एक ऐसा व्यक्तित्व जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल ....
- भूपेन्द्र निगम
यह बात सत्य है कि किसी भी व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति , परिश्रम करने की क्षमता और कार्य के प्रति निष्ठा की भावना निहित हो तो वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है और दूसरों के लिए मार्गदर्शक , पथ प्रदर्शक व अनुकरणीय बन जाता है । कैलाश सारंग जी , में यह सभी गुण मौजूद हैं इसीलिए वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी माने जाते हैं । उनके व्यक्तित्व , दीर्घ अनुभव और बड़प्पन की तुलना किसी से नहीं की जा सकती । वे सबसे अलग व्यक्तित्व के धनी हैं ।
वर्ष 1977 में जब मैं दैनिक भास्कर भोपाल में कार्यरत था तब आदरणीय सारंग जी से मेरा परिचय हुआ था । पत्रकार होने के नाते कई बार कई विषयों पर उनसे चर्चा करने के लिए मुझे उनसे मिलना पड़ता था । उस समय वे सोमवारा स्थित पार्टी के कार्यालय में बैठा करते थे और वहीं एक कमरे में उनका निवास भी था । उस वक्त भारतीय जनता पार्टी का जन्म नहीं हुआ था प्रदेश में जनता पार्टी की मिली जुली सरकार थी । उस दौर में यह बात बहुत साफ थी कि जनसंघ को मध्य प्रदेश में पूरी ताकत से खड़ा करने और उसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में पार्टी के करीब आधा दर्जन नेताओं के नाम हर जुबान पर होते थे उनमें सर्वश्री कुशाभाऊ ठाकरे , सुंदरलाल पटवा , कैलाश जोशी , प्यारेलाल खंडेलवाल , नारायण प्रसाद गुप्ता , कैलाश सारंग और बाबूलाल गौर के नाम शामिल थे । इनमें संगठनात्मक रूप से पार्टी को मजबूती देने में सर्वश्री कुशाभाऊ ठाकरे , सुंदरलाल पटवा कैलाश जोशी , प्यारेलाल खंडेलवाल , नारायण प्रसाद गुप्ता और कैलाश सारंग प्रमुख तौर पर आधार स्तंभों में माने जाते थे ।
पार्टी कार्यालय का प्रभार महामंत्री के रूप में लंबे समय तक सारंगजी के पास रहा और इस दौरान उन्होंने प्रदेश के अनेक जिलों , कस्बों और गांवों तक सतत दौरे किए थे । जहां तक मुझे याद है इन दौरों में कार्यकर्ताओं से वे जीवंत संपर्क बनाए रखते थे यही वजह है कि पार्टी के . अधिकांश कार्यकर्ताओं को वे नाम लेकर बुलाते थे और सैकड़ों लोगों के नाम उनकी जुबान पर तब भी थे और आज भी उसी तरह कायम हैं जैसे वे उनके बीच बरसों रहे हों या उनके परिवार के सदस्य हों । उनकी इस विशेषता को पार्टी के कई वरिष्ठ नेता आज भी मानते हैं । कार्यकर्ता के प्रति अपार सम्मान , विनम्र व्यवहार और उनकी भावना को जानकर उसके अनुरूप कार्य करने की अद्भुत कला सारंग जी में शुरू से रही है । यही कारण है कि चाहे राजनीति हो या अन्य कोई क्षेत्र , जब कोई व्यक्ति अधिक लोकप्रिय हो जाता है और ऊंचाईयों को छूने लगता है तो कुछ लोग उसकी सफलता के विरोधियों के रूप में भी पैदा हो जाते हैं । राजनीति का क्षेत्र हो या समाज का कोई अन्य क्षेत्र वहां विरोधियों का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । ऐसा ही सारंग जी के साथ उनके कार्यक्षेत्र में भी हुआ उन पर आर्थिक अनियमितता के आरोप भी लगे पर उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से कोई बयानबाजी नहीं की और न ही कभी प्रेस के समक्ष कोई बात की । वे कभी विचलित नहीं हुए । पत्रकार होने के नाते कई बार मैंने उन्हें कुरेदने की कोशिश की लेकिन सार्वजनिक तौर पर वे कुछ भी कहने से बचते रहे । वे अपनी व्यथा जरूर सुनाते रहे लेकिन व्यक्तिगत रूप से।