सादगी , शिष्टाचार और सौजन्यता की प्रतिमूर्ति कैलाश सारंग - शिवप्रसाद मुफलिस
श्री कैलाश सारंग को मैं लगभग 45 वर्षो से जानता हूँ । मैं पहली बार उनके सम्पर्क में आया जब मैं स्व . कुशाभाऊ ठाकरे जी से मिलने पीरगेट स्थित पार्टी कार्यालय गया । सारंग जी पार्टी कार्यालय में ही एक कमरे में निवास करते थे । मै कास्मोपालिटन इन्स्टीटयूट आफ पब्लिक अफेयर्स ' सीपा ' नामक संस्था का महामंत्री था । यह संस्था देश - विदेश के जाने माने विचारकों को अपने विचार व्यक्त करने के लिये आमंत्रित किया करती थी । मुझे स्मरण पड़ता है कि श्री अटल बिहारी बाजपेई , श्री बलराज मधोक , श्री दीनदयाल उपाध्याय , श्री सुब्रमणियम स्वामी आदि को बुलाने में श्री कुशाभाऊ ठाकरे एवं श्री कैलाश सारंग ने बहुत मदद की थी । देखते - देखते भाई कैलाश सारंग जीवन के जिस पायदान पर जा पहुंचे हैं उससे आभास होता है कि श्री सारंग में दीर्घजीवियों जैसी मुख मुद्रा , प्रसन्न चित्त और स्फूर्ति अभी बरकरार है । हमारा मानना है कि भाई कैलाश सारंग सृजन और सेवा के मिलन बिन्दु हैं। आपकी लेखनी असरदार और वाणी में वह ताकत है कि वह हर किसी को भी अपनी ओर खींच लेती है । किसी भी इंसान की खूबियों और कार्यों का स्मरण करते समय हमें यह समझ लेना चाइए कि इंसानों की जिन्दगी कायनात में समुद्र की लहरों की तरह है जो थोड़ी देर के लिये बात से उभरती है और फिर उसी में मिल जाती है । देखने वालों को यह लहरें एक ही ढर्रे पर हुई दिखाई पड़ती है , मगर कभी कभी हवा के थपेड़ों से कोई जबरदस्त मौज उठती है , जो दूर तक पानी की सतह पर हलचल पैदा कर देती है ।
ऐसी जानदार और पुरकशिश हस्ती का जमाने में आम लोगों के लिये दिलकश भी होती हैं और यादगार भी । ऐसी ही एक खरिव्सयत का नाम है कैलाश सारंग ।
मैं सारंगजी की मिसाल ऐसे हीरा से करता हूं जिसके कई पहलू होते हैं । सारंगजी की सियासी समाजी और साहित्य की खिदमत और पत्रकारिता के प्रति उनका प्रेम बेमिसाल है । आगे देश की हैसियत से , भारत वर्ष को एक ऐतिहासिक करवट बदलनी ही है और तब की आहट को सुनने तथा इसके नाभिक तत्वों और स्पंदनों को पहचानने में समर्थ लोग जरूरी होंगे । इनमें भाई कैलाश सारंग भी हों , यही मेरी कामना है ।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )