वारा महान कवि दुष्यंत कुमार की स्मृति में विशेष डाक टिकिट जारी किया गया जिसका मुख्य प्रस्तावक होने का मुझे गौरव हासिल हुआ । मैं इस दिशा में पिछले तीन सालों से अनवरत लगा हुआ था जिसमें मुझे तमाम लोगों के साथ - साथ इन दोनों परिवारों का सहयोग एवं मार्गदर्शन मिलता रहा है । आज मैं इसलिये और भी ज्यादा खुश हूं कि दुष्यंत कुमार परिवार में ही बाबू कैलाश सारंग की बेटी उपासना का विवाह हुआ है । दुष्यंत जी के छोटे भाई श्री प्रेमनारायण त्यागी के बेटे अमित से उपासना की शादी हुई है । अब में स्वयं को भी सारंग परिवार का सदस्य कहलाने की एक और वजह पा गया हूं । इस पूरे कुनबे का सदस्य होने पर मैं गौरवान्वित हूं ।
मैं पुनः आदरणीय कैलाश सारंग जी को उनके अमृत जयंती वर्ष पर प्रणाम करता हूं , अभिनंदन करता हूं और ईश्वर से उनके स्वस्थ शतायु की प्रार्थना करता हूं ।
( लेखक वरिष्ठ लेखक , स्तम्भकार , सिनेमा एवं संगीत समीक्षक है । )