वैसे भी मैंने उनके मुख से कभी किसी की कड़ी आलोचना नहीं सुनी वे सतत अपने एवं पार्टी के कार्य में लगे रहे । उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं अटल जी , आडवाणी जी , राजमाता जी और ठाकरे जी का आशीर्वाद और अपार स्नेह भी मिला जिसकी वजह से वे वरिष्ठ नेताओं की भावना के अनुरूप संगठन के कामकाज को गति देते रहे । फिर सार्वजनिक राज में एक दौर ऐसा भी आया कि उनके विरोधियों ने राजमाता जी एवं ठाकरे जी के निधन के बाद अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया ऐसी स्थिति में भी सारंग जी ने विरोधियों को मात देने के बारे में कभी नहीं सोचा बल्कि अपने भाग्य को दोष दिया कि शायद मेरा प्रतिकूल समय होने के कारण मुझे इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है ।
उन्होंने हिम्मत नहीं हारी इस दौर में उन्होंने अपने को राजनीति से कुछ उदासीन कर लिया और तटस्थ रहे । वे जानते थे कि सच्चाई की डगर एक दिन फिर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ेगी और वह अवसर भी लंबे समय बाद आ गया । ये उनके धैर्य का ही नतीजा था । यह सारंग जी का बड़प्पन ही था कि उन्होंने अपने विरोधियों को शिकस्त देने के बारे में न तो कभी सोचा और ना ही ऐसा कोई प्रयास किया ।
मुझे 1981 से 1984 तक पं . दीनदयाल विचार प्रकाशन की पत्रिका ' चरैवेति ' में कार्य करने का अवसर भी मिला तब में उनके काफी नजदीक रहा और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ उनकी राजनैतिक यात्राओं को देखने समझने का अवसर भी मिला । मैंने देखा वे परिवार की चिंता करने के बदले पार्टी के कार्य को अधिक महत्व देते थे सुबह से लेकर देर रात तक पार्टी कार्यालय में बैठना और लिखना - पढ़ना पार्टी कार्यकर्ताओं को पत्र लिखकर संपर्क बनाए रखना उनकी दिनचर्या में शामिल रहा और जो अभी है । मुझे भी उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला । हमेशा अपने छोटे भाई की तरह उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा है । वे मेरे लिए मार्गदर्शक है । उनके दीर्घ राजनैतिक अनुभव के कारण उन्हें ' किंग मेकर ' की संज्ञा भी मिली । प्रदेश में भाजपा की पहली सरकार बनने पर उन्हें इसी रूप में जाना जाता था । मैंने उन्हें जिन रूपों में देखा उनमें एक अच्छे राजनेता , कुशल संगठक , प्रखर वक्ता बेहतरीन शायर और कवि , समाजसेवी एक सफल लेखक व पत्रकार के गुण उनमें मौजूद हैं जिसकी वजह से वे बहुमु प्रतिभा के धनी माने जाते हैं ।
आदरणीय सारंग जी के बारे में मुझ अदने से व्यक्ति द्वारा कुछ लिखना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा कार्य है । उनके जीवन के पिचहत्तर बसंत पूर्ण करने पर उन्हें शुभकामना है , वे दीर्घायु हो और हम सबको सदैव उनका मार्गदर्शन मिलता रहे यही हमारी कामना है और अंत में इन दो पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं -
" सारंग जी पर बहुत मुश्किल है , शब्द वाणी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पर है , पानी लिखना ”
( लेखक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं )