एक साथ हैं पार्टी की नींव और शिखर सारंग जी - ज्ञानेन्द्र नाथ बरतरिया
ये कोई बीस - बाइस वर्ष पहले की बात है । एक एम्बेसेडर कार , जो शक्ल से थर्ड हैंड या फोर्थ हैंड नजर आती थी , भोपाल में भारतीय जनता पार्टी की पहचान जैसी हैसियत रखती थी । यह एम्बेसेडर कार जहां नजर जाती थी , भारतीय जनता पार्टी का कोई कार्यक्रम आसपास ही चल रहा होता था ।
वह कार सचमुच बहुमुखी या सर्वतोमुखी प्रतिभा वाली थी । नेताओं और कार्यकर्ताओं को लाना ले जाना उसका नियमित काम था । झंडे बैनर ढोने हों तो भी वही कार उपलब्ध होती थी । और जरूरत पड़ने पर टेंट , कनात और दरियां तक उस कार में लद जाते थे । उसकी छत पर माइक स्पीकर तो ऐसे फिट होते थे कि दोनों को एक दूसरे की आदत हो चुकी थी । उस दौर में पुराने भोपाल का शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा , जो उस कार को ना पहचानता हो ।
आज की अधेड़ होती पीढ़ी के लिए बीस- बाइस वर्ष पहले का वह दौर लड़कपन का दौर था । मध्यप्रदेश की राजनीति भी लड़कपन से ही गुजर रही थी । हालांकि राजनीति उसी उम्र में अटक कर चिरयुवा हो गई , लेकिन पीढ़ी आगे बढ़ गई । बहरहाल उस दौर में , कम सके कम भोपाल में , भारतीय जनता पार्टी विद्यार्थी परिषद , युवा मोर्चा और हमीदिया कॉलेज और पॉलिटेक्निक के लड़के सब एक ही होते थे । जब ये लड़के कॉलेज में होते थे , छात्र होते थे , न्यू मार्केट में होते थे तो युवा मोर्चा बन जाता था और वही लड़के जब इमामी गेट या उससे आगे निकल जाते थे , उसी जत्थे को भारतीय जनता पार्टी कहा जाता था । भारतीय जनता पार्टी , विद्यार्थी परिषद और युवा मोर्चा में लोग और भी थे , लेकिन इन संगठनों में नई जान इसी लड़कपन ब्रिगेड ने डाली थी ।
उस फटी पुरानी एम्बेसेडर कार का इस लड़कपन ब्रिगेड से गहरा अपनापन था । हर कार्यक्रम उसी ब्रिगेड के होते थे और हुल्लड़बाजी को छोड़कर , आरे कार्यक्रमों में उस एम्बेसेडर कार की कोई ना कोई भूमिका जरूर रही होती थी । इसके अलावा इन दोनों में कई और बातें भी एक जैसी थीं । जैसे- दोनों सड़कछाप थे , उन दिनों कार में एयरकंडीशनर या पावर स्टीरिंग की बात कई लोग जानते भी नहीं थे और उसी तरह ये लड़कपन ब्रिगेड भी नहीं जानती थी कि एयरकंडीशनर होता क्या है , पावर क्या होती है और उसकी स्टीरिंग कैसे संभाली जानती है । सबसे अहम और सबसे गहरी साझी बात ये थी कि दोनों भारतीय जनता पार्टी की पहचान होते थे , उसके लिए पूरी तरह समर्पित थे ।
लड़कपन ब्रिगेड कॉलेजों में पढ़ भी रही थी और किशोर औत्सुक्यवश लड़के तमाम अजीबों गरीब विषयों में हाथ पैर चला कर देख लेते थे । इस ब्रिगेड के सदस्य एक लड़के की रूचि ज्योतिष में थी और एक दिन उसकी नजर इस एम्बेसेडर कार की नंबर प्लेट पर पड़ी। नंबर था -
ये तो विवादों का नंबर है- उस उदीयमान शौकिया अंक ज्योतिषी ने कहा ।
ये विवादों के केन्द्र का नंबर है- एक वरिष्ठ युवा नेता ने जवाब दिया ।
कैलाश सारंग का परिचय ये कार और ये लड़के थे । ये कार कैलाश सारंग की थी । बुजुर्ग सारंग युवा मोर्चा के पसंदीदा नेता होते थे । नेता ही नहीं , संरक्षक , अभिभावक , आदर्श- सभी कुछ । इस कार की तरह वह भी बहुमुखी या सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी थे । सारंग जी संगठन की बारीकियों पर नजर रखने और पार्टी के कार्यालयों का संचालन संभालने से लेकर टिकट बांटने , मीटिंग करने , जनसभाएं करने और पार्टी के लिए नीतियों के संकलन से लेकर वैचारिक प्रकाशनों की जिम्मेदारी संभालने तक के सारे काम कर लेते थे । कोई कार्यकर्ता नाराज हो तो सारंग जी और कोई कार्यकर्ता बहुत खुश हो , तो भी सारंग जी भारतीय जनता पार्टी के जिला और प्रदेश कार्यालय के सारे रास्ते सारंग जी के दरवाजे से ही होकर जाते थे ।
और यह भी सारंग जी की सर्वतोमुखी प्रतिभा का एक हिस्सा था कि विवादों के केन्द्र भी वही होते थे और इसकी वजह भी ठीक वही कार और वही लड़के थे । दरअसल हमेशा से विपक्ष में रहने की आदी हो चुकी भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ की पुरानी पीढ़ी शांत मुद्रा में आती जा रही थी । प्रवास और बैठकों की तुलना में विश्राम का अनुपात धीरे- धीरे बढ़ने लगा था । आक्रामकता थकती जा रही थी । वैचारिक कारणों से , या विशुद्ध शौक में ही सही , भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने वाली नई पीढ़ी इससे ठीक उलट थी । लेकिन पार्टी से जुड़ाव के लिए उसे कोई आधार चाहिए था । सारंग जी वह आधार बने । विवादास्पद विषयों से दूर भागना , भीरुता का पहला लक्षण होता है । सारंग जी सिर्फ धर्मभीरू थे । बेशक टिकट काटते भी वही थे । लेकिन अगर फैसला करने से सभी लोग हाथ खींच लेंगे , तो फैसले कौन करेगा । लिहाजा वह विवादों के केन्द्र थे, बुजुर्ग होकर भी युवा नेता थे और भारतीय जनता पार्टी की इमारत की नींव और शिखर एक साथ थे । पीढ़ियों के बदलाव का ये ऐसा अनूठा रास्ता था , जो टकराव की चढ़ाई चढ़ने के बजाए सहयोग की ढलान पर आगे बढ़ा था । कम्युनिस्ट होते , तो इसे क्रांति कहते । सारंग जी ने कभी कुछ नहीं कहा । तब भी नहीं , जब कभी कभार इसके लिए परोक्ष- अपरोक्ष टिप्पणियां हो जाती थीं । वह सिर्फ एक मौके पर बोलते थे । जब अपने कार्यकर्ता के पक्ष में , उसके बचाव में , उसके हित में बोलना होता था । अनुशासन के साथ चुप रहते हुए क्रांति कैसे की जाती है , यह सारंग जी जानते थे ।
सारंग जी को एक बार जरूर कहना होगा । अनुशासन और सदभाव के साए में भी तेजी से कार्यकर्ता आधार कैसे बढ़ाया जाता है- यह सीखने की जरूरत भारतीय जनता पार्टी को पूरे देश में है । यह सीख सारंग जी दे सकते हैं । एम्बेसेडर का जमाना अब जरूर लद चुका है । अब भारतीय जनता पार्टी पावर और स्टीयरिंग दोनों का अर्थ जानती है । लेकिन ये एम्बेसेडर और उसका रास्ता दिखाने वाली ये स्टीयरिंग हमेशा हमारे साथ रहे- यही कामना है ।
- ( लेखक दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं )